नई दिल्ली. माओवादी हिंसा की पीड़ा और दुःख-दर्द को साझा करने तथा बस्तर को माओवाद से मुक्त करने की मांग लेकर नक्सल हिंसा से पीड़ित 50 से अधिक बस्तरवासी दिल्ली पहुंचे हैं. बस्तर शांति समिति के बैनर तले दिल्ली पहुँचे सभी बस्तरवासी राष्ट्रपति एवं केंद्रीय गृहमंत्री से मुलाकात करेंगे. इसके अतिरिक्त दिल्ली के जंतर-मंतर में प्रदर्शन कर देश को अपनी पीड़ा से अवगत करवाया. नक्सल पीड़ितों के समूह द्वारा देश की राजधानी में एक प्रेस वार्ता भी की जाएगी, जिसमें राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने अपने संघर्ष की कहानी सुनाएंगे. नक्सल पीड़ितों के दिल्ली यूनिवर्सिटी और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में भी जाने की योजना है. पीड़ितों का कहना है कि वो इन विश्वविद्यालयों में जाकर बताना चाहते हैं कि कैसे माओवादियों ने उनके जीवन को नर्क बना दिया है. ‘केंजा नक्सली मनवा माटा’ (सुनो नक्सली – हमारी बात) कहते हुए पीड़ितों ने अपनी आवाज़ दिल्ली में उठाई है कि बस्तर को माओवाद-नक्सलवाद से मुक्त किया जाए.
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बीते 4 दशकों से बस्तर माओवाद का जो दंश झेल रहा है, वह अब एक कैंसर बन चुका है, जिसका जल्द से जल्द इलाज आवश्यक है. माओवाद-नक्सलवाद ने ना सिर्फ बस्तर की पीढ़ियों को बर्बाद किया, बल्कि बस्तर के विकास की गति को भी लगभग रोक दिया. माओवादी आतंक के कारण बस्तर के युवाओं का भूत-भविष्य-वर्तमान आतंक के साये में रहा, वहीं बस्तर की पहचान भी लाल आतंक और रक्तरंजित भूमि के रूप में होने लगी. बीते ढाई दशकों में इस भूमि में माओवादियों ने 8000 से अधिक ग्रामीणों की हत्या की है, और हजारों ऐसे लोग हैं जो माओवादियों के बिछाए बारूद के ढेर की चपेट में आने के कारण दिव्यांग हो गए. बस्तर के हजारों ऐसे जनजाति ग्रामीण हैं जो नक्सल आतंक के कारण अपने शरीर का कोई ना कोई अंग गंवा चुके हैं, किसी ने अपना पैर खोया है, तो किसी ने हाथ, किसी के आंखों की रोशनी चली गई है, तो किसी के कानों में आवाज़ आनी बंद हो गई है. और यह स्थिति बस्तर के केवल युवाओं या पुरुषों की ही नहीं है, यह स्थिति वहां की महिलाओं, बुजुर्गों, और तो और नाबालिग बच्चों की भी है.
इन्हीं सब कारणों को लेकर बस्तरवासी न्याय की गुहार लगाने दिल्ली पहुंचे हैं, नक्सल आतंक से पीड़ित बस्तरवासी अपनी आवाज़ उठा रहे हैं, बस्तरवासी चाहते हैं कि देश उनके दुःख, दर्द और पीड़ा को भी समझे, उसका भी समाधान निकाले और बस्तरवासियों को भी बारूद के ढेर की नहीं, बल्कि आजादी की सांस लेने दे.
बस्तर शांति समिति के बैनर पर दिल्ली पहुंचे पीड़ितों की मांग है कि बस्तर को अब माओवादी आतंक से मुक्त किया जाए. जैसे देश के अन्य हिस्सों में सभी नागरिक आजादी से अपना जीवन व्यतीत करते हैं, वैसे इन्हें भी बस्तर में स्वच्छन्दता से जीवन जीने का अवसर मिले. बस्तर में माओतंत्र पूरी तरह से खत्म हो और भारत के संविधान के अनुसार बस्तर के हर गांव में लोकतंत्र का दीपक जले.
गौरतलब है कि नक्सल पीड़ितों ने दिल्ली आने से पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय एवं उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा से भी मुलाक़ात की थी और पीड़ित अब अपनी मांगों को राष्ट्रपति और केंद्रीय गृहमंत्री से मिलकर उनके सामने रखेंगे.