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प्रभाकर जी केळकर – आदर्श और प्रेरणादायी व्यक्तित्व

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हिमांशु अग्रवाल

ऐसे बहुत से लोग होते हैं जो इस दुनिया से रुखसत होने के बाद अपने पीछे अपना प्रभावी इतिहास छोड़ जाते हैं और उनकी यादें हमेशा दिलो-दिमाग में घर किये रहती हैं. जो इस दुनिया में आया है वह जाएगा अवश्य. यह सृष्टि का अटल सिद्धान्त है. जो भी मित्र, परिचित या निकट सम्बन्धी सदा के लिए जाता है, उसके जाने से दु:ख होता ही है; पर कुछ लोगों का जाना हृदय पर अमिट घाव छोड़ जाता है. प्रभु की असीम कृपा है कि हमें भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष स्वर्गीय प्रभाकर जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ. आज भी वो तीन वर्ष पूर्व के दिन याद आते हैं, जब हम चन्द्रशेखर जी के साथ स्वर्गीय प्रभाकर जी के सान्निध्य में भारतीय किसान संघ के एक आंगन में बैठते थे. सायं काल में चाय एवं पकौड़े खाते हुए हर विषय पर हम तीनों लोग खुलकर विचार करते थे. कई बार स्वर्गीय प्रभाकर जी खुद ही रसोई में जाकर पकोड़ी बना देते थे. मुझे आज भी प्रभाकर जी से प्रथम भेंट याद है, जब मैं राष्ट्रीय किसान संघ कार्यालय पहुंचा. उन्हें अपना परिचय देने के पश्चात उन्होंने नाश्ते के लिए पूछा और मैनें डरते हुए उन्हें मना किया. तब उन्होंने डांटते हुए बोला जब भूख लगी है तो शर्माइये मत एवं उस समय उपलब्ध नाश्ता देते हुए बोले 10 मिनट में पूरा हो जाना चाहिए, जब तक में अंदर से आता हूं. मेरी भी दोबारा ना कहने की हिम्मत नहीं हुई. वो ऐसे ही मन की बात समझने वाले व्यक्ति थे. उन्होंने देश के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. इस संसार में कभी-कभी ही ऐसे व्यक्तियों का जन्म होता है. वह किसान या कृषि के साथ हर क्षेत्र में जानकारी के धनी रहे. उनका जीवन बहुत ही सरल रहा है.
वैसे तो उनके साथ की बहुत मधुर यादें हैं, जिसमें एक-दो यादें साझा करूंगा.

  1. बात लगभग दो वर्ष पूर्व 2018 की है. मैं भाईसाब का आशीर्वाद प्राप्त करने हरिद्वार से राष्ट्रीय कार्यालय भारतीय किसान संघ दिल्ली पहुंचा. दिल्ली में भीड़भाड़ व जाम के कारण पहुंचने में रात्रि में विलंब हो गया तथा कार्यालय पहुंचते हुए रात्रि 11 बज गए. उस समय मेरी प्रतीक्षा में भाई साहब कार्यालय पर जग रहे थे. जब उन्हें पता लगा की मैंने रात्रि भोजन नहीं किया और सेवादार भी गहरी निंद्रा में हैं, तब उन्होंने स्वत: ही आटा गूंधना शुरू कर दिया. मेरे काफी आग्रह करने के पश्चात ही मुझे दाल बनाने की अनुमति दी और साथ देने के लिए एक रोटी एवं चाय भी ली.
  2. यह बात उन दिनों की है, जब मैंने पीएचडी करना शुरू किया था. भाई साहब ने मिलने पर मुझसे विषय पूछा और अभियांत्रिकी के बारे में बातचीत की. उसके बाद उन्होंने अचानक कहा – आप कृषि में अपना विषय का योगदान किस प्रकार देंगे. तब उनसे बातचीत के दौरान ई-कृषि के बारे में चर्चा हुई और मेरी कम्प्युटर/ई-गवर्नेंस की शिक्षा को भी भाई साहब ने कृषि से जोड़ दिया. कई बार उनसे जानकारी लेते हुए मुझे भी कृषि में रुचि उत्पन्न हुई और ये ज्ञात हुआ हम जो सोच लेते हैं, वह करना हमारे लिए आसान हो जाता है. तद्पश्चात उनके साथ दिल्ली से देहरादून सड़क सफर के दौरान हम दोनों की बहुत बातें हुई और उन्होंने अपने जीवन के बारे में काफी बातें साझा की. उनके जीवन के बारे में जानकर यह बात कहना बनता है कि वह अपने जीवन में आदर्श एवं प्रेरणादायी व्यक्तित्व के धनी रहे हैं.

उनके व्यक्तित्व पर एक अटल जी कविता कि कुछ पंक्तियां कहूंगा –

बाधाएं आती हैं आएं, घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

निज हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा.

कदम मिलाकर चलना होगा. कदम मिलाकर चलना होगा….

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