आशीष कुमार ‘अंशु’
रेबिका पहाड़न (साहिबगंज, झारखंड), सीमा (शाहजहांपुर, उत्तरपुर), निशा (बरेली, उत्तर प्रदेश), अंकिता (दुमका, झारखंड), श्रद्धा (दिल्ली), निकिता तोमर के बाद अब सूची में शाहबाद डेयरी (दिल्ली) की साक्षी गौतम का नाम भी शामिल हो गया है. यह उन युवतियों के नाम हैं, जो लव जिहाद की शिकार हुई. अब इनमें से कोई भी हमारे बीच नहीं है. सबकी कहानियां हैं, जो गूगल पर सर्च करने से मिल जाती हैं.
साक्षी गौतम की ही कहानी ले लीजिए. वह जिस राहुल से मिली थी. वह हाथ में कलावा बांधता था, गले में रुद्राक्ष की माला डालता था, शिव के गीत गाता था. अब राहुल के हाथों साक्षी की हत्या हो चुकी है और पुलिस की फाइलों में राहुल का नाम सुधारकर मोहम्मद साहिल खान कर दिया गया है. जाटव परिवार से आने वाली साक्षी के परिवार में मां हैं, पापा हैं और एक छोटा भाई है, जो आठवीं में पढ़ता है. पिता, पेशे से राज मिस्त्री हैं. पिता की आमदनी से बहुत मुश्किल से घर चलता है.
अपने परिवार के साथ साक्षी शाहबाद डेयरी की झुग्गी बस्ती में रहती थी. बाबा साहब ने उसे संविधान की जो ताकत दी थी, उसी संविधान और कानून की किताबों को पढ़कर, वह एक अच्छी वकील बनना चाहती थी. अपने समाज के लोगों को न्याय दिलाने के लिए लड़ना चाहती थी. किसे पता था कि जब साक्षी गौतम की कहानी लिखी जाएगी, वह खुद अत्याचार की शिकार हो चुकी होगी और उसकी न्याय की लड़ाई दूसरे लोग लड़ेंगे. विडम्बना है कि दुःख की इस घड़ी में ना कोई भीम समर्थक दिखाई दिया और ना ही मीम समर्थक.
वहां एक लॉ फर्म से जुड़े चार अधिवक्ता जरूर मिले. जो साक्षी की मां के पास कानूनी सहायता देने की पेशकश लेकर आए थे. उन्होंने रंजना देवी के साथ चार मिनट, तीस सेकेन्ड का वीडियो बनाया और उन्हें आश्वासन और विजिटिंग कार्ड देकर निकल गए.
घटना स्थल
शाहबाद डेयरी क्षेत्र में दाखिल होने के लिए तीन द्वार हैं. एक है महात्मा बुद्ध द्वार. दूसरे का नाम है डॉ. भीमराव आम्बेडकर द्वार. तीसरा द्वार मेन बवाना रोड से जाने पर मिलता है, संत रविदास द्वार. यह घटना स्थल बी ब्लॉक के सबसे पास का द्वार है. बी ब्लॉक और संत रविदास द्वार के बीच मुर्गा मार्केट आता है. मुर्गा मार्केट मुस्लिम बहुल क्षेत्र है.
इसे पार करके बी ब्लॉक तक पहुंच सकते हैं, जहां साक्षी की हत्या हुई थी. अब उस स्थान को तलाश पाना किसी के लिए भी बहुत मुश्किल है. उस जगह की पहचान नहीं हो पाती यदि सामाजिक कार्यकर्ता कमलापति ने क्रॉस का निशान दिखाते हुए ना कहा होता – यह निशान पुलिस ने लगाया है. यहीं बिटिया को चाकुओं से गोद दिया था. अब तक यह बात समझ आ गई थी कि उस गली में यह निशान ही घटना स्थल की पहचान है. जिस गली में इस नृशंस हत्या को अंजाम दिया गया था, वहां इतना ही रास्ता था कि एक बाइक निकल कर जा सकती थी. वहीं कुछ मजदूर काम करते हुए मिले. उनकी बात करने में अधिक रूचि नहीं थी. उन्होंने इतना बताया कि पिछले शाम काम करके गए. सब कुछ सामान्य था. रात को कांड हो गया. बात हो रही थी, इतनी देर में वहां दस-बारह की संख्या में हिन्दू रक्षा दल के कार्यकर्ता आ गए. वे उस स्थान को देखना चाहते थे, जहां हत्याकांड को अंजाम दिया गया था. उनसे बातचीत के क्रम में पता चला कि भजनपुरा में हिन्दू रक्षा दल के कार्यकर्ता साक्षी गौतम के इंसाफ के लिए आमरण अनशन रखना चाहते थे. दिल्ली पुलिस से उन्हें अनुमति नहीं मिली. उन्होंने आनन-फानन में प्रदर्शन का स्थान बदल कर शाहबाद डेयरी किया. एक दिन पहले यहां एक कैंडल मार्च भी निकला था. जिसमें हजार-बारह सौ के आस पास लोग साक्षी के लिए न्याय की मांग को लेकर सड़क पर उतरे. वे हत्यारे के लिए फांसी मांग रहे थे. साक्षी का परिवार भी हत्यारे के लिए फांसी की मांग कर रहा है.
आप का कार्यालय और विधायक के बॉडीगार्ड
उल्लेखनीय है कि जिस दीवार से लगकर साक्षी पर चाकू से दो दर्जन वार किए गए थे. वहां से 400 मीटर पर आम आदमी पार्टी का कार्यालय है. बताया गया कि जब इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया, कार्यालय खुला था. जिस दीवार पर दिल्ली पुलिस ने क्रॉस का निशान लगाया है, उससे लगकर बवाना सात, विधानसभा के आम आदमी पार्टी के विधायक जयभगवान उपकार के अंगरक्षक सुनील पांडेय का घर है. वह पूरा क्षेत्र सीसीटीवी कैमरों से कवर होता है. उसके बावजूद अपराधियों में कोई खौफ नहीं. यह बात चिन्ता में डालने वाली है. बताया गया कि उस दिन विधायक जयभगवान उपकार इसी क्षेत्र में थे. स्थानीय लोगों के अनुसार, अब तक जितनी जानकारी सामने आई है, वह सिर्फ तीन सीसीटीवी कैमरों से निकल कर आया सच है. अभी सीसीटीवी कैमरों से निकल कर कई सच सामने आने हैं.
हमें पैसा नहीं न्याय चाहिए
ब्लॉक बी घटना स्थल से ब्लॉक ई कच्ची बस्ती में साक्षी के घर तक पैदल जाने में दस मिनट का समय लगता है. उबड़-खाबड़ सड़कों के सहारे दाएं-बाएं रास्तों को पार करते हुए साक्षी के घर पहुंचा जा सकता है. बस्ती के अंदर घर तक गाड़ी नहीं जाती. गलियों से गुजरते हुए क्षेत्र की गरीबी साफ नजर आ रही थी. साक्षी की मां से मिलने के लिए जब उनके घर गए. अंदर से उनका घर देखकर, परिवार का संघर्ष समझ आया. यदि शासन की तरफ से राशन ना मिले तो घर चलाना भी मुश्किल हो. उसके बावजूद मां ने जब बातचीत में कहा कि हम गरीब जरूर हैं, लेकिन हमें किसी से मदद के लिए कोई पैसा नहीं चाहिए. ईश्वर ने हमें गरीबी दी है तो हम गरीबी में जीने को तैयार हैं, लेकिन हमारी बेटी के हत्यारे को फांसी जरूर मिले.
यह सुनकर उस मां पर बड़ा गर्व हुआ जो अपनी बेटी की न्याय की लड़ाई में झुकने को तैयार नहीं है. घटना के अगले दिन आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पीड़ित परिवार को दो घंटे तक कमरे में बंद रखा. इसका लोगों ने विरोध किया और फिर दरवाजे पर मौजूद सामाजिक कार्यकर्ताओं और मीडिया वालों द्वारा शोर मचाए जाने के बाद कार्यकर्ता बाहर आए.
मीडिया में साक्षी के मित्र झगड़ू उर्फ अजय द्वारा मोहम्मद साहिल को धमकी देने की खबर खूब चली है. उस घटना के बाद दोनों का मिलना भी हुआ था. उस दिन मोहम्मद साहिल अकेला नहीं आया था. बताया गया कि उसके साथ दो दर्जन लड़के भी आए थे.
साहिल शाहबाद डेयरी क्षेत्र में एयर कंडिशन ठीक करने के काम के लिए अपना छद्म नाम राहुल इस्तेमाल करता था. एसी रिपेयर का काम भी वह सिर्फ अपनी अपराधिक गतिविधियों को कवर देने लिए करता था. स्थानीय लोग कहते हैं कि वह नशे के कारोबार से पैसा कमाता था. साहिल खान सालों पहले शाहबाद डेयरी ही रहता था. अब उसने इसे छोड़ दिया था. कई सालों से वह अपना नशे का कारोबार यहां चला रहा था, लेकिन रहता वह तीन किमी दूर था.
यह पूरा क्षेत्र नशे से प्रभावित है. इस बात को स्थानीय विधायक भी मानते हैं कि नशे पर नियंत्रण होने से इस क्षेत्र के अपराध पर भी नियंत्रण होगा. लेकिन वे इन स्थितियों को सुधारने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे.
मोहम्मद साहिल का इंस्टाग्राम रील्स उसके अपराधिक चरित्र का चलचित्र है. उसने अजय को फोन पर कहा – ”मैं शाहबाद का मॉस्ट वांटेड बदमाश हूं.”
अपराधियों का दबदबा
उस पूरे क्षेत्र में अपराधियों का इतना दबदबा है कि वहां रहने वाले डरे हुए हैं. वहां खुलकर कोई बात करने को तैयार नहीं है. हत्या वाले दिन भी साहिल अकेला नहीं आया था. यह बात वहां के लोग कह रहे हैं. उसके साथ कई लोग थे. ऐसा लगता है कि उन्हें देखकर साक्षी समझ गई थी, अब वह फंस गई है. नाम ना देने की शर्त पर एक व्यक्ति ने बताया कि कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी हमला होने पर बचने की कोशिश करता है. साक्षी ने बचने की कोशिश क्यों नहीं की? उसने पलट कर धक्का क्यों नहीं दिया? साक्षी हारने वालों में नहीं थी. वह लड़ना जानती थी. फिर हमले वाली रात को वह कमजोर क्यों पड़ गई? यह सवाल कोई क्यों नहीं पूछ रहा?
मोहम्मद साहिल के साथियों को देखकर वह डर गई होगी. वह समझ गई होगी कि अब उसका बच निकलना नामुमकिन है. जिस सीसीटीवी फुटेज में आस-पास खड़े लोगों को भीड़ बताया जा रहा है. उस फुटेज को ठीक से देखने की जरूरत है. क्या पता कि सभी भीड़ का हिस्सा ना हों. उसमें कोई दोस्त भी हो.
साक्षी के घर के आस पास मिले लोगों की बातचीत से यह स्पष्ट हो चुका था कि वह दोस्तों पर खूब पैसे खर्च करता था. साहिल का क्रिमिनल बैकग्राउंड पुलिस से अब तक छिपा नहीं होगा. मिली जानकारी के अनुसार, उसके कई दोस्तों को पुलिस अपने साथ लेकर गई है.
कई अनसुलझे सवाल
सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष राठी ने बताया कि शाहबाद डेयरी झुग्गी क्षेत्र का एक सच यह भी है कि यहां के लोग मीडिया, कैमरा और पुलिस के चक्कर में पड़ना नहीं चाहते. फिर भी यह सवाल सबके मन में है कि जब मोहम्मद साहिल नशे में इतना धूत था कि एक नृशंस दरींदे की तरह वह दो दर्जन से अधिक बार लगातार साक्षी के शरीर पर चाकू से हमला करता रहा. पत्थर से बीटिया के सिर को उसने कुचल दिया. राठी पूछते हैं, इस बात पर कैसे विश्वास हो कि उसके बाद उसने अकेले जाकर चाकू छिपाया. इस बात पर कौन विश्वास करेगा कि सब कुछ उस अकेले ने किया? या पूरे समय उसके साथ कोई था. या फिर कई लोग थे?
सवाल को गंभीरता से इसलिए भी लेना चाहिए क्योंकिे शाहबाद डेयरी से बुलंदशहर सौ किमी का रास्ता है. जहां बुआ रहती है. वही बुलंदशहर, जहां से साहिल गिरफ्तार हुआ. वहां तक अपनी गाड़ी हो तो भी पहुंचने में ढाई घंटे का समय लगेगा. अब सवाल है कि उस रात मोहम्मद साहिल बस से गया था या फिर उसका कोई दोस्त अपनी गाड़ी से उसे बुलंदशहर छोड़ कर आया. यदि बस से गया तो इतनी रात गए उसे बस कहां से मिली? इन सवालों का जवाब आना शेष
साक्षी की हत्या की खबर के बाद मीडिया वालों और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं का जमघट साक्षी गौतम के घर के बाहर लग रहा है. उस क्षेत्र में लोगों से बातचीत के बाद इतना साफ हो गया कि उस क्षेत्र में अपराधियों का मनोबल बढ़ा हुआ है. इससे वहां के स्थानीय लोग डरे हुए हैं, लेकिन वे हारे नहीं है. साक्षी की न्याय की लड़ाई को लड़ने के लिए वे तैयार हैं और हत्यारे के लिए फांसी से कम उन्हें मंजूर नहीं है.