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राजदत्तजी यानि कला और समाज के प्रति निष्ठा का अपूर्व संगम – विनय सहस्रबुद्धे

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पुणे. राजदत्तजी ऐसा व्यक्तित्व है, जिसमें कला और समाज के प्रति निष्ठा की एकरूपता दिखती है. प्रतिभा और कला का संगम दत्ताजी में हमेशा दिखता है. कथ्य और अभिव्यक्ति इन दोनों पर प्रभुता कैसी हो सकती है. इसका उदाहरण दत्ताजी की प्रतिभा में दिखता है. इन शब्दों में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद डॉ. विनय सहस्रबुद्धे ने वरिष्ठ मराठी निर्देशक दिग्दर्शक राजदत्त का सम्मान किया. मिती फिल्म सोसाइटी की ओर से आयोजित राजदत्त फिल्म महोत्सव और सम्मान समारोह में राजदत्त को सम्मानित किया गया.

पुरस्कार के रूप में शाल, श्रीफल और सम्मानपत्र का समावेश था. इस अवसर पर वरिष्ठ अभिनेता विक्रम गोखले, अखिल भारतीय मराठी फिल्म निगम के अध्यक्ष मेघराज राजे भोसले, मिती फिल्म सोसाइटी के अध्यक्ष मिलिंद लेले, कार्यक्रम के प्रायोजक गंगोत्री होम्स एंड हॉलिडेज के मकरंद केलकर के साथ राजदत्त के साथ काम करने वाले कलाकार, तकनीशियन, निर्माता तथा समाज के गणमान्य नागरिक और राजदत्त व उनकी फिल्मों के प्रशंसक बड़ी संख्या में उपस्थित थे. सोसाइटी के सचिव आमोद खलदकर ने सम्मानपत्र का पठन किया. राजदत्त ने हाल ही में अपने आयु के 90 वर्ष पूर्ण किए. इस अवसर पर उनकी फिल्मों का महोत्सव पुणे के राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय में जारी है.

सांसद विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि वास्तव में मेरे हाथों दत्ताजी का सम्मान यानि किसी आधे-अधूरे पढ़े-लिखे व्यक्ति के हाथों कुलाधिपति का सम्मान करने जैसा है. लेकिन मैं आईसीसीआर का अध्यक्ष होने के नाते भारत सरकार की ओर से यह सम्मान कर रहा हूं. दत्ताजी यद्यपि एक फिल्म निर्देशक के रूप में अधिकारी व्यक्तित्व हैं, लेकिन मुझे वे भाते हैं एक कार्यकर्ता के रूप में. वे फिल्म के किसी भी फॉर्मुला में नहीं फंसे.

अब नई पीढ़ी को भाषाई फिल्में दिखाने पड़ेंगी क्योंकि भाषा के साथ-साथ संस्कृति आती है. भाषाई फिल्मों को अब वैश्विक आशाएं रखनी चाहिए. भारतीय फिल्मों की पूरी दुनिया में मांग है. फिल्मों में प्रदर्शक और दर्शक के परे जाकर आस्वादक कैसे बनेंगे, इसकी चिंता संस्कृति का जतन करने वाले लोगों को करनी चाहिए.

राजदत्त ने कहा कि सन् १९६६-६७ से मैंने जो काम किया, मेरा जो करियर रहा, इस पर खुद का ही विश्वास नहीं होता. वास्तव में बताता हूं, मैं कलाकृति करता गया यह सच है. लेकिन उसके साथ ही फिल्म के प्रदर्शित होने के बाद उसके बारे में अधिक बोलना या उसके ढोल पीटना मुझे कभी पसंद नहीं आया. मेरी पहली फिल्म ‘मधुचंद्र’ प्रदर्शित होने के बाद मैंने लोगों के चेहरों को देखा. मुझे एहसास हुआ कि फिल्मों द्वारा लोगों को सहजता से उनके दुःखों से बाहर निकालना चाहिए. समाज को मजबूत और समर्थ नहीं किया जा सकेगा, लेकिन आनंदमय किया जा सकता है, जिसके लिए फिल्म का माध्यम है. कलाकार को अपनी कृति पर घमंड न करते हुए अगली कृति में खामियां नहीं रहनी चाहिए, इस उद्देश्य से काम करना चाहिए. असली कलाकार कभी भी चुप नहीं बैठता. सुधार करने का अवसर हमेशा ढूंढ़ते रहना चाहिए. कलाकृति हमेशा ही अपूर्ण होती है. उसमें हमेशा नया कुछ ढूंढते रहना चाहिए. नई पीढ़ी को इसका एहसास रखना चाहिए. इससे खुद को खुशी मिलती है और दूसरों को भी दी जा सकती है.

राजदत्त की कई फिल्मों में भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ अभिनेता विक्रम गोखले ने भी राजदत्त के करियर और उनके ऋषितुल्य व्यक्तित्व का गौरव किया. उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों से मेरा दत्ताजी से संबंध है. मैंने तीन फिल्में की. पटकथा पर कमांड होना क्या होता है, यह दत्ताजी से सीखा है. दत्ताजी व्यंग्य अच्छी तरह से जानते हैं. हंसना ही दुःख पर विजय का एकमात्र उपाय है और दत्ताजी ने उसे अपनी कृतियों से दिखाया.

सोसाइटी के अध्यक्ष मिलिंद लेले ने प्रस्तावना रखी और फिल्म महोत्सव व सम्मान समारोह की भूमिका स्पष्ट की.

‘क्लैप’ के साथ महोत्सव की अनोखी शुरूआत

सुबह 10 बजे राजदत्त की फिल्म ‘पुढचं पाऊल’ में नायिका की प्रमुख भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री मानसी मागीकर व अभिनेत्री सुहासिनी देशपांडे के हाथों क्लैप देकर समारोह की शुरूआत हुई. स्वयं राजदत्त, ‘सर्जा’ फिल्म की नायिका अभिनेत्री पूजा पवार, ‘अष्टविनायक’ फिल्म की नायिका वंदना पंडित, महोत्सव के प्रायोजक गंगोत्री होम्स एंड हॉलिडेज के मकरंद केलकर व गणेश जाधव, फिल्म निर्माता विजय मागीकर उपस्थित थे. इसके बाद सुबह 10.30 बजे फिल्म ‘पुढचं पाऊल’ का प्रदर्शन किया गया. दोपहर के सत्र में 2 बजे फिल्म ‘वऱ्हाडी आणि वाजंत्री’ का प्रदर्शन किया गया.

प्रमोद पवार ने लिया राजदत्त का साक्षात्कार

शाम 5.30  बजे वरिष्ठ अभिनेता प्रमोद पवार ने राजदत्त का लंबा साक्षात्कार किया. राजदत्त की जीवन यात्रा दर्शकों के सामने प्रकट हुई. 90 वर्षों की प्रदीर्घ यात्रा के अनुभव, आरंभिक दिनों के संघर्ष भरे दिन, पहली फिल्म, वरिष्ठ निर्देशक स्व. राजा परांजपे की यादें, उनके साथ अनुभव, सफलता के शिखर पर  आए अनुभव आदि दर्शकों के सामने आए. कलाकार हर एक के अंदर होता है, उसे जागृत करने का काम निर्देशक का होता है जो मैंने किया, यह कहते हुए राजदत्तजी ने अपने निर्देशन के कौशल का सूत्र बताया. निरंतर कार्यरत रहने का रहस्य बताते हुए उन्होंने कहा कि किसी  विषय को ठान लेने के बाद उसी विषय का ही विचार करना चाहिए. उसमें से शांत होने के लिए आराम करना चाहिए, जिसके बाद मैं फिर से तरोताजा होता हूं.

अखिल भारतीय फिल्म निगम के अध्यक्ष मेघराज राजे भोंसले ने भी राजदत्त के कार्य का गौरवपूर्ण उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि दत्ताजी एक विश्वविद्यालय हैं, इसलिए उनके सम्मान से खुशी होती है. दत्ताजी की सादगी सभी को सीखनी चाहिए. कोई व्यक्ति कितना अच्छा हो यह हमें उन्हें देखकर सीखना चाहिए. मांग की कि फिल्म उद्योग में राजदत्त के विशेष योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार का दादासाहेब फालके पुरस्कार दिया जाना चाहिए.

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