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राम फिर लौटे

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अयोध्या आन्दोलन अपने मकसद में सफल रहा. मंदिर तो बन गया. अब आगे क्या? यह मंदिर किन भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का ऊर्जा पुंज बनेगा. यह मंदिर हमारी सनातनी आस्था का शिखर तो होगा ही. भारतीयता का तीर्थ भी बनेगा. राम के पुरुषोत्तम चरित्र, अयोध्या के सांस्कृतिक मूल्य और राम मंदिर आन्दोलन पर रोशनी डालती मेरी नई पुस्तक “राम फिर लौटे” छप गयी है. अयोध्या के इस नव्य और भव्य राम मंदिर ने राम और भारतीयता के गहरे अन्तर्सम्बन्धों को समझने का नया गवाक्ष खोला है. “राम फिर लौटे” इसी गवाक्ष के वैराट्य का बहुआयामी दर्शन है. कल इस पुस्तक का लोकार्पण है.

राम ही क्यों?

क्योंकि राम भारत की चेतना हैं. राम भारत की प्राण शक्ति हैं. राम ही धर्म है. धर्म ही राम है. भारतीयों के जीवन का आदर्श लोक राम नाम के धागों से बुना है. राम निर्गुनियों के अनहद में हैं और सगुनियों के मंदिर घट में भी. मानव चरित्र की श्रेष्ठता और उदात्तता का सीमांत राम से बनता है.

कष्ट और नियति चक्र के बाद भी राम का सत्यसंध होना भारतीयों के मनप्राण में गहरे तक बसा है. राम केवल अयोध्या के राजा, सीता के पति, रावण के संहारक या केवट के तारक नहीं हैं. हर व्यक्ति के जीवन में हर कदम पर जो भी अनुकरणीय है. वह ‘राम’ है. इसलिए वो भगवान से भी आगे ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहे गए. यह विशेषण राम के इतर और किसी देवता को लभ्य नहीं है. शिव को नहीं, कृष्ण को भी नहीं. इसलिए राम सबके हैं, सब में हैं.

ऐसे राम अयोध्या में फिर लौट आए हैं. अपने भव्य, दिव्य और विशाल मंदिर में. जिसके लिए पाँच सौ साल तक हिन्दू समाज को संघर्ष करना पड़ा. अब जाकर वहां जो भारतीयता का तीर्थ बना है वो महज एक राम मंदिर नहीं है. हमारी सनातनी आस्था का शिखर है. यह बदलते भारत का प्रतीक है. जो दुनिया की आंख में आंख डाल यह ऐलान करता है कि राम थे, राम हैं और राम रहेंगे. क्योंकि इसी देश में कुछ लोगों ने राम के अस्तित्व पर सवाल खड़ा किया था. उन्हें काल्पनिक चरित्र बताया था. अयोध्या में जन्मस्थान मंदिर के अस्तित्व को मिटाने की कोशिश की गयी. राम की व्यापकता और सार्वकालिकता को देखते हुए राम के अस्तित्व पर सवाल खड़े करने वाली जमात भी आज राम नाम जपने को मजबूर हो रही है.

यह पुस्‍तक “राम फिर लौटे” राम के समग्र क्या, आंशिक आकलन का भी दावा नहीं करती. पर इसका उद्देश्य राम तत्व, रामत्व और पुरुषोत्तम स्वरूप की विराटता से लोगों को परिचित कराना है. रामराज्य के लोक मंगल और समरसता को रेखांकित करना है. यह पुस्तक रामत्व और राममयता के विराट संसार के समकालीन और कालातीत संदर्भों का पुनर्मूल्यांकन है. मंदिर बनने के बाद के भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य क्या होंगे? मंदिर किन भारतीय मूल्यों का कीर्ति स्तंभ होगा? इस पर रोशनी डालना है.

रामलला के अपने जन्मस्थान में लौटने से राम राज्य के बुनियादी मूल्यों की पुनर्स्थापना होगी. देश से तुष्टीकरण की राजनीति का अंत होगा. जातिवर्ग से परे सर्वसमावेशी समाज की नींव मजबूत होगी. राम के आदर्श, लक्ष्मण रेखा की मर्यादा, लोकमंगल की शासन व्यवस्था, आतंक और अन्याय के नाश का यह मंदिर ‘नाभिकीय केंद्र’ बनेगा. राम जन्मस्थान मंदिर उन उदात्त भारतीय जीवन मूल्यों का बीज केंद्र बनेगा, जो तोड़ती नहीं जोड़ती है. जीव से ब्रह्म को, आत्मा से परमात्मा को, भक्त से भगवान को, व्यक्ति से समष्टि को, राजा से प्रजा को, अगड़ों से पिछड़ों को, बूंद से समुद्र को. वह सिर्फ जोड़ती ही रहती है.

राम ऐसे चरित्र हैं जो भाई, पति, पुत्र, मित्र, राजा, वनवासी यहां तक कि शत्रुता का भी आदर्श हैं. तो फिर क्यों नहीं देश राम को अपने मुकुट और छत्र पर विराजित करे. यह मौका पाँच सौ साल बाद आया है.

अयोध्या के राममंदिर ने राम और भारतीयता के गहरे अन्तर्सम्बन्धों को समझने का नया गवाक्ष खोला है. “राम फिर लौटे” इसी गवाक्ष के वैराट्य का बहुआयामी दर्शन है.

राम जन्मस्थान पर रामलला का मंदिर लोक और समाज का स्वप्न था. इतिहास इस घड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था. मंदिर तो बन गया. अब उसके आगे क्या? यह पुस्तक इस सवाल का जवाब देती है.

राम लोक के हैं. अयोध्या राम की है. इसलिए अयोध्या महज एक शहर नहीं समदर्शी विचार है. अयोध्या का यह मंदिर अन्याय के खिलाफ सतत संघर्ष और विरोध को ताकत देगा. रामलला का यह मंदिर मर्यादा, आदर्श, विनय, संयम, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यवत्ता, पिछड़े, वनवासी, आदिवासियों से युक्त समरस समाज का ऊर्जा केंद्र भी बनेगा. गीता के तीसरे अध्याय में कर्म योग को समझाते हुए भगवान कृष्ण कहते हैं, “स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते” .श्रेष्ठ लोग अपने जीवन और कर्म से लोगों के सामने आदर्श प्रस्तुत करते हैं. वही लोकअनुकरण का उदाहरण बनते हैं. इस लिहाज से भी यह मंदिर लोकअनुकरण का प्रकाशस्तंभ होगा. गीता का समय राम के बाद का है. कल्पना कीजिए अगर गीता न होती तो राम की जीवन कथा ही कर्मयोग की सबसे सुंदर गाथा बनती. ‘अनासक्त भाव’ से कर्मरत राम दरअसल गीता का पूर्व पाठ हैं.

सवाल हो सकता है, राम ही क्यों? क्योंकि राम किसी विचारधारा से बंधे नहीं हैं. वे किसी एक सांचे तक सीमित नहीं हैं. समय-समय पर राम जन्मस्थान पर सब आए. सभी पंथ, सभी सम्प्रदाय के लोग राम जन्मस्थान पर आस्था जताने आते रहे. यहां सिक्ख गुरु नानकदेव भी आए और अयोध्या में जन्मे पांच जैन तीर्थंकरों ने भी अपने को राम की वंश परम्परा से जोड़ा. बनारस से दलित संत रविदास भी अयोध्या में राम के दर्शन के लिए आए तो दक्षिण के आलावार संत भी. द्वैत सिद्धान्त मानने वाले आचार्य भी. अद्वैत के प्रवर्तक शंकराचार्य और विशिष्टाद्वैत के वल्लभाचार्य भी अयोध्या आकर जन्मस्थान पर अपनी साधना में लीन रहे. बुद्ध यहाँ कई वर्षों तक रहे. निर्गुण कबीर भी राम को भजते हैं और सगुण तुलसी भी. भवभूति भी राम को जपते हैं. अल्लामा इकबाल भी राम को सलाम करते हैं. तुकाराम से तिरुवल्लुवर तक राम पीड़ित, शोषित और वंचित की दार्शनिक अभिव्यक्ति हैं.

राम सत्ता और समाज के बीच संतुलन की मिसाल हैं. राम प्रजानुरूप रहने के क्रम में परिवार को भी महत्व नहीं देते. सत्ता से इतर शबरी के बेर, केवट का कल्याण, वानर, भालुओं आदि के प्रति उनकी संवरणता आकर्षित करती है. राम का विपक्ष भी अद्भुत है. वहां रावण से भी ज्ञान प्राप्त करने की गुंजाइश है. वहां पक्ष और विपक्ष में कोई भेद नहीं है. राम सिर्फ राजा नहीं है. राम वनवासी हैं. शिष्य हैं. विरह में हैं. युद्ध में हैं. विनय में हैं. क्रोध में हैं. आदिवासियों के माथे पर गोदना के तौर पर हैं. वैष्णव पुरोहितों के ललाट पर तिलक के रूप में हैं. राम का समाज व्यापक है. उसकी परिधि जातियों और क्षेत्रों से कहीं आगे है.

भारत की जब बात होगी गाँधी के बिना उसका वैश्विक विमर्श पूरा नहीं होता. और गांधी को समझने के सूत्र राम में हैं. गांधी के जीवन दर्शन से लेकर अंतिम शब्द तक राम में समाहित हैं. राम भारतीय परिवारों के आदर्श नायक हैं. राम बताते हैं कि पिता, पति, भाई, पुत्र, स्वजन, मित्र, सखा, सहजीवी, राजा, प्रजा के रूप में किसी का भी आदर्श आचरण क्या होना चाहिए. इसी वजह से राम योजक और संयोजक बनकर हर घर को संभालने का ‘रसायन’ है. तुलसीदास ने भक्त हनुमान से कहा ‘राम रसायन तुम्हरे पासा’.

अयोध्या में ऐसे राम का मंदिर ढेर सारे संकेत प्रक्षेपित करता है. इसके निहितार्थ सामाजिक, राजनैतिक मायनों में गहरे हैं. अयोध्या के इस राममंदिर के लिए देश में अब तक सबसे बड़ा आंदोलन हुआ. शुरू में इस आंदोलन को एक खास वर्ग, विचार या पार्टी का आंदोलन बता खारिज करने की कोशिश हुई. पर जिन लोगों, दलों या सत्ता प्रतिष्ठान ने यह समझा कि अयोध्या मंदिर आंदोलन चुनावों को ध्यान में रखकर किसी पार्टी, संगठन या वर्ग का था. वे गफलत में रहे. उनसे यह समझने में चूक हुई कि यह भारतीय चेतना का आंदोलन था. यह भारत राष्ट्र के आहत स्वाभिमान का संकल्प था. यह एक राष्ट्रीय जिद थी, अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े रहने की. अगर आप इतिहास की गहराई में थोड़ा सा भी उतरे तो तस्वीर साफ हो जाएगी.1934 में हिन्दुओं की एक विशाल भीड़ ने बाबरी ढांचे के तीनों गुंबद तोड़ दिए थे. फैजाबाद के अंग्रेज कलेक्टर ने उसका पुनर्निर्माण करवाया. उस वक्त विश्व हिन्दू परिषद अस्तित्व में नहीं थी. भारतीय जनता पार्टी का जन्म भी नहीं हुआ था. इससे पहले 1855 में अयोध्या में भारी संघर्ष हुआ. संघर्ष में फिर इमारत को नुकसान पहुंचा. नवाब वाजिद अली शाह की एक रिपोर्ट के अनुसार “12 हजार लोगों ने ढाँचे को घेर लिया. इस खूनी संघर्ष में 75 मुसलमान मारे गए.” ढाँचें का एक हिस्सा भी गिर गया था. उस वक्त तो आर.एस.एस नाम का कोई संगठन नहीं था. न ही कोई चुनाव सामने था. यानी इन गुंबदों को लेकर भारतीय समाज में आक्रोश हर काल में था. दरअसल यह चुनाव की राजनीति नहीं दो विचारधाराओं का टकराव था. जिसमें एक विचारधारा उपासना, स्वातंत्र्य, सर्वपंथ सम्भाव, पंथनिरपेक्षता पर टिकी थी. तो दूसरी महजबी एकरूपता, धार्मिक विस्तारवाद और असहिष्णुता पर टिकी थी. बाद में विचारधारा का यह टकराव वोटबैंक की राजनीति के चलते तुष्टिकरण की रणनीति में बदल गया. और यह विमर्श राम के इतिहास और उनके अस्तित्व तक पहुंच गया.

राम की पौराणिकता और सार्वकालिकता के लिए किसी इतिहास के निष्कर्ष की जरूरत नहीं थी. राम इतिहास का विषय हैं ही नहीं. राम मनोजगत, अनुराग जगत और चेतनालोक के विषय हैं. परंतु अयोध्या का इतिहास राम से सम्पृक्त है. इसलिए इस पुस्तक का पहला अध्याय अयोध्या पर है. आज की पीढ़ी बाबर के बाद की अयोध्या को जानती है. जो खूनी संघर्षों और फसाद के लिए जानी गयी. मंदिर और मस्जिद के सवाल पर काल के प्रवाह में बनती बिगड़ती रही. जबकि अयोध्या का सच वह नहीं है. यह अध्याय में अयोध्या के लोकतंत्र और लोकमंगल की चर्चा करता है. इस अध्याय में अयोध्या के उस चरित्र पर विमर्श है, जो तोड़ती नहीं जोड़ती है. राम जिस मर्यादा, शील और विनय के लिए जाने जाते हैं. उसकी जननी ‘अयोध्या’ है. भक्ति में डूबी इस अयोध्या का चरित्र अपने नायक की तरह धीर, शांत और निरपेक्ष है.

दूसरे अध्याय में ‘रामो विग्रहवान् धर्म:’ इस बहाने रामतत्व और रामत्व की चर्चा की गयी है. इसका मूल है. राम क्या हैं? धर्म है. धर्म क्या है? राम हैं. राम शरीरधारी धर्म हैं. राम सर्वानुकूल है. सर्वयुगीन हैं. सर्वधर्म हैं.. मनुष्य के लिए जो भी सर्वोत्तम है, राम हैं. राम भारतीय चेतना के प्रतिनिधि हैं.

तीसरे अध्याय में राम की सार्वभौमिकता पर चर्चा है. राम का जीवन चरित्र मानवीय संस्कृति की आत्मा है. उनका यह महानायकत्व देश की सीमाएँ तोड़ उन्हें विश्वव्यापी, सार्वकालिक और सार्वजनीन बनाता है. वह कठिन परिस्थितियों में प्राणिमात्र को संबल देता है. इसलिए दुनिया के 70 देशों में रामकथा की जड़ें गहरी हैं. इस अध्याय में राम के वैश्विक सन्दर्भ हैं.

चौथा अध्याय राम जन्मस्थान के लिए पाँच सौ साल के खूनी संघर्ष पर केंद्रित है. बाबर ने राम मंदिर तोड़ा. फिर मुगल गए तो अंग्रेज आए. अयोध्या के भीतर छटपटाहट जारी रही. अयोध्या अपनी पहचान से जूझती रही. अंग्रेज अपनी राय में अयोध्या के साथ थे. पर राजकाज में यथास्थितिवादी थे. इसलिए उन्होंने इस विवाद को वैसे ही रहने दिया. हालाँकि अभिलेखों, गजेटियर्स में वे अपनी राय दर्ज करते रहे. अंग्रेज गए तो देशी अंग्रेज आए. उन्होंने इस समस्या के निपटारे या बूझने की कोशिश इसलिए नहीं कि उन्हें इस विवाद के नीचे छुपा हुआ एक वोट बैंक हाथ लग गया. अयोध्या सिसकती रही. उपेक्षित रही, लहूलुहान होती रही. कारसेवकों पर गोली चली. अयोध्या का सब्र टूटा और ढांचा गिर गया.

पाँचवें अध्याय में अयोध्या के भूगर्भ की गवाही है. जिसने अदालत को फैसले के लिए मजबूर कर दिया. अयोध्या में गर्भगृह के नीचे ए.एस.आई की खुदाई में पुराने मंदिर के अवशेष मिले. जिससे साबित हुआ कि विवादित ढाँचा पुराने मंदिर के मलबे पर बना है. सबूत इतने पुख्ता थे कि अदालत भी इसे नजरअंदाज नहीं कर सकी. खुदाई में समूचे मंदिर का नक्शा और अवशेष मिल गए. एक शिलालेख भी मिला जो वहां मंदिर की गवाही देता था. भारतीय पुरातत्व सर्वे की खुदाई की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भगवान राम के जन्मस्थान पर जो मंदिर बना था, उसे ही तोड़ ठीक उसी जगह बाबरी मस्जिद बनाई गयी है. इसलिए दूसरे पक्ष का दावा ख़ारिज करते हुए कोर्ट ने सरकार से वहां एक स्वतंत्र ट्रस्ट के जरिए मंदिर पुनर्निर्माण का आदेश दिया.

अयोध्या में बने रामलला के नए मंदिर का शब्द चित्र है. इस अध्याय में मंदिर की भव्यता और दिव्यता का बारीक विश्लेषण है. मंदिर की निर्माण प्रक्रिया, उसकी विशेषताओं की पड़ताल है. जिसमें इस बात पर भी चर्चा है कि कैसे यह मंदिर भारतीयता का तीर्थ बनेगा. और यह मंदिर युगों तक राम के मूल्यों का ऊर्जा पुंज बनेगा.

छठे अध्याय में उन साधकों का जिक्र है, जिनके बिना राम मंदिर आंदोलन का इतिहास पूरा नहीं होता. बाबर के मंदिर ध्वंस से लेकर आज तक जो-जो लोग इस मंदिर की नींव के पत्थर सरीखे रहे हैं. इन योद्धाओं के बिना इस रामयज्ञ का संकल्प पूरा नहीं हो सकता था. मंदिर निर्माण में इन महानुभावों का योगदान भुलाया नहीं जा सकता. इसलिए इस विवाद को समझने के लिए इनसे आपकी जान-पहचान ज़रूरी है.

सातवां अध्याय मंदिर मस्जिद विवाद का काल क्रम है. जिसके जरिए आपकी उँगलियों पर इस विवाद का इतिहास होगा. इस आंदोलन में कब क्या हुआ? एक नजर में पता चलेगा. भारत विकासशील से विकसित होता हुआ देश है. आधुनिक है. पारंपरिक है. प्रगतिशील है. और पुरातन का पाथेय है. इस सब के बीच भारतीय बने रहने की शर्त अगर कुछ है तो वो परिवार, समाज और संबंधों के प्रति मूल्यबद्ध और नैतिकताबद्ध बने रहना है. राम इसके अग्रदूत हैं. राम सब कुछ नया करते हुए भी हर कदम पर परंपरा को बरतते और निभाते हुए नायक हैं. कृष्ण की दृष्टि से भी व्यापक राम की दृष्टि है. क्योंकि कृष्ण एकल कथा के निर्विकारित, निर्लिप्त और अनासक्त नायक हैं. जबकि राम सामन्जस्य, सहभाव, समभाव और समझौते के साथ जीने वाले आदर्श. राम त्याग पर चलते हैं और कृष्ण कर्म पर. राम के पास कर्म की रिक्तता नहीं है, लेकिन वो त्याग और संतुलन के परिमार्जन से अपने कर्म को कसौटी पर कसते हैं. अयोध्या में सिर्फ मंदिर नहीं बना. इस बहाने इसका समग्र विकास हुआ है. यह विवाद जब चरम पर था तो कुछ लोगों ने कहा यहां अस्पताल बना दिया जाए, कुछ ने कहा यहां धर्मशाला बने, कुछ मतिमंद यहां शौचालय बनाने की मांग भी कर रहे थे. यह संयोग ही है कि अयोध्या के मंदिर के साथ जो कायाकल्प हो रहा है, उसमें यह सब भी बन गया. उन लोगों ने कटाक्ष किया था. पर यह राम की इच्छा थी कि सब बने. अंतरराष्ट्रीय म्युजियम और हवाई अड्डे के साथ.

युग बदल रहा है. तकनीक ने मनुष्य को चुनौती दी है. एआई जैसे प्रयोग व्यक्ति की प्रयोजनमूलकता पर प्रश्न पैदा कर रहे हैं. श्रम, कर्म और अनुशासन को तकनीक नियोजित कर रही है. ऐसे में मानवीयता के लिए सबसे जरूरी पक्ष है संस्कृति का. संस्कृति ही संरक्षक है. भारत की सांस्कृतिक चेतना में सबसे निरपेक्ष भाव से समाहित संज्ञा राम की ही है. ललित कलाओं से लेकर गीत, गायन, गति, गंध तक राम विवर्णित हैं. राम ओसारे में छिपे निर्बल के भी हैं और वैश्विक स्तर पर फैले सांस्कृतिक फलक के भी. राम शास्त्रीय भी हैं और लोक के सोहर भी. राम खिचड़ी भी हैं और अन्नकूट भी. राम जन्म में भी हैं और मरण में भी. राम एकल भी हैं और सामाजिक भी. रामाश्रित सांस्कृतिक चेतना का विस्तार हिंदुकुश से लेकर सागर पर्यंत है और आर्यवर्त से आगे तक भी हैं. इसलिए राम हमारे समय का सबसे बेहतर ‘सांस्कृतिक डिटॉक्स’ हैं.

लेखक – हेमंत शर्मा

प्रकाशक प्रभात प्रकाशन

(पुस्तक की भूमिका में से)

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