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राष्ट्र चिंतन लेखमाला – जाग रहा है सुप्त ‘सनातन’

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नरेंद्र सहगल

सनातन भारत का जागरण काल प्रारंभ हो चुका है. सनातन जगेगा तो भारत बचेगा. भारत बचेगा तो विश्व बचेगा. सनातन अर्थात मानव कल्याणकारी भारतीयता, जिसे वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में हिन्दुत्व के सम्बोधन से जाना पहचाना जाता है. इसी तरह सनातन भारत अर्थात वह प्राचीन वैभवशाली अखंड भारत, जिसने अपने आध्यात्मिक एवं भौतिक ज्ञान विज्ञान को बिना किसी भेदभाव के सम्पूर्ण प्राणी मात्र के लिए सुलभ कर दिया था. वह सनातन भारत, जिसने संसारभर में दुराचारी शक्तियों द्वारा उत्पीड़ित किए जा रहे समाजों के लिए अपने घर के द्वार खोल दिए थे. वह सनातन भारत, जिसके विशाल विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्र शिक्षा के लिए आते थे.

वह सनातन भारत, जो अपनी मानवीय संस्कृति अर्थात ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के आधार पर विश्वगुरु के रूप में सम्मानित था. वह सनातन भारत, जिसने कभी किसी अन्य देश पर आक्रमण करके वहाँ की संस्कृति/सभ्यता और इतिहास को नष्ट नहीं किया. जिसने कभी तलवार के जोर पर धर्मांतरण करके किसी समाज के जीवन को समाप्त नहीं किया.

परंतु सनातन भारत की इस सार्वभौमिक मानवीय पहचान का यह अर्थ कदाचित भी नहीं है कि हम भारतीयों ने कभी शस्त्र नहीं उठाए. भारतीय युद्धवीरों ने सिकंदर जैसे तथाकथित विश्व विजेताओं को धूल चटाई थी. हम भारतीयों ने हूण, शक और कुषाण जैसी दुर्दान्त आक्रांता शक्तियों को न केवल परास्त ही किया, अपितु उन्हें अपने समाज में आत्मसात भी किया. अत्यंत प्राचीन काल में हमने अपने शस्त्र बल से ही रावण जैसी अजेय राक्षसी शक्तियों को पराजित किया था. आधुनिक काल में हमारी ही भरत-भू पर छत्रपति शिवाजी महाराज और दशमेशपिता श्रीगुरु गोबिन्द सिंह जैसे महान धर्मयोद्धा उत्पन्न हुए हैं.

हमारी मानव कल्याणकारी संस्कृति शस्त्र और शास्त्र के सिद्धांत पर आधारित थी. अर्थात् आत्मरक्षा के लिए शस्त्र और शास्त्रों की मर्यादा के लिए शास्त्र. इतिहास साक्षी है कि हम भारतवासियों ने ‘शस्त्र पूजन’ भी किया और ‘शास्त्र पूजन’ भी किया है. शस्त्रों और शास्त्रों का समन्वय यह भारत की भूमि पर ही संभव हुआ. श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम भी थे और धनुर्धारी भी. श्रीकृष्ण योगेश्वर भी थे और सुदर्शन चक्रधारी भी थे. शिव भोले भण्डारी भी थे और त्रिशूलधारी भी थे. शस्त्र और शास्त्र पर आधारित इसी संस्कृति के कारण हम अतीत में भयंकर से भयंकर चुनौतियों का सामना कर सके.

वास्तव में इसी सनातन के कारण हम भारतीय संगठित भी और शक्तिशाली भी बने रहे. परंतु कालांतर में जब इस विश्व विजयी सनातन की पकड़ ढीली पड़ती गई, हम विभाजित भी हुए. हमारी ही भूलों और कमजोरियों की वजह से सनातन सुप्त होता गया, भारत खंडित होता चला गया और हम भारतीय अपने अतीत को भुलाकर विधर्मी जीवन प्रणाली का दामन थामते चले गए. अलगाववाद, जातिवाद और धर्मविमुखता अपना वर्चस्व जमाते चले गए.

हमारी इसी आपसी फूट और जातिवाद का लाभ उठाकर तुर्कों, मुगलों, पठानों और अंग्रेजों ने हम पर घोर अत्याचार किए. बलात् धर्मांतरण की आंधी चली और भारतीयों की एक बहुत बड़ी संख्या इसकी लपेट में आकर अपने ही सनातन का विरोध करने लगी. परिणाम स्वरूप देश भी कटा और राष्ट्रीय समाज का एक हिस्सा भी अराष्ट्रीय हो गया.

उपरोक्त संदर्भ में यदि हम वर्तमान भारत और भारतवासियों की निष्पक्ष समीक्षा करें तो स्पष्ट होगा कि यही राष्ट्रीय तत्व जो सनातन अर्थात हिन्दू पूर्वजों की ही संताने हैं, आज देश की अखंडता, सुरक्षा और स्वाभिमान को चुनौती दे रहे हैं. सनातन पर प्रश्न चिन्ह लगाए जा रहे हैं. सनातन साहित्य को नकारा जा रहा है. अंग्रेजों और वामपंथियों ने सनातन इतिहास को बिगाड़ कर भारत की पहचान को खतरे में डाल दिया है.

जातिवादी और सांप्रदायिक शक्तियां मुखर होकर राष्ट्रीय शक्तियों पर ही सांप्रदायिक्ता फैलाने का आरोप लगा रही हैं. प्रायः सभी विपक्षी राजनीतिक दल भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करने के लिए भारत के प्राण तत्व हिन्दुत्व को ही कटघरे में खड़ा करने का दुस्साहस कर रहे हैं. प्रतिपक्षी दलों का यह अत्यंत हिन्दू विरोधी व्यवहार वास्तव में ‘सनातन भारत’ के पुनरुत्थान में बाधक बनता नजर आ रहा है. आज तो हिन्दू और हिन्दुत्व को भी भिन्न बताकर अपने राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने के मंसूबे घड़े जा रहे हैं.

परंतु निराशा के इस घोर अंधकार में भी आशा की अनेक किरणें उदित हो रही हैं. अनेक गैर राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं के वर्षों पर्यंत परिश्रम और साधना के फलस्वरूप आज भारत का सुप्त सनातन अंगड़ाई लेकर जाग रहा है. सनातन विरोधी शक्तियां धीरे-धीरे परास्त हो रही हैं.

उल्लेखनीय है कि जब भारत के सनातन-पुजारी ने अपने जापान प्रवास के समय वहाँ के सम्राट को गीता की प्रति भेंट की थी, तो भारतवासी खुशी से झूम उठे थे. इसी प्रकार जब भारत के प्रधानमंत्री ने नेपाल में पशुपतिनाथ (शिव) की पूजा विधि विधान के अनुसार की तो भारतीयों का मस्तक ऊंचा उठ गया था. आज तो न केवल अरब (मुस्लिम) देशों में मंदिरों का निर्माण हो रहा, अपितु समूचे विश्व में हिन्दुत्व के प्रति आस्था का जागरण हो रहा है. भारतीय जीवन प्रणाली के आधार स्तम्भ अष्टांग योग और आयुर्वेद को विश्वस्तर पर मान्यता प्राप्त हुई है.

श्रीराम जन्मभूमि पर आज मुगलिया दहशतगर्दी के उस पापमय ढांचे के स्थान पर विशाल राम मंदिर का निर्माण हो रहा है. यह गत लगभग पाँच सौ वर्षों में चार लाख से भी ज्यादा हिन्दुओं के प्राणोत्सर्ग का फल है. काशी में भगवान शिव अपने वास्तविक वैभव को प्राप्त कर चुके हैं. शीघ्र ही मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि भी विधर्मी आघातों से मुक्त हो जाएगी. भारत के समाज की उदित हो रही संगठित शक्ति के फलस्वरूप परतंत्रता के चिन्ह मिट रहे हैं. अत्याचारी विधर्मी शासकों द्वारा बदले गए महानगरों के नाम पुनः अपने वास्तविक नामकरण की ओर बढ़ रहे हैं.

एक समय ऐसा भी था, जब हिन्दू और हिन्दुत्व का नाम लेने से भी लोग परहेज करते थे. परंतु आज हिन्दू होने पर गर्व करने वाले सीना तान कर कह रहे हैं कि 21वीं सदी भारत की है. एक समय था जब टीवी चैनलों पर वामपंथियों, कथित धर्म निरपेक्षवादियों और हिन्दुत्व विरोधियों का ही बोलबाला रहता था. परंतु आज हिन्दुत्व के समर्थकों को सीना तान कर अपना पक्ष रखते हुए देखा जा रहा है. ‘सर तन से जुदा’ की धमकियां देने वालों को हिन्दू समाज की प्रचंड प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है.

यह सनातन भारत की सुप्त चेतना का जागरण काल है. हमारा सनातन सभी अवरोधों को ठोकर मारकर आगे बढ़ रहा है. यही वर्तमान भारत की सभी प्रकट समस्याओं का एकमात्र समाधान है. यही हमारा सनातन विश्व के कल्याण की गारंटी है. अपने चिर सनातन लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हमारे कदम अब रुक नहीं सकते.

हिन्दू राष्ट्र की अनंत शक्ति जग रही.

आर्य-देश की स्वदेश भक्ति जग रही..

आगामी साप्ताहिक लेख का विषय:- सीमोल्लंघन का दुस्साहस न करें सनातन विरोधी.

भारत हिन्दू-राष्ट्र था, है और रहेगा.

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