नई दिल्ली, 09 जून 2025।
वरिष्ठ पत्रकार राकेश शुक्ला द्वारा लिखित पुस्तक “तानसेन का ताना-बाना” का लोकार्पण आज केशव कुंज स्थित विचार विनिमय न्यास सभागार में सम्पन्न हुआ। दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।
मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, “अगर भारत को विश्वगुरु बनना है तो हमें अपने इतिहास, साहित्य और संस्कृति का स्मरण कर उसे समृद्ध करना होगा। हमारा इतिहास, हमारी संस्कृति, हमारी विरासत महत्वपूर्ण बाते हैं जो भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक है। हमें अपनी कमियां दूर करते हुए अपने इतिहास को लिखते रहना चाहिए ताकि नई पीढ़ी को वह बता सकें और दिखा सकें। ऐसी पुस्तकें नई पीढ़ी को उपहार में दी जानी चाहिए, ताकि वे अपनी जड़ों से जुड़ सकें।”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बताया कि तानसेन का संगीत के क्षेत्र में योगदान अतुलनीय है, जिसकी तुलना भी नहीं की जा सकती। तानसेन ने अपने काल में जब शासन में ऐसे लोग बैठे थे जो संगीत को ज्यादा महत्व या प्रोत्साहन नहीं देते थे, तब भी उन्होंने संगीत परम्परा को आगे बढ़ाने और उसको कायम रखने में बहुत संघर्ष किया। तानसेन की साधना को “संगीत के हर स्वरूप के आराध्य और भारत की आध्यात्मिक परंपरा का प्रतीक” बताया और ऐसी परंपराओं को जीवित रखने व समृद्ध बनाने की दिशा में अनवरत प्रयत्न करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा, “तानसेन पर पांच सौ वर्षों बाद भी लेखन जारी है, यह इस बात का प्रमाण है कि उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है। इतिहास उठा कर देखें तो अनेक ऐसे लोग हुए हैं जो तमाम तरह की विपरीत परिस्थितियों के होते हुए भी अपने कर्तृत्व के आधार पर, व्यक्तित्व के आधार पर उनका जीवन कालजयी हो गया। अंग्रेजी में कहते हैं Larger than life Phenomenon. हमें इतिहास के उन व्यक्तित्वों को पुनः स्थापित करना होगा, जिन्हें जानबूझकर भुलाया गया। भारतीय सभ्यता पश्चिम की तरह नहीं है, जहां पीछे देखने और गर्व करने को कुछ नहीं है, अपितु भारत हमेशा न सिर्फ अपने इतिहास से सीख लेता है, बल्कि सतयुग, त्रेतायुग या द्वापर युग के महान मूल्यों को आत्मसात् करने की प्रवृत्ति भी रखता है। एक वक्त था जब भारत अपनी जड़ों से कट गया था, लेकिन अब ये भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का समय है।”
मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि “यह किताब तानसेन के जीवन को समझने और शोध में संदर्भ के रूप में कार्य करने वाली ऐतिहासिक दस्तावेज़ है।”
पुस्तक के लेखक राकेश शुक्ला ने बताया कि “तानसेन की यात्रा सिर्फ अकबर के दरबार तक सीमित नहीं थी, बल्कि वह सतना के छोटे से गांव बांधा से चली थी, और इसके साथ बहुत कुछ है जो इतिहास से छिपा रह गया है।”
कार्यक्रम के दौरान सुरुचि प्रकाशन के प्रतिनिधि राजीव तुली ने बताया कि हमारी संस्कृति में साहित्य की अनंत महिमा बताई गई है। शास्त्र की ऐसी शक्ति है कि वह अनेक संशयों को दूर करती है। एक अच्छी पुस्तक उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने में हमने भी गति पकड़ी है। “हमने पिछले 50 वर्षों में उन पुस्तकों को छापा, जिन्हें कोई नहीं छापता था। अब तक 250 से अधिक पुस्तकें गूगल पर निःशुल्क उपलब्ध हैं, जिन्हें लाखों लोग प्रतिमाह डाउनलोड करते हैं। भविष्य में इन्हें ई-बुक के रूप में और अधिक लोगों तक पहुँचाया जाएगा।”