जयपुर. प्रदेश के डीग जिले के बहज गांव में चल रहे उत्खनन में कुषाण काल से महाभारत काल (हस्तिनापुर) तक के पांच कालखंडों की सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं. बृज क्षेत्र में 50 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद बड़े स्तर पर खुदाई का कार्य हुआ है. जो प्रमाण मिले हैं, वे बहुत ही विलक्षण हैं और पहली बार मिले हैं.
जानकारी के अनुसार डीग को स्कंद पुराण में दीर्घपुर कहा गया है. डीग की मथुरा से दूरी 25 मील है. द्वापर युग से लेकर कुषाण, मौर्य, गुप्त, मुगल काल तक के चिह्न इस क्षेत्र में मिल चुके हैं. यहाँ कुषाण नरेश हुविष्क एवं वासुदेव के भी सिक्के मिले हैं.
अधीक्षक पुरातत्व जयपुर मंडल ने कुछ महीने पूर्व सर्वेक्षण किया था. जिसके बाद खुदाई का प्रस्ताव महानिदेशक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को भेजा गया. 10 जनवरी से खुदाई प्रारंभ की गई थी.
यहां टीले की खुदाई में ढाई हजार वर्ष पुराना यज्ञ कुंड, धातु के औजार, सिक्के, मौर्यकालीन मातृदेवी प्रतिमा का सिर सहित गुंग कालीन अश्वनी कुमारों के मूर्ति फलक और अस्थियों से निर्मित उपकरण एवं महाभारत कालीन मिष्टी के बर्तनों के टुकड़े मिले हैं. इन्हें जयपुर पुरातत्व विभाग को भेज दिया गया है.
ASI का कहना है कि इस प्रकार के अवशेष और औजार अब तक भारत में कहीं नहीं मिले हैं. उत्खनन में अब तक 2500 वर्ष से भी अधिक पुराने अवशेष मिल चुके हैं. अभी एएसआई की ओर से उत्खनन कार्य जारी है. अनुमान के अनुसार यहां महाभारत काल से भी प्राचीन सभ्यता के अवशेष दबे हुए हो सकते हैं. विभाग प्रयास कर रहा है कि महत्वपूर्ण पुरा अवशेषों को डीग संग्रहालय के नंद भवन में गैलरी बनाकर प्रदर्शित किया जाए.
पुरातत्व विभाग के सुपरिटेंडेंट विनय गुप्ता ने बताया कि उत्खनन में सामान्यत: सफेद रंग के मोती पाए जाते हैं, लेकिन बहज गांव के टीले में काले रंग के मनके बड़ी संख्या में मिले हैं. ये बहुत ही दुर्लभ हैं. इनमें अधिकतर मनके शुंग काल के हैं.
उत्खनन में अश्विनी कुमारों की प्राचीन मूर्ति मिली है. अश्विनी कुमारों का नाम महाभारत में द्रस्त्र और नास्त्य था. अश्विनी कुमारों को नकुल और सहदेव का मानस पिता माना जाता है. यहां हवन कुंड से निकली मिट्टी को अलग रखा जा रहा है. इसका विशेष महत्व बताया जा रहा है. हवन कुंड में सिक्के भी मिले हैं.