सूर्यप्रकाश सेमवाल
इस्लाम संख्याबल के आधार पर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मजहब है, जिसको मानने वालों की संख्या लगभग 200 करोड़ से ज्यादा है. इससे अधिक संख्या केवल ईसाइयों की है. ईसाइयों की तरह मुस्लिम भी पूरी दुनिया मे फैले और बसे हुए हैं. लेकिन, जिन देशों में मुस्लिम बहुमत में हैं, उनमें से बहुत कम देशों में ही लोकतंत्र है. जहां मुस्लिम सत्ता में नहीं हैं, वहां मुस्लिम एकता के लिए उम्मा पर जोर देते हैं और पूरी दुनिया में आतंक फ़ैलाने की खुली घोषणा करते रहे हैं. आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने विश्व शक्ति अमेरिका सहित विश्व के कई देशों में खूनी खेल को अंजाम देने के साथ ही सीरिया और इराक के एक बड़े हिस्से पर आज भी कब्जा जमा रखा है. इसमें मोसुल और रक़्का जैसे शहर शामिल हैं. आईएस की स्पष्ट घोषणा है कि अब मुसलमानों के पास दो विकल्प हैं – या तो वे अपने सुरक्षित खोल में रहें और खत्म हो जाएं या फिर वे मौजूदा व्यवस्था से बगावत करें और अपनी जिंदगी और अपने महजब की हिफाजत करें.
विचित्र विडंबना है कि इस्लाम को मानने वाले के प्रति दया और सहानुभूति क्या उम्मा के दायरे में नहीं आती. म्यांमार से भगाए रोहिंग्याओं के लिए भारत को नसीहत देने वाले मुस्लिम देश भी इन रोहिंग्या मुसलमानों को पनाह देने से कन्नी काट रहे हैं… वास्तविकता है कि मुस्लिम बहुसंख्यक देश बांग्लादेश, इंडोनेशिया और अन्य भी, रोहिंग्या शरणार्थियों को लेने के लिए तैयार नहीं हैं.
म्यांमार में अगस्त 2017 में सेना की कार्रवाई के बाद सात लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश भागकर शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. 2017 में म्यांमार की सेना ने 7 लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर निकाल दिया था. म्यांमार की सरकार पर रोहिंग्या मुसलमानों के पूरी तरह से सफाये के आरोप लगते रहे हैं, बेशक म्यांमार का कहना है कि कुछ सैनिकों ने ही रोहिंग्या के खिलाफ युद्ध अपराध किए, पूरी सेना ने नहीं.
म्यांमार की वर्तमान स्थिति पर बांग्लादेश में शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों का मानना है कि इससे उनके वापस लौटने का रास्ता और मुश्किल हो गया है. बांग्लादेश के तटीय जिले कॉक्स बाजार में करीब 10 लाख रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में बुरे हालात में रह रहे हैं.
बांग्लादेश लगातार इस प्रयास में रहा है कि म्यांमार से आए इन लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को बौद्ध-बहुल म्यांमार वापस भेजा जाए. स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि उनको न उनका मूल देश म्यांमार लेना चाहता है और न वे खुद वहां वापस जाना चाहते हैं.
ऐसे समय में जब म्यांमार में तख्तापलट के बाद भयानक हिंसा, विरोध और अराजकता जारी है. बांग्लादेश सरकार पर कुछ रोहिंग्याओं को जबरन एक सुनसान द्वीप पर भेजने का आरोप लग रहा है. बांग्लादेश सरकार सफाई दे रही है कि द्वीप पर केवल उन शरणार्थियों को भेजा जा रहा जो वहां जाना चाहते हैं, जिससे शिविरों में अव्यवस्था कम हो. बांग्लादेश के कॉक्स बाजार से एक नाव में सवार होकर 81 रोहिंग्या रिफ्यूजी जिनमें 64 महिलाएं और लड़कियां तथा 26 पुरुष और लड़के थे, 11 फरवरी को निकले थे. 15 फरवरी को नाव का इंजन फेल हो गया, तब से वे समुद्र में इधर-उधर भटक रहे हैं.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव के अनुसार, भारत ने इन लोगों के लिए खाना और मेडिकल सहायता कोस्ट गार्ड्स के जरिए भिजवाई थी. 81 लोगों में से 8 की मौत भुखमरी और बेहद चुनौतीपूर्ण स्थितियों के चलते हो गई.
उम्मा और दारुल इस्लाम की वकालत करने वाले मुस्लिम देशों के बजाय मानवता को धर्म मानने वाले भारत ने पूर्ण संवेदना रखते हुए मजहब की क्षुद्र सोच से आगे इन रोहिंग्याओं को पानी, भोजन और दवाइयां उपलब्ध करवाकर अपना धर्म निभाया. संयुक्त राष्ट्र की संस्थाएं, अमेरिका सहित पश्चिमी देशों की सरकारें और वैश्विक मानवाधिकार समूह सब रोहिंग्या समस्या से भलीभांति परिचित हैं, लेकिन किसी को भी गंभीर समस्या का हल नहीं सूझ पाया है.
“पर उपदेश कुशल बहुतेरे” की तर्ज पर केवल भारत को शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा करने का ज्ञान बांटा जाता है. उम्मा और दारुल इस्लाम की बात करने वालों का दोगला चेहरा भी दुनिया के सामने आया है, जो इन शरणार्थियों को चिंता तो जताते हैं लेकिन स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं.