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बलिदान दिवस – जम्मू में आतंकियों के मंसूबों को विफल करने वाले रुचिर कौल

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जम्मू कश्मीर. आतंकवादी जम्मू में जड़ें जमाने का प्रयास कर रहे थे, साथ ही वहां से हिन्दुओं को डराकर भगाने के प्रयास में भी लगे थे. आतंकियों को इसके लिए डोडा ज़िले का भद्रवाह उपयुक्त लगा क्योंकि यहाँ के लोग राष्ट्रभक्त थे और आतंकवादियों ने सोचा कि यदि इन्हें भगा दिया जाए तो अन्य जगहों से आतंक और अलगाववाद का ज़्यादा विरोध नहीं होगा.

इसकी शुरुआत 15 अगस्त, 1992 को बेक़सूर लोगों पर ग्रेनेड से हमला और गोलियों की बौछार कर की. धीरे-धीरे ऐसी घटनाएँ बढ़ने लगीं और लोगों में आतंक फैलने लगा. इस परिस्थिति में आतंकवादियों के बढ़ते दुस्साहस का सामना करने के लिए रुचिर कुमार कौल आगे आए. 4 जुलाई 1958 को जन्मे रुचिर कुमार बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे.

उन्होंने आम नागरिकों में इतनी हिम्मत पैदा कर दी कि वे तलवार और कुल्हाड़ों से भी आतंकवादियों का सामना करने को तैयार थे. आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं की ओर राज्य और केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए रुचिर कुमार ने एक जन-आंदोलन प्रारंभ किया जो 41 दिनों तक चलता रहा.

दुकानदार भी हड़ताल में शामिल हो गए और सरकारी कर्मचारी 28 दिनों तक काम पर नहीं गए. फलस्वरूप स्कूल, कॉलेज, बैंक, पोस्ट ऑफिस आदि लगातार बंद रहे. आतंकवादियों को पता चल गया कि उनके नापाक मंसूबों पर पानी फेरने वाले रुचिर कुमार हैं और जिसके पश्चात रुचिर आतंकवादियों की हिट-लिस्ट में आ गए. आतंकियों द्वारा कई बार रुचिर कुमार की हत्या का प्रयास किया गया, लेकिन हर बार नाकाम रहे.

7 जून, 1994 को आतंकियों ने घात लगाकर हमला किया

लेकिन, अंततः 7 जून 1994 को जब रुचिर कुमार अपने घर के पास, खेत में काम कर रहे थे. इसी दौरान आतंकवादियों ने उन पर घात लगाकर हमला किया और गोलियां बरसाकर उनकी हत्या कर दी. अपने देश को समर्पित रुचिर कुमार वीरगति को प्राप्त हुए.

उनका जीवन हमेशा लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा क्योंकि बिना किसी सहायता के उन्होंने आम लोगों को आतंकवादियों का सामना करना सिखाया और डोडा ज़िले में आतंकवाद को पनपने नहीं दिया. करीब ३ दशक बाद भी रुचिर कौल स्थानीय लोगों में आतंक का मुकाबला करने के साहस का स्रोत बने हुए हैं, हुतात्मा को हमारा कोटि कोटि नमन.

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