सुबह साढ़े पांच बजे उठकर ग्राहकों के लिये चाय बनाने के बाद ट्रेनिंग, फिर पढ़ाई और शाम को फिर दुकान का काम निपटाकर व्यायामशाला जाना, करीब सात साल तक संकेत सरगर की यही दिनचर्या थी.
सांगली (महाराष्ट्र) में एक छोटी सी पान की दुकान (टपरी) से लेकर बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने तक भारोत्तोलक (वेटलिफ्टर) संकेत महादेव सरगर संघर्ष का उदाहरण हैं. उन्होंने साबित किया है कि जहां चाह होती है, वहां राह बन ही जाती है.
संकेत सरगर ने 22वें राष्ट्रमंडल खेलों में पुरुषों के 55 किग्रा वर्ग में 248 किग्रा वजन उठाकर भारत को पहला पदक (रजत पदक) दिलाया था. वह क्लीन एंड जर्क में दूसरे प्रयास के दौरान चोटिल होने के कारण महज एक किलोग्राम से स्वर्ण पदक से चूक गए.
संकेत के बचपन के कोच मयूर सिंहास ने बताया कि संकेत ने अपना पूरा बचपन समर्पित कर दिया. सुबह साढ़े पांच बजे उठकर चाय बनाने से रात को व्यायामशाला में अभ्यास तक उसने एक ही सपना देखा था कि देश का नाम रोशन करे और अपने परिवार को अच्छा जीवन दे सके. अब उसका सपना सच हो रहा है.
सांगली की जिस ‘दिग्विजय व्यायामशाला’ में संकेत ने भारोत्तोलन का ककहरा सीखा था, माता-पिता ने बड़ी स्क्रीन पर संकेत का मुकाबला देखा. पदक जीतकर संकेत निर्धन परिवारों से आने वाले खिलाड़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं. टॉप्स में शामिल होने से पहले संकेत के पास ना तो कोई प्रायोजक था और ना ही आर्थिक रूप से वह संपन्न था. उसके पिता उधार लेकर खेल का खर्च उठाते और हम उसकी खुराक और अभ्यास का पूरा खयाल रखते.
संकेत के पिता महादेव सरगर का कहना है कि उनके जीवन के सारे संघर्ष आज सफल हो गए. मैं स्वयं खेलना चाहता था, लेकिन आर्थिक परेशानियों के कारण मेरा सपना अधूरा रह गया. मेरे बेटे ने आज मेरे सारे संघर्षों को सफल कर दिया. बस, अब पेरिस ओलंपिक पर नजरें हैं.
संकेत की छोटी बहन काजल सरगर ने भी इस साल खेलो इंडिया खेलों में महिलाओं के 40 किग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीता था. फरवरी 2021 में एनआईएस पटियाला जाने वाले संकेत ने भुवनेश्वर में इस साल राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक अपने नाम किया था.