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सुरक्षा बलों ने 2010 में सुरक्षाकर्मियों पर हमले में संलिप्त खूंखार वामपंथी आतंकी को गिरफ्तार किया

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रायपुर. सुरक्षा बलों को एक अभियान में बड़ी सफलता मिली है. खूंखार वामपंथी नक्सली को बीजापुर से गिरफ्तार किया है. सुरक्षा बलों ने नक्सिलयों की सबसे सशक्त बटालियन में से एक पीएलजीए-1 के खूंखार नक्सली मोतीराम को धर दबोचा है.

रिपोर्ट्स के अनुसार रविवार को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), विशेष कार्य बल (एसटीएफ) और जिला पुलिस की संयुक्त टीम ने मोतीराम को पटेलपारा और गोलगुंडा गांवों के बीच गिरफ्तार किया.

वामपंथी आतंकी मोतीराम ने अपने माओवादी साथियों के साथ 2010 में ताड़मेटला गांव के पास सुरक्षाकर्मियों पर हमले को अंजाम दिया था. इस हमले में 76 सुरक्षाकर्मी बलिदान हो गए थे. इसके अलावा उस पर 2017 के बुर्कापाल नक्सली हमले में भी शामिल होने के सबूत हैं, जिसमें सीआरपीएफ के 25 जवान बलिदान हो गए थे.

बीजापुर जिले के नईमेद क्षेत्र का रहने वाला मोती राम बस्तर संभाग के दक्षिणी क्षेत्र में कई बड़े आतंकी हमलों में संलिप्त रह चुका है. क्षेत्रों में लगभग 11 वर्षों तक आतंक का पर्याय रहे आतंकी मोतीराम पर छत्तीसगढ़ सरकार ने 8 लाख का इनाम भी रखा था. कई माओवादी आतंकी गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाने वाला मोतीराम कुख्यात माओवादी मडावी हिड़मा के साथ भी काम कर चुका है.

जिस पीएलजीए बटालियन नंबर वन का मोतीराम सदस्य है, उसकी अगुवाई मडावी हिड़मा ही करता है. और अब उसकी गिरफ्तारी से ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि अभी हाल ही में हुए बीजापुर हमले के मुख्य साजिशकर्ता मडावी हिड़मा के ठिकानों के बारे में भी जानकारी निकाली जा सकेगी.

इसके साथ ही बस्तर संभाग में सबसे सशक्त मानी जाने वाली माओवादियों की पीएलसीए बटालियन नंबर वन के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारियां माओवादी मोतीराम के माध्यम से निकाली जा सकती हैं.

छह अप्रैल, 2010 को सुकमा जिले के ताड़मेटला गांव में माओवादियों ने सुरक्षाकर्मियों को घेर कर हमला कर दिया था. इसमें सीआरपीएफ के 75 और जिला बल के एक जवान बलिदान हो गए थे.

चिंतलनार कैंप से करीब पांच किमी दूर हुए इस हमले में ताड़मेटला गांव के पास गश्त कर रहे सीआरपीएफ के जवान आतंकियों  के झांसे में आकर जंगल के अंदर घुसे थे. वहां पेड़ों की आड़ लेकर पहले से मौजूद माओवादियों ने खुले मैदान में जाकर फंस चुके जवानों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दी थीं.

सुबह करीबन छह बजे शुरू हुई यह मुठभेड़ एक घंटे ही चली थी. यह वही हमला था, जिसके बाद दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों और अध्यापकों ने हमले के बाद जश्न मनाया था.

 

 

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