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सेवा इंटरनेशनल – युद्ध के साये में अपनों का साथ

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10 मार्च तक 19 हजार लोगों को सहायता पहुंचाई गई

रश्मि दधीचि

लाखों जिंदगियां बमों के निशाने पर थीं व मृत्यु के डर ने जीवन को पल – पल मौत की आशंकाओं के बीच लाकर खड़ा कर दिया था. 24 फरवरी, 2022 रूस के यूक्रेन पर हमले के कारण रूसी नागरिकों के साथ भारत से वहां जाकर पढ़ रहे छात्रों का जीवन भी संकट में आ गया था. खाने पीने की दुकानें लुट रही थीं. सड़कों पर ट्रांसपोर्ट की जगह टैंक घूम रहे थे. मिसाइलों, बम के धमाकों और बंदूकों के बीच जीवन हर पल हार रहा था. उड़ीसा के सिद्धेश्वर साहू अपने छह साथियों के साथ यूक्रेन से भारत जाने के लिए स्लोवाकिया, पोलैंड, हंगरी, जिस भी बॉर्डर की तरफ जाते, उधर ही बम धमाकों की दिल दहलाने वाली आवाजें हर पल चोट कर रही थीं. ऐसे में दिमाग में एक ही सवाल था, क्या हम भारत लौट पाएंगे या नहीं? इस अंधकार में एक ही रोशनी थी जो उन्हें विदेश में हर पल, भारतीय होने की शक्ति से परिचय करवा रही थी, हर घड़ी जीने की उम्मीद और रास्ता दिखा रही थी. सेवा इंटरनेशनल यूरोप के वे भारतीय कार्यकर्ता जो दिन- रात उनके साथ फोन कॉल और मैसेज से संपर्क कर रहे थे. सभी छात्र सेवा कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शन से 6 दिन का सफर और 80 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके यूक्रेन के बॉर्डर पर पहुंचे.

आयुष, कृष्णा, साहू जैसे सैंकड़ों बच्चे सकुशल भारत पहुंचकर भारतीय होने पर गर्वित हैं व सेवा इंटरनेशनल का आभार व्यक्त कर रहे हैं. परदेश में जहां हजारों मील दूर कोई अपना नहीं था, सेवा इंटरनेशनल के कार्यकर्ताओं  ने परिवार के बड़ों की भूमिका अदा की.

सेवा इंटरनेशनल के अंतरराष्ट्रीय संयोजक व संघ के प्रचारक रहे श्याम परान्डे जी बताते हैं कि “सेवा इंटरनेशनल” भारत व भारत से बाहर के देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों का स्वयंसेवी संघ है जो करीब 30 वर्ष विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों के साथ मिलकर भारत व अन्य देशों में विभिन्न सेवाकार्य संचालित कर रहे हैं.

एक ओर यूक्रेन के विभिन्न शहरों में घरों, होस्टलों में कीव के युद्धग्रस्त क्षेत्र के बंकरों में फंसे लोग हर पल अपने बचने की उम्मीद खो रहे थे तो वहीं दूसरी ओर भारत में उनके अभिभावक जो हर पल अपने बच्चों के लिए भगवान के आगे रो-रो कर प्रार्थना कर रहे थे. इन दोनों के बीच सेतु का काम कर रहा था सेवा इंटरनेशनल.

अपने परिवार से कोसों दूर तमिलनाडु से यूक्रेन पढ़ने गई दो छात्राएं जो वहां राइली शहर में फंस चुकी थीं. वे बताती है कि, 1 मार्च को जब सेवा इंटरनेशनल यूरोप के योगेश जी से फोन पर संपर्क हुआ, तब हमारी सांस में सांस आई. अगर आज हम भारत में सुरक्षित पहुंचे हैं तो सेवा इंटरनेशनल यूरोप की वजह से. जिन्होंने पल पल हमारा मार्गदर्शन किया और हमें भारत की फ्लाइट्स तक पहुंचाया. हमारे भोजन, पीने का पानी और होटल में रहने की व्यवस्था निःशुल्क थी.

संपर्क निदेशक कुमार शुभम जी बताते हैं – 25 फरवरी को सेवा इंटरनेशनल यूरोप के कुछ कार्यकर्ता सहायता के लिए यूक्रेन के बॉर्डर पर पहुंचे. पहली बार यूक्रेन के 30 कार्यकर्ताओं से संपर्क किया गया और एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया. इस नंबर पर हर दिन 800 से 900 फोन कॉल आने लगे. फंसे हुए लोगों की विस्तृत जानकारी गूगल फार्म के जरिए हासिल की. 10 मार्च, 2022 तक 19000 नागरिकों को प्रत्यक्ष सेवा देकर उनके देशों की फ्लाइट्स तक सुरक्षित पहुंचाया गया. जिनमें 12000 भारतीय थे.

80 सेवा कार्यकर्ताओं व भारत सरकार की सहायता से यूक्रेन व आसपास के पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया व अन्य देशों के दूतावासों व प्रशासनिक अधिकारियों तथा अन्य देशों के सेवा कार्यकर्ताओं से संपर्क किया. चिन्हित लोगों को बस ट्रांसपोर्ट द्वारा यूक्रेन की सीमा से लगे विभिन्न देशों के बॉर्डर तक लाना आसान नहीं था. कई बार यूक्रेन के नागरिकों का क्रोध तो कभी अचानक गिरते बम के धमाके बार-बार रास्ता बदलने पर मजबूर कर रहे थे. हर कोई अपनी जान बचाकर यूक्रेन से भागने की कोशिश में लगा था. इसीलिए बॉर्डर पर बहुत लंबी लंबी कतारें लगी थी. 2 या 3 दिन के इंतजार के बाद किसी का नंबर आ रहा था.

भारत की मिट्टी में ही सेवा के बीज हैं. शायद यही कारण है कि वर्षों से यूक्रेन में रहने वाले वे भारतीय स्वयंसेवक, जिनके घर बमों के निशानों पर हैं आज भी उनमें से कई अपने परिवार को भारत भेजकर कीव में अपनी जान की परवाह किए बगैर निरंतर वहां लोगों की सेवा सहायता कर रहे हैं.

यह भारत के संस्कार ही हैं जो भारतीयों की रगों में खून बनकर दौड़ते हैं.

यूक्रेन और भारत के समय में 6 घंटे का अंतर है. फिर भी लगातार दिन-रात कार्य करते हुए सभी को मानसिक सांत्वना व मार्गदर्शन और हौसला देकर ये स्वयंसेवक हर घड़ी, हर पल सबका साथ निभा रहे हैं. अफ्रीकी छात्रों को सेवा यूरोप ने जो सहायता की, वह विशेष उल्लेखनीय है.

यही भारतीयता की पहचान है कि हम दुनिया के किसी भी कोने में रहें, मानवता का परिचय देते हुए निःस्वार्थ सेवा में लग जाते हैं.

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