सैकड़ों वर्षों से खाना पकाना और बच्चों को सुसंस्कारित करना यही महिलाओं का कार्यक्षेत्र रहा है. परंतु आज स्थिति बदली है. पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर महिलाएं अलग-अलग क्षेत्रों में अपना वर्चस्व प्रस्थापित कर रही हैं. आर्थिक स्वतंत्रता के साथ प्रतिष्ठा भी महिलाओं को प्राप्त हो रही है.
लेकिन, फल की अपेक्षा रखे बिना सेवाभाव से एक महिला शमशान घाट में अंतिम विधि का क्रियाकर्म करती दिखाई दे तो वह अविश्वसनीय चित्र होगा. नासिक की सुनिता पाटील पिछले २० वर्षों से अंतिम संस्कार का कार्य समिधा की तरह कर रही हैं.
सुनिता के पिता रामचंद्र हिरवे की पंचवटी शमशान भूमि के समीप ही लकड़ी की दुकान थी. अंतिम संस्कार के लिये लकड़ियां देने का कार्य करते थे. सुनिता जी का जन्म भी शमशान के पास ही हुआ था, और पली-बड़ी भी इसी वातावरण में. ऐसे में कोई भी मृत्यु को देख-देख संवेदनाहीन हो सकता है. परंतु, सुनिता जी में संवेदनशीलता और बढ़ गई.
कुछ वर्ष बाद नासिक महापालिका ने संस्कार के लिए लकड़ियां निःशुल्क देने का निर्णय लिया तो हिरवे परिवार ने चिताएँ तैयार करना और अंतिम संस्कार के लिये सहायता करने करने का निर्णय किया. यह व्रत सुनिता पाटील ने आगे भी जारी रखा.
बिना थके, बिना रुके मदद के लिये तैयार
शमशान भूमि का नाम भी लिया जाए तो मन कांप उठता है. मृतदेह के पास रोने वाले रिश्तेदार, भड़कने वाली चिता और अंतिम संस्कार के बाद फैलने वाली घोर स्तब्धता, ऐसे वातावरण का डर सबको लगता है. परंतु इसी वातावरण में सुनिता जी मृतदेह स्वच्छ करना, हाथ-पैरों को घी-तेल लगाना और मृतदेह को चिता पर रखना यह कार्य पिछले बीस वर्षों से कर रही हैं. आज तक उन्होंने लगभग 15 हजार दिवंगतों की सद्गति का मार्ग प्रशस्त किया है. आज भी महिलाओं को शमशान तक जाने की अनुमति नहीं है. दूसरी ओर सुनिता जी ने अनेकों लोगों की अंतिम यात्रा सुकर करने का कार्य किया है.
परिवार का साथ, टिप्पणियों को किया अनदेखा
मृतदेह के लिये चिता तैयार करने का कार्य करके कोई महिला लौटी हो तो उसके द्वारा पकाया हुआ खाना कौन खाएगा? क्या वो दिन में दस बार नहाती होगी? ऐसा विचार करने वाला कोई ना कोई सुनिता जी को रोज ही मिलता है. कुछ महिलाओं ने उनके पति को पूछा कि आपने इसे घर में रखा कैसे? लेकिन, सुनिता जी को परिवार का पूरी साथ मिला. पति राजेंद्र पाटील भी उनके कार्य में सहयोग देते हैं. इतना ही नहीं उनके बेटे भी शिक्षा के साथ समाजसेवा का दायित्व निभाते हैं.
शमशान के वातावरण से वे समरस हो गई हैं. जहां रिश्तेदारों को भी अपने मृत व्यक्ति के पास जाने में डर लगता है, वहीं पर सुनिता जी को महिला होकर भी डर कभी नहीं लगा. उनका मानना है कि मृतदेहों की सेवा में पुण्य मिलता है.
कोरोना संक्रमितों का अंतिम संस्कार…पैरों तले जमीन खिसकी
लॉकडाउन के काल में शमशान भूमि में दो मृतदेहों को घी लगाकर अंतिम संस्कार किया. उनके रिश्तेदार दूर क्यों खड़े हैं, यह देखा तो मन में शंका आई. दो दिनों के बाद जब उन मृतदेहों का डेथ सर्टिफिकट देखा तो सुनिता जी के होश उड़ गए. उसमें मृत्यु का कारण लिखा था – कोरोना. सुनिता जी के परिवार के पैरों तले जमीन खिसक गई. इसके बाद सावधानी बरतते हुए मृत्यु प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण देखने के बाद ही अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया.
केवल पैसों के लिये नहीं, बल्कि सेवाभाव से यह कार्य कर रही हैं. सेवा कार्य से मिलने वाला आशीर्वाद उन्हें अमूल्य लगता है. उनके सेवाकार्य का महत्त्व अनेकों ने समझा. राज्य सरकार के हिरकणी सम्मान के साथ ही अटल गौरव पुरस्कार, सावित्रीबाई सम्मान आदि सम्मानों से उन्हें सराहा गया है.
भगवान पर भरोसा और आत्मविश्वास – सुनिता पाटील, पंचवटी अमरधाम
उन दो कोरोना संक्रमित मृतकों का अंतिम संस्कार करने के पश्चात मैं डर गई थी. परंतु, ये जोखिम उठाकर इच्छाशक्ति के बल पर मैंने ये काम किया. दोनों अंतिम संस्कारों के समय उनके रिश्तेदार दूर से ही देख रहे थे. उनके हाथों में सेनेटाइजर के स्प्रे थे, जो अपने हाथों पर लगा रहे थे. मृतक कहीं कोरोना संक्रमित तो नहीं, ऐसा विचार मेरे मन में आया. डेथ सर्टिफिकेट आया तो सच पता चला. परंतु, भगवान पर मेरा भरोसा और आत्मविश्वास के कारण मुझे और मेरे परिवार को कुछ नहीं हुआ.