नई दिल्ली. श्री मंदिर सुरक्षा अभियान के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी. कृष्णा रेड्डी से भेंट की और श्री जगन्नाथ हेरिटेज कॉरिडोर परियोजना में हो रही अनियमितताओं पर एक ज्ञापन सौंपा. इससे पहले प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक और राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण के अध्यक्ष से भी भेंट की.
पत्रकार वार्ता में अभियान के प्रवक्ता, अनिल धीर ने कहा कि प्रस्तावित परियोजना के कार्यान्वयन में निर्धारित कानूनों का उल्लंघन मंदिर और इसकी दीवारों की संरचनात्मक स्थिरता के लिए खतरा है. सरकार 3200 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश पर बुनियादी सुविधाओं और विरासत और वास्तुकला के विकास (ABADHA) योजना के विस्तार के तहत पुरी को विश्व स्तरीय विरासत शहर के रूप में विकसित करने की योजना लेकर आई है. इसके लिए अगस्त 2019 में मंदिर के 75 मीटर के दायरे से अतिक्रमण हटाने के लिए अभियान शुरू किया गया था. सदियों पुराने मठों और संरचनाओं को ध्वस्त करने के बाद, कोविड संकट के कारण अभियान को रोक दिया गया था. लेकिन अगस्त 2020 को फिर से शुरू किया गया.
श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष और पुरी के राजा दिव्यसिंह देब ने पिछले साल 24 नवंबर को मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की उपस्थिति में तीन दिवसीय यज्ञ के अंत में परियोजना की नींव रखी थी. शिलान्यास के बाद मंदिर के पास खंभों के साथ निर्माण कार्य तेज गति से शुरू हुआ. विवाद तब सामने आया, जब विशेषज्ञों ने खुदाई के लिए भारी मशीनरी के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई, क्योंकि इससे 12वीं शताब्दी के मंदिर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. सवाल उठाए गए कि क्या एनएमए या भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) ने ऐसी निर्माण गतिविधि के लिए मंजूरी दी थी.
21 फरवरी, 2022 को एएसआई की महानिदेशक वी विद्यावती ने मंदिर का दौरा किया था और इसके आसपास चल रहे प्रोजेक्ट का निरीक्षण किया था. अपने विजिट नोट में, कहा था, “प्रस्तावित सुविधाएं मंदिर के निषिद्ध क्षेत्र में आती हैं. सरकार से यह भी अनुरोध किया गया था कि पूरे मंदिर परिसर की आध्यात्मिक प्रकृति के साथ पूरे डिजाइन को सरल बनाया जाए. यह बहुत चिंता का विषय है कि मंदिर के 100 और 200 मीटर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विध्वंस और निर्माण कार्य हो रहे हैं. एनएमए और एएसआई की अनुमति नहीं ली गई है. जो काम मंदिर के लिए खतरा है, उसे बंद करना चाहिए.”
जबकि परियोजना राज्य के निर्माण विभाग के तहत ओडिशा ब्रिज एंड कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (ओबीसीसी) द्वारा ली गई है, जो टाटा प्रोजेक्ट्स की देख रेख में काम कर रही है. जब परिधीय विकास परियोजना को हाथ में लिया गया था, तो एक सलाहकार समिति का गठन किया गया था. जिसमें एएसआई को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया. अन्य अनिवार्य आवश्यकताओं जैसे विरासत प्रभाव मूल्यांकन और ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वेक्षण को नहीं लिया गया. मंदिर के पास खुदाई की गतिविधियों के लिए विशालकाय मिट्टी को हिलाने वाली मशीनों और उत्खनन का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह सब मंदिर और इसकी दीवारों की संरचनात्मक स्थिरता के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है.
मंदिर सुरक्षा अभियान सभी गतिविधियों को तत्काल रोकने और प्राचीन मंदिर पर जोखिम के दृष्टिकोण का मूल्यांकन करने के लिए एक विशेषज्ञ टीम का गठन करने की मांग करता है. लाखों भक्तों की भावनाओं को प्रभावित करने वाली एक भीषण आसन्न दुर्घटना को टालने के लिए यह आवश्यक है. भुवनेश्वर में एएसआई के क्षेत्र निदेशक ने एक आरटीआई के जवाब में कहा था कि जो काम चल रहा है, उसके लिए कोई अनुमति नहीं दी गई थी.
पत्रकार वार्ता में श्री मंदिर सुरक्षा अभियान के संयोजक विनय कुमार भुयन, केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय बिहार के कुलपति प्रो प्रफुल मिश्रा व वरिष्ठ अधिवक्ता अजित पटनायक भी उपस्थित थे.