गुरु नानक जी की दिव्य आध्यात्मिक यात्राओं को उदासी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि गुरु नानक जी दुनिया के दूसरे सबसे अधिक यात्रा करने वाले व्यक्ति हैं. उनकी अधिकांश यात्राएं उनके साथी भाई मरदाना जी के साथ पैदल ही की गई थीं. उन्होंने चार दिशाओं – उत्तर, पूर्व, पश्चिम की यात्राओं को एक अभिलेख के रूप में जाना जाता है. वैसे ऐसे भी अभिलेख हैं जो इस बात का संकेत करते हैं कि गुरु नानक जी ने सबसे अधिक यात्राएं की थी. गुरु नानक जी ने 1500 से 1524 की अवधि के मध्य दुनिया की अपनी पांच प्रमुख यात्राओं में 28,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की थी. उन स्थानों की संक्षिप्त जानकारी दी गई है जहाँ पर गुरु नानक जी ने भ्रमण किया था —
पहली उदासी : 1500-1506 ई.
यह लगभग 7 वर्षों तक चला और निम्नलिखित कस्बों और क्षेत्रों का भ्रमण किया – सुल्तानपुर, तुलम्बा आधुनिक मखदुमपुर, जिला मुल्तान), पानीपत, दिल्ली, बनारस (वाराणसी), नानकमत्ता (जिला नैनीताल, यूपी, टांडा वंजारा (जिला रामपुर), कामरूप (असम), आसा देश (असम), सैदपुर (आधुनिक अमीनाबाद, पाकिस्तान), पसरूर (पाकिस्तान), सियालकोट (पाकिस्तान).
दूसरी उदासी : 1506-1513 ई.
यह लगभग 7 वर्षों तक चला और निम्नलिखित कस्बों और क्षेत्रों का दौरा किया – धनसारी घाटी, सांगलादीप (सीलोन)
तीसरी उदासी : 1514-1518 ई.
यह लगभग 5 वर्षों तक चला और निम्नलिखित शहरों और क्षेत्रों का भ्रमण किया – कश्मीर, सुमेर परबत, नेपाल, ताशकंद, सिक्किम, तिब्बत. माना जाता है कि चीन भी गए थे, इसके समर्थन करने के लिए साक्ष्यों का संग्रह चल रहा है.
चौथी उदासी : 1519-1521 ई.
यह लगभग 3 साल तक चला और इसमें निम्नलिखित शहरों और क्षेत्रों का भ्रमण किया – इराक, मक्का, तुर्की और अरब देश. ऐसा कहा जाता है कि सीरिया में बाबा फ़रीद की मस्जिद के पास ‘वली हिंद की मस्जिद’ नाम की एक मस्जिद है. माना जाता है कि अफ्रीका महाद्वीप गए थे, इसके समर्थन करने के लिए साक्ष्यों का संग्रह चल रहा है.
तुर्की में गुरु नानक जी के स्मारक पर निम्नलिखित लिपिबद्ध है –
तुर्की में गुरु नानक जी के स्मारक पर अरबी / फारसी / तुर्की भाषाओं में (गुरुमुखी लिपि में लिप्यंतरित) ਜਹਾਂਗੀਰ ਜਮਾਂ ਹਿੰਦ ਲਤ ਅਬਦ ਅਲ ਮਾਜੀਦ ਨਾਨਕ (जहांगीर जामन हिंद लाट अल मजीद नानक) लिखी गई है, जिसका पंजाबी में अर्थ है : जमाने दा मालिक, हिन्द दा बंदा , रब दा नानक जिसका हिन्दी में अर्थ है आज के भगवान, भारत के निवासी, भगवान के आदमी नानक. इसके आगे भी काफी लंबी पंक्तियां लिखी हुई हैं, किन्तु शिलालेख अब सुपाठ्य नहीं है. इसके बारे में अभी भी बहुत सारे रहस्योद्घाटन होना बाकी है. हालांकि, स्मारक की सबसे निचली पंक्ति में 1267 हिजरी (1850 CE) की तारीख़ स्पष्ट रूप से पठनीय है.
बगदाद के पीर बहलोल से मिलना और मठ का निर्माण
मदीना की यात्रा करने के बाद, गुरु नानक देव बगदाद पहुंचे और शहर के बाहर मरदाना के साथ एक मंच संभाला. गुरु नानक देव जी ने प्रार्थना करने के लिए लोगों का आह्वान किया, उन्होंने अपनी प्रार्थना में मुहम्मद अल रसूल अल्लाह को हटाकर उसके बदले सतनाम शब्द का प्रयोग किया, जिस पर पूरी आबादी खामोश हो गई और उग्र होकर गुरु नानक जी को एक कुएं में धकेल दिया और पत्थरों से मारा दिया गया. इतनी पत्थरबाजी के बाद गुरू नानक जी कुएं से बिना किसी चोट के निशान के बाहर निकल आए. उन्हें सकुशल वापस निकलते देखने के बाद इराक के अस्थायी और आध्यात्मिक नेता, पीर बहलोल शाह ने उन्हें पीर दस्तगीर और अब्दुल कादिर गिलानी कहकर पुकारा, क्योंकि उन्हें समझ में आ गया कि गुरु नानक जी हिंद (भारत) के लिए एक पवित्र और सिद्ध संत थे और उन्होंने गुरु नानक जी को आध्यात्मिक चर्चा के लिए आमंत्रित किया.
पीर बहलोल शाह, जो एक ईरानी थे, लेकिन इराक में आकर बस गए थे. उन्होंने गुरु नानक से तीन सवाल पूछे और तीनों का समुचित उत्तर पाने के बाद उन्होंने गुरु नानक जी के साथ किए गए दुर्व्यवहार के लिए स्थानीय लोगों को क्षमा करने और लंबे समय तक रहने की अपील की. उनके आग्रह पर गुरु नानक जी 17 दिनों तक रहे. गुरु नानक जी ने अपने इस प्रवास के दौरान पीर बहलोल के बेटे के साथ पारलौकिक दुनिया की (सूक्ष्म यात्रा) यात्रा की. वो दो सेकंड के एक अंश में हवा में अंतर्ध्यान हो गए और जब वापस लौटे तो पवित्र भोजन का एक कटोरा धरती पर लाए. आज विज्ञान भी सूक्ष्म यात्रा पर काम कर रहा है. गुरु नानक जी के वहां जाने के बाद, बहलोल ने उनकी याद में एक स्मारक खड़ा किया, जहां गुरुनानक जी बैठते थे और प्रवचन देते थे. कुछ समय बाद मंच के ऊपर एक कमरे का निर्माण किया गया, जिसमें तुर्की भाषा में शिलालेख के साथ एक पत्थर की पट्टियां लगाई गई. 2003 के युद्ध के दौरान इस मठ को पूरी तरह से उजाड़ दिया गया.