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अपने घर से करें पंच परिवर्तन का शुभारंभ – डॉ. पूर्णेंदू सक्सेना

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भोपाल, 12 जून. राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ, मध्य क्षेत्र के ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-प्रथम’ के समापन समारोह में क्षेत्र संघचालक डॉ. पूर्णेंदू सक्सेना ने कहा कि हमें ‘पंच परिवर्तन’ का कार्य घऱ से प्रारंभ करना है. सामाजिक समरसता, नागरिक कर्तव्य, स्वदेशी, पर्यावरण और कुटुम्ब प्रबोधन का वातावरण घर में बनाना होगा. विभिन्न जाति समाज के लोग आपस में संवाद करके आगे की राह बनाएं. हिन्दू समाज आत्मग्लानि को त्याग कर गौरव की अनुभूति के साथ जाग उठा है. सूत्रपात की इस बेला में भी संघ आने वाले समय की ओर देख रहा है. समाज को सर्वस्पर्शी बनाना होगा. परिवार इकाई सशक्त हो. सामाजिक समरसता की बात अपने घर से शुरू हो. स्वदेशी का आग्रह हो. कुटुम्ब का भाव बढ़ाना चाहिए. अपनी मातृभाषा को बढ़ावा दें. जब हिन्दू जागरण हो रहा है तो सबसे पहले इसका जागरण कुटुम्ब से होना चाहिए.

शारदा विहार आवासीय विद्यालय के परिसर में आयोजित समापन समारोह में मंच पर मुख्य अतिथि पूर्व कमांडर इन चीफ अंडमान और निकोबार कमांड वाइस एडमिरल बिमल वर्मा और वर्ग के सर्वाधिकारी सोमकांत उमालकर उपस्थित रहे. स्वयंसेवकों ने 20 दिन के प्रशिक्षण का प्रदर्शन किया. संचलन, घोष, समता, योग, आसन, नियुद्ध, पदविन्यास और राष्ट्रभक्ति गीत की सामूहिक प्रस्तुति दी. वर्ग कार्यवाह रवि अग्रवाल ने अतिथियों का परिचय कराया एवं वर्ग का प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किया.

डॉ. पूर्णेंदू ने कहा कि हिन्दू समाज की मजबूत संस्था है – मंदिर. हमारे मंदिर सामाजिक चेतना के संवाहक बनने चाहिए. बड़े मंदिरों द्वारा सेवा प्रकल्प संचालित किए जाते हैं. हमारे आसपास के छोटे मन्दिर भी सेवा और राष्ट्रीय चेतना के केंद्र बनें, इसका हमें विचार करना चाहिए. तीर्थाटन भी भारत की परंपरा है. तीर्थ स्थालों के विकास के लिए हमें सरकार पर ही क्यों आश्रित रहना चाहिए. स्थानीय लोगों को वहां आने वाले श्रद्धालुओं की चिंता करनी चाहिए.

उन्होंने आग्रह किया कि हमें अपने मन मंदिर में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए. हमारे मन विशाल बनें, जिनमें सबके लिए स्थान हो. वैश्विक पटल पर बढ़ते भारत के प्रभाव का उल्लेख किया. हमारे युवाओं को भारत के आर्थिक वातावरण का लाभ उठाना चाहिए. आने वाले 25 वर्षों में भारत को आगे ले जाने के लिए आज की युवा पीढ़ी को विचार करना होगा. उन्हें नौकर नहीं, अपितु नौकरी देने वाला बनना होगा. आज भारत भू–राजनैतिक परिदृश्य में भी मजबूत हुआ है. भारत का युवा विदेश जाए तो अपने भारत को याद रखे.

डॉ. पूर्णेन्दू सक्सेना ने कहा कि साम्प्रदायिक आधार भारत की चेतना नहीं है. भारत का आधार सबको साथ लेकर चलने का है. देश में जब साम्प्रदायिकता के आधार पर बंग-भंग किया गया तो इस देश ने उसे अस्वीकार कर दिया. विचार करने की बात है कि जिस समाज ने 1910 तक साम्प्रदायिक विभाजन स्वीकार नहीं किया, उसी ने 1947 में साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन स्वीकार कर लिया. हम अपना स्व भूल गए, इसलिए यह परिस्थिति बनी. उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना करते समय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने यही सोचा कि स्वतंत्र होने के बाद देश फिर से परतंत्र न हो. इस देश को अपना समझने वाले समाज में राष्ट्रीयता का भाव भरने के लिए उन्होंने 1925 में संघ की स्थापना की.

मानसिक स्वास्थ्य के लिए करें ध्यान और योग – बिमल वर्मा

वाइस एडमिरल बिमल वर्मा ने कहा कि भारतीय सशस्त्र सेनाओं में धर्म और जाति का भेद नहीं है. सेना का अपना ही धर्म है. सेना की यूनिटें अलग–अलग प्रान्त से आती हैं. सेना की हर यूनिट में सर्वधर्म स्थल का निर्माण किया जाता है. एक ही छत के नीचे सभी धर्मों के श्रद्धा केंद्र रहते हैं. अपने देश की सेना के प्रति आरएसएस को बहुत प्यार है. स्वयंसेवकों को सेना की संस्कृति के बारे में आम लोगों को भी बताना चाहिए. हमें भ्रष्टाचार के प्रति कठोरता लानी होगी. भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में समाज ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. उन्होंने शिक्षार्थियों के योग प्रदर्शन की सराहना करते हुए कहा कि मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हम सबको नियमित योग करना चाहिए.

4 प्रांतों के 382 स्वयंसेवकों ने लिया प्रशिक्षण

संघ की रचना में मध्य क्षेत्र में चार प्रांत हैं – छत्तीसगढ़, महाकौशल, मालवा और मध्यभारत. इन चारों प्रांतों से कार्यकर्ता विकास वर्ग-1 में कुल 382 शिक्षार्थी आए थे, जिनमें छत्तीसगढ़ से 78, महाकौशल से 85, मालवा से 118 और मध्यभारत से 97 चयनित स्वयंसेवक शामिल हुए. म्यांमार (ब्रह्मदेश) से भी 4 स्वयंसेवक वर्ग में आये थे. प्रशिक्षण के दौरान शिक्षार्थियों को सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी, सह सरकार्यवाह मुकुंदा जी सहित अन्य वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ.

स्मृति चिह्न के तौर पर भेंट किए ‘सीड बॉल’

वर्ग में शामिल 382 शिक्षार्थियों, शिक्षकों, पालकों एवं अधिकारियों को स्मृति चिह्न के रूप में आम के बीज से तैयार किए गए ‘सीड बॉल’ भेंट किए गए. वर्ग में ही कार्यकर्ताओं ने लगभग 1000 सीड बॉल तैयार किए थे. इन्हें रखने के लिए कागज के हस्तनिर्मित थैले भी बनाए. इन थैलों पर लिखा ‘आम के आम-गुठलियों के भी दाम’ महत्वपूर्ण संदेश देता है. सभी शिक्षार्थी एवं अन्य लोग सीड बॉल को अपने स्थान पर जाकर रोपेंगे.

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