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लोककला के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने की कहानी

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रांची. लगभग लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई झारखंड की लोक कला सोहराई और टिकूली कला का आकर्षण देश के साथ विदेशों में भी देखने को मिल रहा है. रांची के बूटी मोड़ निवासी कामिनी सिन्हा विदेशों तक अपनी पहचान बना चुकी हैं. यही नहीं, वह अपने साथ 36 अन्य महिलाओं को सोहराई और मधुबनी पेंटिंग के माध्यम से आत्मनिर्भर भी बना रही है. वह जनजाति महिलाओं को आदिवासी और लोक कला आर्ट वर्क का निःशुल्क प्रशिक्षण देती हैं.

कामिनी कहती हैं कि उनके घर में केवल पढ़ाई-लिखाई का माहौल था. लेकिन उनकी रुचि कला में थी. घर के लोगों को कहना था कि सही से पढ़ाई करके सरकारी नौकरी प्राप्त करनी है. इसके अलावा कोई काम नहीं करना. फिर शादी हो गई, तब भी अपना काम शुरू करने या प्राइवेट नौकरी के लिए मदद नहीं मिली. इसी दौरान मेरा कुछ लोगों से मिलना हुआ तो उन्होंने नौकरी पर रख लिया. मगर घर से सपोर्ट नहीं था. बेटा भी उस वक्त काफी छोटा था. मेरे लिए यह वक्त बहुत मुश्किल भरा था. मगर हार नहीं मानी. घर वालों से छिपाकर सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक काम करने जाया करती थी. आज मेरे डिजाइन किए कपड़े आदि की मांग विदेशों में भी होती है.

उन्होंने बताया कि कुछ ही वर्ष की मेहनत के बाद बाजार से ऑर्डर मिलने लगे. इससे मुझे और लोगों की जरूरत होने लगी. इसके बाद ओम क्रिएशन के नाम से एक संस्थान खोला. काम आगे बढ़ा तो परिवार को भी पता चल गया. इसके बाद परिवार से भी सपोर्ट और सहायता मिली.

अब साड़ी, बेडशीट, कुशन कवर, स्टॉल, दुपट्टा, वेस्टकोट, क्लच, बैग, घर में सजावट के सामान आदि सभी पर सोहराई, टिकूली और मधुबनी पेंटिग बनाई जाती है. हमारे उत्पाद सीधे रामगढ़, पटना, इंदौर, भोपाल, दिल्ली, इलाहाबाद, ओडिशा, दिल्ली के साथ कई देशों में सप्लाई होते हैं.

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