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दो उपग्रहों की अंतरिक्ष डॉकिंग करने में मिली सफलता, विश्व का चौथा देश बना

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नई दिल्ली। भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष में दो उपग्रहों की डॉकिंग प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया। भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया।

12 जनवरी को इसरो ने डॉकिंग के ट्रायल के दौरान दोनों सैटेलाइट को तीन मीटर से भी कम दूरी पर लाकर वापस सुरक्षित दूरी पर पहुंचा दिया था। इसरो ने 30 दिसंबर, 2024 को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट लॉन्च किया था। पीएसएलवी सी60 रॉकेट के मदद से दो छोटे सैटेलाइट SDX01 और SDX02 को लॉन्च किया गया था। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च कर 475 किलोमीटर सर्कुलर ऑर्बिट में स्थापित कर दिया गया था।

इसरो की सफलता पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों को बधाई दी। प्रधानमंत्री ने एक्स प्लेटफॉर्म पर लिखा – ‘उपग्रहों की अंतरिक्ष डॉकिंग के सफल प्रदर्शन के लिए इसरो के हमारे वैज्ञानिकों और संपूर्ण अंतरिक्ष बिरादरी को बधाई। यह आने वाले वर्षों में भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है’।

https://x.com/isro/status/1879749119759311078

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स्पेस डॉकिंग

अंतरिक्ष डॉकिंग दो तेज गति से चलने वाले अंतरिक्ष यान को एक ही कक्षा में लाकर पास लाने और एक साथ जोड़ने की जटिल प्रक्रिया है। यह क्षमता अंतरिक्ष में बड़ी संरचनाओं को इकट्ठा करने या उपकरण, चालक दल या आपूर्ति को स्थानांतरित करने में काम आती है।

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) का निर्माण इसी तकनीक का उपयोग करके किया गया था, जिसमें विभिन्न मॉड्यूलों को अलग-अलग प्रक्षेपित किया गया। फिर अंतरिक्ष में एकसाथ मिलाकर स्थापित किया गया। निरंतर डॉकिंग मिशन, आपूर्ति, नए चालक दल के सदस्यों और मॉड्यूलों को पहुंचाकर इंटरनेशनेशन स्पेस स्टेशन काम को सुचारु बनाए रखते हैं। पुराने चालक दल के सदस्यों को पृथ्वी पर वापस लौटने में सहायता करते हैं।

अनडॉकिंग – जब अंतरिक्ष में अलग अलग तेजी से घूमते हुए दो स्पेसक्राफ्ट या सैटेलाइट को पास लाकर जोड़ते हैं और फिर अलग कर देते हैं तो इसे अनडॉकिंग कहते हैं।

डॉकिंग, अनडॉकिंग तकनीक भारत के चंद्रयान-4 मिशन में काम आएगी। जिसमें यान चांद पर जाएगा और फिर सैंपल लेकर चांद पर उतरने वाला हिस्सा वापस अंतरिक्ष में घूमते हुए रॉकेट से जुड़ेगा, जो पृथ्वी पर वापस आएगा।

इसी तकनीक का उपयोग भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को बनाने में होगा। 2040 में जब एक भारतीय को चांद पर भेजा जाएगा और वापस लाया जाएगा, तब भी डॉकिंग और अनडॉकिंग की आवश्यकता रहेगी। डॉकिंग से उपग्रहों की मरम्मत, ईंधन भरने और उन्हें उन्नत करने की सुविधा मिलती है।

डॉकिंग और अनडॉकिंग में कई उन्नत तकनीकों और प्रणालियों का उपयोग किया जाता है, जससे अंतरिक्ष यान सुरक्षित रूप से जुड़ सकें और अलग हो सकें।

  1. गाइडेंस, नेविगेशन और कंट्रोल (GNC) –

ऑटोमैटिक गाइडेंस सिस्टम – यह सिस्टम अंतरिक्ष यान को अपने लक्ष्य (जैसे अंतरिक्ष स्टेशन) की ओर सटीक दिशा में ले जाता है। इसमें रडार, ऑप्टिकल सेंसर, और लिडार (LiDAR) जैसी तकनीक शामिल होती हैं।

मैनुअल कंट्रोल – कुछ मामलों में अंतरिक्ष यात्री मैनुअल कंट्रोल का उपयोग कर सकते हैं, विशेषकर जब स्वचालित प्रणाली ठीक से काम नहीं कर रही हो।

  1. डॉकिंग पोर्ट और हार्डवेयर

डॉकिंग एडॉप्टर – यान के डॉकिंग पोर्ट और अंतरिक्ष स्टेशन के डॉकिंग पोर्ट को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए विशेष एडॉप्टर उपयोग किए जाते हैं।

लॉंचिंग मैकेनिज्म – यह यांत्रिक सिस्टम यान को पोर्ट से सुरक्षित रूप से जोड़ता है और एयर वैक्यूम सील से बंद कर देता है।

सॉफ्ट डॉकिंग सिस्टम – पहले यान धीरे-धीरे संपर्क करता है। फिर सॉफ्ट कैप्चर होता है।

हार्ड डॉकिंग सिस्टम – इसके बाद यान मजबूती से लॉक हो जाता है।

  1. सेंसर और कैमरे

रेडार और लिडार – दूरी और गति को मापने के लिए इनका उपयोग किया जाता है। दोनों सैटेलाइट्स में लगे सेंसर और कैमरे इसमें मदद करते हैं।

ऑप्टिकल और इंफ्रारेड कैमरे – विजुअल डॉकिंग में मदद करने के लिए, विशेषकर मैनुअल डॉकिंग के दौरान।

  1. संचार प्रणाली

रेडियो लिंक – यान और स्टेशन के बीच लगातार संचार बनाए रखने के लिए।

डेटा लिंक – रीयल-टाइम डेटा ट्रांसफर के लिए, ताकि धरती पर मौजूद मिशन नियंत्रण और अंतरिक्ष यात्री एक-दूसरे से संपर्क में रहें।

  1. प्रोपल्शन और थ्रस्टर्स

फाइन कंट्रोल थ्रस्टर्स – डॉकिंग प्रक्रिया के दौरान यान की स्थिति को सटीक रूप से नियंत्रित करने के लिए।

ऑर्बिटल अडजस्टमेंट – यान की गति और स्थिति को ठीक करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

  1. स्वचालित डॉकिंग सिस्टम (ऑटोमैटिक डॉकिंग)

रूस की कुरस (Kurs) प्रणाली और स्पेस एक्स की ड्रैगन यान जैसी स्वचालित डॉकिंग प्रणालियां उन्नत सेंसर और सॉफ़्टवेयर का उपयोग करती हैं, जिससे बिना मानव हस्तक्षेप के यान खुद डॉकिंग कर सकें।

  1. मिलिट्री और मानवरहित मिशन

कई मानवरहित मिशन में स्वचालित डॉकिंग सिस्टम का प्रयोग होता है, जैसे रूस की प्रोग्रेस और स्पेसएक्स की कार्गो ड्रैगन यान।

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