नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को मध्य प्रदेश के भोजशाला परिसर के धार्मिक चरित्र का निर्धारण करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अध्ययन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने मामले में केंद्र, राज्य सरकारों और एएसआई से जवाब मांगा है, लेकिन सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. हालांकि, रिपोर्ट के परिणाम पर इस स्तर पर कार्रवाई नहीं की जानी है, अदालत ने स्पष्ट किया.
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने मार्च में एएसआई को धार जिले में संबंधित स्थल पर सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था, जहां भोजशाला मंदिर के साथ-साथ कमाल मौला मस्जिद भी है.
न्यायमूर्ति एस ए धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति देवनारायण मिश्रा की पीठ ने कहा था कि स्मारक की प्रकृति और चरित्र को ‘रहस्य से मुक्त और भ्रम की बेड़ियों से मुक्त करने’ की आवश्यकता है.
उच्च न्यायालय का निर्णय एक रिट याचिका में एक वादकालीन आवेदन पर आया था, जिसमें हिन्दुओं के लिए भोजशाला परिसर को फिर से देने और मुसलमानों को परिसर में नमाज अदा करने से रोकने की मांग की गई थी.
उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने परिसर के भीतर कुछ संरचनाओं के साथ-साथ कुछ दस्तावेजों पर प्रकाश डाला, जो बताते हैं कि मंदिर, मस्जिद से पहले का है, और मस्जिद को कथित तौर पर मंदिर को ध्वस्त करके बनाया गया था.
प्रतिवादियों में से एक, मौलाना कमालुद्दीन ने रेस ज्यूडिसियाटा के सिद्धांत का हवाला देते हुए मुकदमे की विचारणीयता को चुनौती दी. उन्होंने कहा कि 2003 में उच्च न्यायालय की प्रधान पीठ ने इसी तरह की एक रिट याचिका खारिज कर दी थी.
उन्होंने दलील दी कि राज्य सरकार और एएसआई सरकार के प्रभाव में हैं और न्यायालय को मुसलमानों के हितों के खिलाफ भोजशाला वाग्देवी मंदिर के अस्तित्व के पक्ष में पक्षपातपूर्ण रुख का समर्थन नहीं करना चाहिए, जो वर्षों से नमाज अदा कर रहे हैं.