शिमला (विसंकें). इस बार रक्षाबंधन का त्यौहार स्वदेशी राखियों के साथ होगा. भाईयों की कलाई पर स्वदेशी राखियां सजेंगीं. कांगड़ा जिला के शाहपुर के रैत गांव की रहने वाली महिलाओं ने चील के पेड़ की पत्तियों से राखियां निर्मित की हैं. महिलाओं को स्वरोजगार उपलब्ध करवाने में सहयोग मिला, साथ ही आत्मनिर्भर रक्षाबंधन की मुहिम को भी बल मिला है.
सीमा पर चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय सैनिकों पर हिंसक हमले के कारण लोगों में चीनी वस्तुओं के प्रति उदासीनता है. लोग मजबूरी में भी चीनी माल का उपयोग नहीं करना चाहते. ऐसे में सुदर्शना देवी के प्रयोग ने लोगों को स्वदेशी राखी प्रयोग करने की प्रेरणा प्रदान की है. सुदर्शना ने इस काम के लिए महिलाओं का एक समूह बनाया. जिसके बाद प्रदेश में आसानी से उपलब्ध चीड़ के वृक्ष की पत्तियों को संग्रहित करके अपनी कल्पना को नया रंग प्रदान किया.
लोगों में वस्तुओं की गुणवता के प्रति आशंका न रहे, इसके लिए सरकार सीएम स्टार्ट-अप योजना के तहत सुदर्शना एवं महिलाओं को सीएसआईआर अनुसंधान केंद्र पालमपुर में प्रशिक्षण दिलवा रही है.
राखी का पर्व भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का परिचायक है, इस बार स्वदेशी राखियों के कारण इस पर्व की पावनता और बढ़ी है. भारत-चीन के तनाव के बाद चीनी वस्तुओं का आकर्षण समाप्त हो रहा है. इस बार भारतीय बाजार स्वदेशी राखियों से पटे हुए हैं और लोग भी स्वदेशी राखियों की मांग कर रहे हैं.
चीड़ से निर्मित राखियां न केवल वर्तमान की स्थितियों की ही दृष्टि से प्रासंगिक हैं, बल्कि इससे समाज को अनेक संदेश मिल रहे हैं. एक ओर स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल की प्रेरणा मिल रही है, दूसरी ओर महिलाओं को रोजगार उपलब्ध हुआ है. इतना ही नहीं प्रति वर्ष प्रदेश में चीड़ के जंगलों में आग लगने से लाखों की क्षति हो जाती है, जिसका मुख्य कारण यह चीड़ की पतियां रहती हैं. सुदर्शना ने दिशा दिखाई है कि बहुतायत में संकट का कारण बनने वाली चीड़ की पतियों से भी कुछ उत्कृष्ट कार्य किया जा सकता है.