बालाघाट. रक्षाबंधन पर बाजार में चीन में बनी या चीनी कच्चे माल से बनी राखियों भरमार होती है. चीनी सामान के बहिष्कार की बात भी हर बार उठती है. लेकिन गलवान की घटना के पश्चात देश में चीनी सामान के बहिष्कार के बीच मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में रक्षाबंधन पर विशेष प्रकार की राखियां नजर आएंगी. यह राखियां गोबर से बनी होंगी. इस पहल से जिले में रोजगार के अवसर भी पैदा हो रहे हैं. गोबर से बनने वाली राखियों में मिलाई जाने वाली अन्य सामग्री से मच्छरों से भी बचाव होगा. अब तक करीब दो हजार राखियां बनाई जा चुकी हैं. जिले की वारासिवनी तहसील के ग्राम दीनी में भुवनानंद उपवंशी ने यह प्रयोग शुरू किया है. इसके लिए पांच क्विंटल गोबर को सुखाकर 52 प्रकार की राखियां तैयार करवाई जा रही हैं. अभी तक दो हजार से अधिक राखियां बन चुकी हैं और एक लाख राखियां बनाने का लक्ष्य है. एक रंग-बिरंगी राखी बनाने में ढाई रपये का खर्च आया है.
गोबर को सुखाकर बनाया जाता है पाउडर
उपवंशी ने बताया कि केंद्र सरकार ने चीन के बहुत सारे एप पर प्रतिबंध लगा दिया है और अब दुकानदारों ने चीन में बनी राखियों का बहिष्कार किया है. इस कारण चीनी राखियों के विकल्प के रूप में स्वदेशी राखियां बनाने का फैसला लिया. इसके लिए गोबर को सुखाकर पाउडर बनाया. उसमें पांच तत्व मिलाकर पंचगव्य राखी तैयार करवा रहे हैं. इससे आठ से 10 लोगों को रोजगार मिल रहा है. गोमाता के गोबर के पाउडर की राखियों के लिए वारासिवनी, बालाघाट, लालबर्रा, कटंगी सहित अन्य जगहों से फोन आने लगे हैं. अब कम समय में राखियां तैयार करना चुनौती है.
ऐसे तैयार होती हैं राखियां
– गोबर तीन दिन में सूखता है.
– लोहे के खलबत्ते में गोबर को पीसा गया.
– एक किलो पाउडर में दो एमएल सेट्रोनिला ऑइल, 10 ग्राम नीम, 10 ग्राम मदार यानी रूही, 10 ग्राम तुलसी, 10 ग्राम गवारगम के बीज का मिश्रण मिलाया जाता है.
– एक किलो गोबर पाउडर में 200 राखियां बनती हैं.
– कलाई में राखी बंधी होने से मच्छर पास नहीं आएंगे.
– बाजार में पांच से 15 रपये तक बिकेंगी राखियां.
– नागपुर से सीखा डिजाइनर राखी बनाने का तरीका.
इस बार गलवान की घटना के बाद लोगों के साथ-साथ कारोबारी भी सचेत हैं. कैट यानी कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स आंगनवाड़ी और कच्ची बस्तियों की महिलाओं से राखी बनवा रही है.
एक राखी कारीगर सुंदरी ने सीएनबीसी-आवाज़ से बात करते हुए कहा कि 250 -300 राखी पैक करती हूँ, रोज़ाना 500 रुपये तक कमा लेती हूं, पहले घरों मे काम करती थी, लेकिन कोरोना के कारण काम छूट गया था. दूसरी ओर दिल्ली में सेवा भारती के प्रकल्प के तहत सेवा बस्ती की बहनों द्वारा भी राखियां तैयार की जा रही हैं. जिनकी बाजार में काफी मांग है.