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जीवन के बाद कर्मयोगी हस्तीमल जी की देह भी राष्ट्र को समर्पित

उदयपुर. ‘तन समर्पित मन समर्पित और यह जीवन समर्पित, चाहता हूं मातृ-भू तुझे कुछ और भी दूं...’ इन पंक्तियों के मर्म को चरितार्थ करते हुए...