मुंबई (विसंकें). मकर संक्रांति 15 जनवरी से प्रारंभ हुआ श्रीराम जन्मभूमि निधि समर्पण एवं सपर्क अभियान ऐतिहासिक होगा. माघ पूर्णिमा 27 फरवरी तक चलने वाले अभियान के अंतर्गत सवा पांच लाख से अधिक गांवों तथा 12 करोड़ से अधिक परिवारों तक पहुंचने का अनुमान था. लेकिन समाज का उत्साह देख प्रतीत होता है कि समस्त आंकड़े पीछे रह जाएंगे.
समाज के विविध आर्थिक स्तरों के, विविध जाति धर्मों के, घुमंतु समाज के रामभक्त भी अपना समर्पण श्रीराम के चरणों में किया है. सेवा बस्तियों में रहने वाले, वयोवृद्ध, दिव्यांग, दूध-पेपर आदि बेचने वाले रामभक्त अपना योगदान दे रहे है.
मुंबई के कार्यकर्ताओं के कुछ अनुभव…..श्रीराम भारत के जन-जन के मन में बसे हैं
1). कांदिवली की एक बस्ती में ४ मंजिला इमारत में घूमते समय एक फ्लैट का दरवाजा खटखटाया. एक मां जी ने दरवाजा खोला. प्रथम दृष्ट्या घर की स्थिति देखते ही ध्यान में आ गया कि हमें यहां से कुछ नहीं लेना चाहिए और पत्रक माता जी के हाथों में थमा कर चले जाना चाहिए, लेकिन हैरत की बात ये थी कि मां जी अंदर जाकर ५१ रूपए ले आईं और कहा मेरे पास बस यही है. और मुझे ये देना ही है.
हालांकि कूपन १०, १०० और १००० रु के ही हैं. लेकिन माताजी की भावना का आदर करते हुए, रामसेवक ने स्वयं अपनी जेब से रु ५० जोड़कर निधि में डाला और रु १०० का कूपन माताजी को सौंप दिया. प्रभु श्रीराम के लिए गिलहरी का योगदान भी उतना ही बड़ा था, जितना अन्य महारथियों का.
2). रामजी के काम में हाथ बंटाने के लिए हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार आगे आ रहा है. एक जगह घर में वृद्ध दंपत्ति को बताया गया कि रामसेवक अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण हेतु समर्पण राशि लेने आए हैं तो मां जी ने अपने पति को बताया और फिर दोनों अंदर चले गए. रामसेवक सोच रहे थे कि वे अब आएंगे, अब आएंगे….लेकिन करीब १० दस मिनट हो गए, कोई बाहर नहीं आया. लिहाजा राम सेवकों ने वहां से जाना ही बेहतर समझा.
रामसेवक सड़क पर कुछ दूर आगे बढ़े थे कि वृद्ध मां जी उनके सामने आकर खड़ी हो गईं, और कहा कि मेरा समर्पण भी तो आप लेते जाओ. थोड़ी देर लग गई मुझे आने में. कार्यकर्ता हैरान थे, उन्होंने मां जी से समर्पण निधि लेकर कूपन प्रदान किया.
3). मालाड की चालों में घूमते समय भी कुछ ऐसा ही अनुभव देखने को मिला. जब चाल के लोगों को समर्पण राशि देते हुए देख, एक मकान के निर्माण कार्य में जुटा कडिया (राज मिस्त्री) भी नीचे उतर आया और कहा `आप राम मंदिर के लिए धन जुटा रहे हैं तो मेरा भी १०० रु का समर्पण लेते जाइए. कम से कम इसी बहाने मेरा प्रणाम भगवान तक पहुंच जाएगा.’
4). नवी मुंबई के रबाले में 16 जनवरी को निधि संकलन कार्यालय का उद्घाटन हुआ. देवदासी समाज, नाथ संप्रदाय, विविध समाज बांधवों के साथ महापालिका कर्मचारियों की कार्यक्रम में उपस्थिति रही. आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं, फिर भी इन घुमंतु समाज बांधवों ने श्रीराम के चरणों में यथाशक्ति निधि समर्पण किया.
वरणगांव
5). देवगिरी के वरणगांव में सेवा बस्ती में राम सेवक निधि समर्पण अभियान की जानकारी देने गए थे. बस्ती में एकलव्य नगर में भील समाज के बंधु भगिनी ने श्रीराम के चरणों में निधि समर्पित की. मछली पकड़ कर, लकड़ी तोड़कर आजीविका कमाने वाला यह समाज राम कार्य में पीछे नहीं रहा. अंबाजोगाई के अंबासागर परिसर में नाथजोगी, वैदु आदि घुमंतु लोगों ने अपनी बस्ती में निधि समर्पण किया.
मेरा भी योगदान स्वीकारें, दिव्यांग व्यक्ति का अनुरोध
देवगिरी. परळी बैजनाथ में श्रीराम मंदिर निधि समर्पण अभियान के दौरान रामचंद्र खोडके ने भी निधि समर्पण किया. स्वयं भगवान का नाम धारण करने वाले रामचंद्र दिव्यांग हैं. परिवार की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं. परंतु, जब श्रीराम मंदिर निर्माण में सहयोग की चर्चा सुनी तो राम सेवकों से कहा – मुझे भी गिलहरी की तरह अपना योगदान देना है. भैया, कृपया मेरा योगदान भी स्वीकारें….
दूध बेचने वाले ने किया 11000 का निधि समर्पण
अंबाजोगाई. संघ के एक स्वयंसेवक की दुकान में दूध बेचने वाले वाडेकर काका हो प्रतिदिन कई स्वयंसेवक मिलते थे. उनसे अनेक विषयों पर चर्चा और बातचीत भी होती थी. एक दिन श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निधि समर्पण अभियान का विषय निकला. काका ने कहा, मुझे भी श्रीराम मंदिर के लिये योगदान देना है. उनकी आर्थिक स्थिति देख कार्यकर्ताओं को लगा कि वे ज्यादा से ज्यादा 500 रु ही दे पाएंगे.
श्रीकृष्ण नगर के अभियान प्रमुख अरविंद मुलजकर और अन्य एक दो कार्यकर्ता वाडेकर काका के आग्रह पर उनके घर गए. देखा तो, एक कुर्सी पर श्रीराम जी की प्रतिमा रखी हुई थी. सभी ने मिल कर उस प्रतिमा का पूजन किया और नारियल चढ़ाकर सब को प्रसाद बांटा. इसके बाद काका ने 11000 रु का धनादेश कार्यकर्ताओं को सौंप दिया. कार्यकर्ताओं के मन में आश्चर्य भी था, और प्रसन्नता भी. प्रातःकाल से दूध बेचकर एक-एक लीटर के लिये केवल पच्चीस पैसे कमाने वाले वाडेकर काका ने 11000 रु श्रीराम के चरणों मे अर्पण किये थे.