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तीस्ता सीतलवाड़ को उच्च न्यायालय से झटका; जमानत याचिका खारिज, तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश

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कर्णावती. गुजरात उच्च न्यायालय ने तीस्ता सीतलवाड़ को झटका देते हुए न्यायालय में दायर नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी. साथ ही 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर झूठे सबूत गढ़ने से संबंधित मामले में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया.

शनिवार को जस्टिस निर्जर देसाई की पीठ ने सीतलवाड़ की जमानत याचिका खारिज कर दी. जस्टिस देसाई ने उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया. तीस्ता सीतलवाड़ अंतरिम जमानत हासिल करने के बाद जेल से बाहर हैं. आदेश में कहा कि आवेदक सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई अंतरिम जमानत पर बाहर है, इसलिए उसे तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है.

जमानत की मांग करते हुए सीतलवाड़ के वकील ने तर्क दिया कि सीतलवाड़ के खिलाफ लगाए आरोप बिल्कुल भी लागू नहीं होते हैं. उनके खिलाफ जालसाजी के आरोप हैं, लेकिन उन्होंने कभी किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए. हलफनामा या बयान का मसौदा तैयार करना जालसाजी नहीं है.

इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि हलफनामे की तैयारी और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत करना एक स्थानांतरण याचिका का समर्थन करने के लिए हुआ था, और यह जकिया जाफरी द्वारा अपनी शिकायत दर्ज करने से चार साल पहले हुआ था.

न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के पश्चात याचिका खारिज कर दी. सीतलवाड़ के अधिवक्ता ने न्यायाधीश से अपने आदेश पर 30 दिनों के लिए रोक लगाने का अनुरोध किया, जिससे वह सर्वोच्च न्यायालय का रुख कर सकें और क्योंकि वह लगभग एक साल से अंतरिम जमानत पर हैं. लेकिन न्यायमूर्ति देसाई ने इस अनुरोध को खारिज कर दिया. तीस्ता सीतलवाड़ को 2 सितंबर, 2022 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम जमानत दी गई थी.

सीतलवाड़ और सह-अभियुक्त व पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार को पिछले साल 25 जून को गुजरात पुलिस ने हिरासत में लिया था. इसके बाद एक अदालत ने पुलिस रिमांड समाप्त होने के बाद 2 जुलाई को उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया था.

क्या थी एसआईटी की रिपोर्ट?

रिपोर्ट्स के अनुसार, तीस्ता सीतलवाड़ सर्वोच्च न्यायालय से राहत मिलने के बाद सितंबर 2022 में जेल से बाहर आईं. पिछले साल एसआईटी ने कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर कहा था कि तीस्ता सीतलवाड़ गुजरात दंगों से जुड़े मामलों में फर्जी दस्तावेज बनाकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक पारी खत्म करने और उन्हें सजा दिलाना चाहती थीं.

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