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देश को संकल्पित मातृशक्ति की आवश्यकता

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प्रमुख संचालिका शांताक्का द्वारा मातृप्रेरणा विशेषांक का विमोचन

पुणे. राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांताक्का जी ने कहा कि प्रेम, त्याग और अपनेपन की भावना यानी मातृत्व है. भारतीय महिलाओं में मातृत्व जागृत है. छत्रपति शिवाजी महाराज को बनाने वाली राजमाता जीजाबाई की तरह आज की महिलाओं में भी संकल्पित मातृशक्ति की आवश्यकता है.

शांताक्का जी गणेश सभागार में आयोजित ‘मातृप्रेरणा’ विशेषांक के विमोचन कार्यक्रम में संबोधित कर रही थीं. इस अवसर पर संस्कृति जागरण मंडल के अध्यक्ष डॉ. श्रीरंग गोडबोले, लेखिका शेफाली वैद्य, सांस्कृतिक वार्तापत्र के संपादक मिलिंद शेटे, अतिथि संपादक विनिता तेलंग आदि उपस्थित थे. राजमाता जीजाबाई के 350वें स्मरण वर्ष के अवसर पर सांस्कृतिक वार्तापत्र की ओर से विशेषांक का प्रकाशन किया गया है.

शांताक्का जी ने कहा कि क्षमता होने के बावजूद करियर के लिए मातृत्व को नकारना ठीक नहीं है. महिलाओं को माता के रूप में राष्ट्र निर्माण में अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए. जागृत देशभक्त नागरिकों के निर्माण हेतु संकल्पित मातृशक्ति आवश्यक है.

शांताक्का जी ने कहा कि गरीबी और दुख होने के बावजूद भारतीय माताओं का हैपिनेस कोशेंट अधिक है. देश में 68 प्रतिशत महिलाएं आनंदित हैं. विनोबा भावे ने सिखाया की मां यानी त्याग की मूर्ति है. राष्ट्र और प्रजा का निर्माण मातृशक्ति का उत्तरदायित्व है. शुभ-अशुभ का विचार न करते हुए, दुख सहते हुए परिवार के कल्याण हेतु त्याग करने वाली भारतीय नारी है.

शेफाली वैद्य ने कहा कि मातृत्व का मतलब केवल बच्चों को जन्म देना नहीं है, बल्कि उसके पीछे एक सांस्कृतिक विचार है. अपना सर्वस्व समर्पित कर बच्चों को स्वयंपूर्ण बनाना ही मातृत्व है. राजमाता जिजाऊ और अहिल्यादेवी ने अपना मातृत्व इस देश के लोगों को समर्पित किया. केवल महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुषों में भी मातृत्व होता है. इसी कारण हम संत ज्ञानेश्वर को माऊली (मां) कहते हैं.

मिलिंद शेटे ने कहा कि विभिन्न मार्गों से हिन्दुत्व की तार छेड़ने का कार्य सांस्कृतिक वार्तापत्र पत्रिका करती है. मेघना घांगरेकर ने सूत्र संचालन किया.

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