हमेशा गुलजार रहने वाले भोपाल शहर ने इतिहास की एक ऐसी काली रात देखी है, जिसे शायद ही इतिहास के पन्नो से कभी मिटाया जा सके. उस काली रात को याद करते ही आज भी कई लोग अपनी आंखों को नम होने से नहीं रोक पाते क्योंकि उस रात सैकड़ों परिवारों ने अपनों को खोया था. वो रात थी 2-3 दिसम्बर की, जिस दिन राजा भोज की इस सुंदर नगरी को किसी की काली नजर लगी थी… जी, हम बात कर रहे हैं भोपाल गैस त्रासदी की….
भोपाल की गैस त्रासदी पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है. तीन दिसंबर, 1984 को आधी रात के बाद यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली जहरीली गैस (मिक या मिथाइल आइसो साइनाइट) ने हजारों लोगों की जान ले ली थी. मरने वालों की संख्या को लेकर मदभेद हो सकते हैं, लेकिन त्रासदी की गंभीरता को लेकर किसी को कोई शक नहीं होगा. इसलिए इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि मरने वालों की संख्या हजारों में थी. प्रभावितों की संख्या लाखों में हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
उस मनहूस सुबह को यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर ‘सी’ में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे. लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर एकाएक क्या हो रहा है? कुछ लोगों का कहना है कि गैस के कारण लोगों की आंखों और सांस लेने में परेशानी हो रही थी. जिन लोगों के फैंफड़ों में बहुत गैस पहुंच गई थी, वे सुबह देखने के लिए जीवित नहीं रहे.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हजार लोग मारे गए थे. हालांकि गैर सरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब तीन गुना ज्यादा थी. इतना ही नहीं, कुछ लोगों का दावा है कि मरने वालों की संख्या 15 हजार से भी अधिक रही होगी. पर, मौतों का ये सिलसिला उस रात शुरू हुआ था, वह बरसों तक चलता रहा. यह तीन दशक बाद भी जारी है, जबकि हम त्रासदी के सबक से सीख लेने की कवायद में लगे हैं.
यह शायद इतिहास की सबसे भयानक मानव निर्मित त्रासदी है. लेकिन, उससे भी बड़ी त्रासदी यह है कि 35 साल बाद भी इस मामले में इंसाफ की सांसें उखड़ी हुई है. इसकी एक बड़ी वजह वह कथित सौदा बताया जाता है जो उस समय प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे राजीव गांधी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के बीच हुआ था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भोपाल के गुनहगार वॉरेन एंडरसन की आजादी के बदले अमेरिका ने राजीव गांधी के दोस्त आदिल शहरयार को रिहा किया था.
1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी के बाद एंडरसन के अमेरिका जाने के पीछे राजीव गांधी का हाथ बताया जाता है. कहा जाता है तत्कालीन पीएम के इशारे पर राज्य के मुख्यमंत्री ने उनकी देश छोड़कर जाने में मदद की थी. एंडरसन को सरकारी प्लेन से कड़ी सुरक्षा के बीच भोपाल से दिल्ली पहुंचाया गया था, जिसके बाद वो अमेरिका वापस चला गया और कभी भारत लौट कर नहीं आया.
आधिकारिक तौर पर इस हादसे में 3,787 लोगों के मरने की बात कही गई. लेकिन कई मीडिया रिपोर्टों में यह संख्या 20-25 हजार बताई जाती है. पीड़ितों के संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 15,274 लोगों की मौत हुई और 5,74,000 लोग बीमार हुए थे.
इसके अलावा इंडियन एक्सप्रेस में प्रणब ढल सामंता भी इस बात का दावा करते हैं कि एंडरसन को सुरक्षित वापस अमेरिका भेजने के लिए अमेरिका का भारत पर दबाव था. ये तथ्य भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि एंडरसन के अमेरिका पहुंचते ही कुछ दिन में आदिल को क्षमा दान मिल गया था.