करंट टॉपिक्स

स्वतंत्र भारत के इतिहास का काला अध्याय ‘न भूतो, न भविष्यति’

Spread the love

शशिकांत चौथाईवाले

पूर्वोत्तर भारत – “आपातकाल के काले दिन की यादें”

26 जून, 1975 उत्तर गुवाहाटी के आउनी आरी सत्र (मंदिर) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूरे पूर्वोत्तर भारत के प्रशिक्षण वर्ग में प्रातः 4:00 बजे नींद टूटते ही लगा जैसे कि सूर्य पर कालिमा छाई है. शिक्षार्थियों को जगाने के लिए शिक्षकों की “उठो उठो” आवाज भी धीमी थी. सर्वत्र स्तब्ध वातावरण था. थोड़े ही समय में पता चला कि 25 जून, 1975 की रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आभ्यन्तरीण आपातकाल की घोषणा कर रात में ही कांग्रेस विरोधी सभी दलों के प्रमुख नेताओं को पकड़कर अज्ञात स्थानों पर कारागार में भेजा है. सन् 1972 में रायबरेली से निर्वाचित सांसद श्रीमती गांधी पर भ्रष्टाचार के आरोपों में चल रहा मुकदमा हारने पर पद त्याग ना करते हुए क्षमता के नशे में देश पर आपातकाल थोपा गया. समाचार पत्रों के ऊपर भी बंधन लगाकर सरकार की अनुमति बिना कोई भी समाचार छापने पर पाबंदी लगाई. इस दिन अधिकांश समाचार पत्रों ने संपादक का स्तंभ काला या कोरा रखा था.

संघ शिक्षा वर्ग चल रहा था, कुछ देर के बाद ही वर्ग में अखिल भारतीय कार्यकर्ता एकनाथ जी रानडे आए. संघ पर प्रतिबंध लग सकता है, ऐसा उनका अनुमान था, आवश्यक सूचनाएं देकर वे चले गए. इस वातावरण में भी 3 दिन तक वर्ग के कार्यक्रम बंद नहीं हुए. किंतु परिस्थिति को देखकर 29 जून, 1975 को वर्ग समाप्त करना निश्चित हुआ. प्रातः दीक्षांत भाषण चलते समय पूरे सत्र को पुलिस ने घेर लिया, संघ प्रार्थना के पश्चात वर्ग के सर्वाधिकारी भूमिदेव गोस्वामी पुलिस अधीक्षक प्रिय गोस्वामी से मिले. इसी बीच कुछ प्रमुख कार्यकर्ता पीछे से ब्रह्मपुत्र नदी पार कर गुवाहाटी चले गए. उस दिन पुलिस ने किसी को गिरफ्तार नहीं किया, किंतु शिक्षार्थियों से पूछताछ कर जिला के अनुसार उनकी फोटो खींचे. एक प्रश्न सभी को पूछा, “What is your opinion on PM Indira Gandhi?” मणिपुर के शिक्षार्थी हिंदी व अंग्रेजी कम समझते थे. अनेक छात्रों ने प्रश्न का उत्तर दिया, “She is very beautiful.” पुलिस देखती रही.

30 जून को संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माननीय बालासाहेब देवरस नागपुर में गिरफ्तार हुए. सभी स्वयंसेवकों को शांति तथा संयम रखकर जनसंपर्क से लोक जागरण करने का आह्वान एक पत्र द्वारा किया गया था. असम में सभी प्रचारकों को स्थान-स्थान के कार्यालयों की व्यवस्था करने को कहा गया. 4 जुलाई को सरकार ने संघ पर पाबंदी लगाई. कुछ प्रमुख अधिकारियों को सरकार ने MISA (Maintanence of Internal Security Act) अथवा DIR (Defence of India Rules) के तहत स्थानबद्ध किया था. असम के प्रांत कार्यवाह भूमिदेव गोस्वामी तथा गिरीश कलिता, मदन जी सिंघल, असीम दत्त, गुरुपद भौमिक, शंकर भट्टाचार्य आदि प्रमुख कार्यकर्ता जेल बंदी बने. अधिकांश संघ प्रचारकों ने भूमिगत होकर छद्म नाम धारण कर तथा वेशभूषांतर हो कर जन-जागरण कार्य प्रारंभ किए.

जन जागरण के लिए प्रचार पत्र छाप कर वितरण करने का निर्णय हुआ. असम में वार्ता पत्र, सत्यवार्ता, लोकवाणी आदि नामों से पत्रक निकाले गए. शुरू में मुद्रण की समस्या थी. कोई भी मुद्रणालय पत्र छापने का साहस नहीं करता. अतः घर में ही फोटो की दो फ्रेम, जालीदार कापड़, कांच की सहायता से घरेलू मशीन बनाई. छापते‌ समय प्रारंभ में रोलर नहीं था. रोटी बेलना का ही उपयोग किया गया. प्रति 15 दिन में एक पत्रक अकथनीय सरकारी दमन एवं चुनौतियों के बारे में निकलता था. प्रत्यक्ष मिलकर रात के समय घरों में डालकर अथवा डाक आदि द्वारा विभिन्न प्रकार से पत्रक वितरण होते थे. संघ के अखिल भारतीय अधिकारी भी प्रवास कर कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने का काम करते थे.

गुवाहाटी में ही सन् 1975 में कांग्रेस का अखिल भारतीय अधिवेशन था. इंदिरा गांधी, संजय गांधी आदि नेता तथा जनता की भारी भीड़ जमा हुई थी. इसी समय संघ अधिकारी भाउराव देवरस जी गुवाहाटी आए थे. एक स्वयंसेवक की बहन के घर पर उनके परिचित कांग्रेस पार्टी के स्त्री एवं पुरुष प्रतिनिधि रुके थे. उसी घर में संघ की बैठक भी निर्धारित थी. कांग्रेस प्रतिनिधियों ने हमारे बारे में जब पूछा, बहन ने कहा कि उसके भाई के कॉलेज के अध्यापक अधिवेशन देखने आए हैं. अपनी बैठक सुरक्षित तथा ठीक प्रकार से संपन्न हुई.

भूमिगत तथा अन्य कार्यकर्ता भी जन जागरण के लिए व्यक्तिगत संपर्क, छोटी-छोटी बैठकों द्वारा जनता का मनोबल बढ़ा कर धीरज देने का कार्य करते थे. विरोधी दलों के नेताओं के घर भी जाकर देश के तात्कालिक समाचार देने का कार्य करते थे, कारण सभी दलों के संपर्क सूत्र समाप्त हुए थे. जेल बंदी व्यक्तियों के घरों में जाकर अनेक परिवारों को आर्थिक सहायता भी सावधानी से करनी पड़ती थी.

अखिल भारतीय स्तर पर जनसंघ के नाना जी देशमुख, संघ के दत्तोपंत ठेंगड़ी, समाजवादी रविंद्र वर्मा आदि व्यक्तियों ने लोक संघर्ष समिति के माध्यम से इंदिरा जी को तानाशाही समाप्त करने के लिए पत्राचार भी शुरू किया. किंतु दमन कार्य बंद हुआ नहीं. मीसा बंदियों को जमानत मांगने का भी अधिकार नहीं था. लेखक के तीन भाई भी मीसा बंदी बनाए गए थे. सभी प्रयास असफल होने के पश्चात समिति ने सत्याग्रह प्रारंभ करने का निर्णय किया. इस बीच नानाजी देशमुख भी पकड़े गए थे. असम में संघ के मोरोपंत पिंगले जी, दत्तोपंत ठेंगड़ी जी, तथा समाजवादी दल के रविंद्र वर्मा जी का प्रवास हुआ. छोटी-छोटी बैठकों में सत्याग्रह की सूचना दी गई. ऐसी बैठकों में संघ स्वयंसेवकों का ही प्रमाण अधिक रहता था. 14 नवंबर, 1975 से 20 जनवरी, 1976 तक हर प्रांत में सत्याग्रह हो ऐसा निर्णय हुआ. असम में प्रथम विरोधी दल के कार्यकर्ता सत्याग्रह करें, ऐसा उनको आग्रह किया, किंतु वे तैयार हुए नहीं. इसके बावजूद 14 नवंबर को गुवाहाटी में पहला सत्याग्रह हुआ. क्रमशः अन्य जिलों में भी सत्याग्रह हुए. सत्याग्रह में मुख्य घोषणाएं थीं –

१) आपातकाल समाप्त करो

२) जनता को मौलिक अधिकार प्रदान करो

३) समाचार पत्रों पर लगाए बंधन हटाओ

४) संघ पर प्रतिबंध समाप्त करो.

साथ में पत्रकों का भी वितरण सत्याग्रही करते थे. सत्याग्रह देखने जनता भी आती थी. सभी सत्याग्रहियों को जेल बंदी बनाकर सजा सुनाई जाती थी.

डिब्रूगढ़ के दो तीन स्वयंसेवक आकाशवाणी से एक कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे थे. कार्यक्रम के बीच में ही उन्होंने आपातकाल विरोध में नारा देना प्रारंभ किया.

उसी प्रकार गुवाहाटी में कांग्रेस ने Lawyers’ Conference का कार्यक्रम रखा था. उसमें कांग्रेस के तत्कालीन अखिल भारतीय अध्यक्ष देवकांत बरुआ और दिल्ली के रजनी पटेल आमंत्रित थे. वे दोनों सभागृह में पहुंचने के पूर्व जब अन्य स्थानीय नेताओं के भाषण चल रहे थे, कुछ स्वयंसेवकों ने सभागृह में ही पत्रक वितरण शुरू कर नारा देना प्रारंभ किया. पुलिस ने सभागृह के दरवाजे बंद कर सभी सत्याग्रहीयों को पकड़ा. यह देख कर बरुआ जी अत्यंत क्षुब्ध हुए. यही देवकांत बरुआ थे, जिन्होंने “India is Indira, Indira is India” कहना शुरू किया था. उत्तर पूर्वांचल में 350 से अधिक संघ कार्यकर्ता जेल बंदी हुए थे.

असम में भी सत्याग्रहियों को पुलिस के अत्याचारों का सामना करना पड़ा था. गुवाहाटी के वयोवृद्ध मदन जी सिंहल, शरद कलिता, मोतीलाल, डिब्रूगढ़ में मंजू देव, हरिचरण जिंदल, बनवारी शर्मा इनको काफी यातना सहन करनी पड़ी थी. कुछ सत्याग्रहियों के कपड़े उतारकर शरीर पर ठंडा पानी डालकर मारा था. डिब्रूगढ़ के ज्योति गगोई तो जेल में पीलिया बीमारी से त्रस्त थे, परंतु किसी ने भी माफी मांगी नहीं. संघ के बंदी स्वयंसेवक अन्य के साथ हंसी मजाक का आनंद भी लेते थे, तथा सभी का उत्साह बढ़ाते थे. जोरहाट जेल में कांग्रेस के ही एक बंदी ने उनके साथ रहे संघ बंदी को पूछा “मास्टर जी, और कितने दिन हमको यहां सहना पड़ेगा”, स्वयंसेवक ने कहा “महोदय, आप डरते क्यों? वीर सावरकर जी को तो 25 साल की कालापानी की सजा हुई थी.” नेता देखते ही रहे. साथ ही स्वयंसेवकों के व्यवहार से अन्य दलों के बंधुओं का संघ के संबंध में अनुकूल मत भी बना. असम के ही समाजवादी दल के गुलाब बरबरा जो पूर्व में संघ विरोधी थे, वे आपातकाल समाप्त होने के कुछ दिन बाद असम में मुख्यमंत्री बने. उन्होंने ही गुवाहाटी में संघ कार्यालय के लिए जमीन प्रदान की थी और उसी जमीन में आज का “केशव धाम है”.

डिब्रूगढ़ के जेल में संघ के असीम दत्त और गुरुपद भौमिक को 1 दिन पुलिस कोर्ट में ले जाने वाले थे. गुरुदा की भाभी तथा मैं भी कोर्ट के बाहर रास्ते में उनको मिलने खड़े थे. दोनों को हथकड़ी पहना कर जाते समय, दोनों ने भाभी जी को प्रणाम किया, किंतु मेरा बदले हुए वेश के कारण मुझे पहचान नहीं सके. वे दोनों वकील थे. वकीलों के कक्ष में जाते समय सारे वकील दोनों से हाथ मिलाए. इसका लाभ लेकर मैंने भी “हेलो दत्त“ कहकर हाथ आगे बढ़ाया. आवाज सुनकर मुझे पहचान सके. बाद में चाय पीते समय बातचीत भी कर सके.

आखिर में जनता के दबाव के कारण इंदिरा गांधी को लोकसभा के चुनाव की घोषणा करनी पड़ी. विरोधी दलों के जिनको चुनाव लड़ना था, ऐसे बंदियों को मुक्त किया, किंतु संघ के स्वयंसेवकों को नहीं छोड़ा. चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई. जनता पार्टी के मोरारजी देसाई के नेतृत्व में नई सरकार बनी. चुनाव हारते ही इंदिरा जी ने आपातकाल के समाप्ति तथा संघ पर लगे प्रतिबंध समाप्त करने की घोषणा की. काला अध्याय का अंत हुआ. अंततः इस प्रकार के आपातकाल की विभीषिका का प्रसंग फिर कभी ना आए, ऐसी अपेक्षा भविष्य में आने वाले शासन से अपेक्षित है.

 

(लेखक, शशिकांत चौथाईवाले का जन्म नागपुर महाराष्ट्र में हुआ था, छात्र जीवन Nagpur Science College में Statistics में MA पास होने के पश्चात सन १९६१ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने. असम प्रांत एवं पूर्वोत्तर भारत का कार्य देखने के बाद संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य भी रहे. वर्तमान में सिलचर (असम) में निवास है. लेख में १९७५ के आपातकाल के अनुभव उल्लिखित हैं.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *