डॉ. वंदना गांधी
सिया राममय सब जग जानी….. आज भारत ही नहीं, बल्कि पूरा लोक ही राममय हो उठा है. करोड़ों भारतवासियों के आराध्य प्रभु श्री राम अपने मंदिर में पुनः विराजित हुए हैं. करोड़ों लोगों की आस्था और विश्वास फलीभूत होने जा रहे हैं. उत्सव की इस घड़ी में हर गली-मोहल्ले से श्रीराम संकीर्तन की धुन पर लोग मतवाले हैं. शहरों और गाँवों की गली-गली श्रीराम के स्वागत में भगवा पताकाओं से सजीं.
सदियों से श्री राम की प्रतीक्षा कर रही मातृशक्ति के नयनों की आस पूरी हो रही है. राम आएंगे तो अंगना सजाऊँगी, गीत गाने-गुनगुनाने वाले घर-आँगन में, चौक-चौबारे को धो-बुहारकर रंगोली सजाई गई. राम जी के नए परिधान तैयार हुए, किसी ने पालना सज़ाया, मंदिरों की साज-सज्जा की गई.
मातृशक्ति अश्रुपूर्ण नयनों से समय के साक्षी बनने का सौभाग्य प्राप्त कर रही है. ये अश्रु उनके स्मरण में भी हैं, जिन्होंने रामलला को पुनः अपने मंदिर में प्रतिष्ठित कराने के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया. इन्हीं के सद्प्रयासों से आज हम इतने असीम आनंद के पलों के प्रत्यक्षदर्शी हो पा रहे हैं. निश्चित ही वे भी स्वर्ग से पुष्प वर्षा कर रामलला का स्वागत अवश्य कर रहे होंगे.
श्री राम जी के विग्रह की पुनर्स्थापना के लिए 500 वर्षों की प्रतीक्षा, संघर्ष और तपस्या पूर्ण हुई. इन क्षणों को असंख्य कारसेवकों के शौर्य, साहस और समर्पण से प्राप्त किया जा सका है. ऐसे में पूरा समाज गौरव से भरा है, जिसने प्राणपण से इस पुण्य कार्य के लिए प्रयास किए. भगवान श्रीराम की पुनः प्रतिष्ठा के सद्प्रयासों में मातृशक्ति भी बढ़-चढ़कर सम्मलित रही और अपना अतुलनीय योगदान दिया.
1990 के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन चल रहा था, तब महिला ही थी…. जिन्होंने सबसे पहले राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में रखा था और महिलाएँ ही थीं, जिनकी आवाज़ इस आंदोलन का प्रेरक मंत्र बन गई थी. इनमें से एक साध्वी ऋतंभरा जी कहती भी हैं – “लंबी प्रतीक्षा का फल है. राम मंदिर विध्वंसकों के आगे हमारा संकल्प जीता. जनता जनार्दन ने असंभव को संभव कर दिया”.
अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण के लिए चले आंदोलन में शीर्ष पर भी मातृशक्ति महत्वपूर्ण भूमिका में थी. देशभर में राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन की अलख जगाने में महिलाओं ने बहुत सक्रिय और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भाजपा संस्थापकों में से एक राजमाता विजयाराजे सिंधिया, साध्वी ऋतम्भरा और 30 वर्ष की उम्र में सांसद बनी उमा भारती तो आंदोलन में अग्रणी थीं. राजमाता विजया राजे सिंधिया का मार्गदर्शन एवं सहायता आंदोलन में संजीवनी का काम कर रही थी.
1988 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में मंदिर निर्माण के लिए प्रस्ताव लाने वाली राजमाता सिंधिया ही थीं. इसी के बाद राम मंदिर का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख लक्ष्यों और संकल्पों में शामिल हो गया. भाजपा नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने 1989 में सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली, जिसे राजमाता ने पूरा सहयोग दिया. श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी भूमिका विशेष रही और एक प्रमुख नेता के रूप में नेतृत्व करने वालों में शामिल थीं. 6 दिसंबर को ऐतिहासिक कारसेवा वाले दिन अयोध्या में रामकथा कुंज के मंच से उन्होंने भी संबोधित किया था.
आंदोलन के उस दौर मे साध्वी ऋतम्भरा और उमा भारती ने देशभर में सभाएं कीं, रामभक्तों में उत्साह जगाने का कार्य किया. वे दोनों आंदोलन की उत्साही युवा चेहरा थीं. साध्वी ऋतम्भरा की प्रेरक और ओजपूर्ण वाणी घर-घर में गूंजने लगी थी. दोनों के भाषण जनमानस में उत्साह भरने में सफल रहे.
साध्वी ऋतम्भरा के भाषण सुनने के लिए सभाओं में भारी संख्या में लोग जुटते, इनमें मातृशक्ति भी सम्मिलित रहती. भाषण पूरा होने तक सभी लोग ‘हम मंदिर वहीं बनाएंगे’ का संकल्प लेकर लौटते़. उनके भाषणों के ऑडियो टेप उस समय बहुत अधिक लोकप्रिय थे. दोनों के भाषणों ने समाज जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. रामकथा कुंज के मंच से संबोधित करने वालों में साध्वी ऋतम्भरा और उमा भारती भी थीं.
आंदोलन का नेतृत्व करने वाली प्रमुख महिलाएं ही नहीं, बल्कि 1990 के दशक में बड़ी संख्या में महिलाओं ने आगे आकर राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया था. एक अनुमान के अनुसार 55 हज़ार महिला कारसेवक राम जन्मभूमि में कारसेवा में सक्रिय रहीं थीं. आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संगठन विश्व हिन्दू परिषद की दुर्गावाहिनी की बहनें उस समय देशभर में भगवान श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए राष्ट्र जागरण के कार्य में लगी थीं.
नवंबर 1990 और दिसंबर 1992 में कारसेवा में जो माताएं-बहनें नहीं जा सकीं, उनका योगदान भी कम नहीं रहा. जाने कितनी मांओं और बहनों ने अपने पिता, पुत्र, पति, भाई के माथे पर तिलक लगाकर बड़ी श्रद्धा और सम्मान से उन्हें रामकाज में अपनी भागीदारी निभाने के लिए गर्व के साथ अयोध्या भेजा.
यहां यह भी स्मरण रखा जाना चाहिए कि तब की परिस्थितियां कैसी प्रतिकूल थीं, जब कारसेवकों पर गोलियां तक चलवा दी गई थीं. यह सब जानते हुए भी कारसेवकों को विदा करते समय उनके माथे पर अक्षत-रोली सजाते न तो इन महिलाओं के माथे पर शिकन आई, न उनकी आंखों से तनिक अश्रु बहे. बल्कि उनके हर्ष और गर्व को देख घर से विदा लेते पुरुषों का उत्साह कई गुना बढ़ जाता था.
मातृशक्ति ने उस समय अयोध्या में उमड़े असंख्य कारसेवकों के भोजन से लेकर दवाइयों तक कोई कमी नहीं आने दी थी. राम काज का व्रत लेकर घरों से निकले कारसेवकों के भोजन आदि आवश्यकताओं की पूर्ति मातृशक्ति ने पूरे देश में स्थान-स्थान पर की. इसमें मातृशक्ति का जोश और भाव देखते ही बनता था.
6 दिसंबर को कारसेवा के दौरान जहानाबाद की तब 32 वर्ष की महिला वकील ललिता सिंह की कहानी ही पूरे देश की मातृशक्ति के मन की बात कह देती है जो अपने नन्हें शिशु को किसी अन्य को थमा कर गुंबद पर जा चढ़ी थीं. यह भारत भूमि की मातृशक्ति है जो देश, धर्म, समाज की आन-बान पर आ पड़े तो अपनी चिंता छोड़ रणभूमि में उत्तर पड़ती है.
सदियों के अथक संघर्ष के बाद आनंद के पल आए हैं. इन नयनों ने भगवान राम की सदियों प्रतीक्षा की है. यह एक नये युग का आरंभ है. भगवान श्रीराम का मंदिर हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र बिंदु है. जब हिन्दू समाज के इस संघर्ष की गाथा कही और लिखी जाएगी, मातृशक्ति का उल्लेख प्रतिष्ठा के साथ होगा.