भारत के मनीषियों ने विविधता को एकात्मता में परिवर्तित करने का दर्शन दिया. विविधता को सांस्कृतिक एकता की ताकत बनाया.
भोपाल, 10 नवंबर.
रविवार को रविंद्र भवन में दत्तोपंत ठेंगड़ी स्मृति राष्ट्रीय व्याख्यानमाला – 2024 के अंतर्गत ‘भारत की विविधता में सांस्कृतिक एकात्मता’ विषय पर मुख्य वक्ता केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि भारतीय मनीषियों ने हजारों वर्ष पहले जो ज्ञान दिया, वह अनमोल है. उन्होंने विविधता में एकता के सूत्र दिए हैं.
दत्तोपंत जी की जयंती पर दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान द्वारा आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला में मुख्य वक्ता के रूप में राज्यपाल ने कहा कि बड़े पेड़ की जड़ें गहरी होती हैं. ऐसे ही कुछ लोग होते हैं, जिनके अंदर समर्पण भाव गहरा होता है. दत्तोपंत ठेंगड़ी भी ऐसा ही एक व्यक्तित्व थे.
उन्होंने कहा कि अंतिम समय में गौतम बुद्ध के शिष्य ने उनसे पूछा कि पथ भ्रष्ट न हो, इसके लिए उपाय बताइये. तब बुद्ध ने कहा कि ‘अप्पा दीपो भव’, मैंने जो बात बताई है उसे भी स्वीकार मत करो, जो बात मेरे लिए सत्य है, वह दूसरे के लिए भी सत्य हो, यह जरूरी नहीं है. दरअसल, यह अथर्वेद की ऋचा का सूत्र है. इसे हम अद्वैतवाद या एकात्मता कह सकते हैं.
आद्य शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद ने जो दर्शन दिया, उसकी झलक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के भाषणों में परिलक्षित होती है और उसी को ठेंगड़ी जी ने विस्तार प्रदान किया. लेकिन किसी ने नहीं कहा कि ये मेरा विचार है. हमारे ऋषियों ने कभी नहीं कहा कि ये सिद्धांत हमारे दिमाग की उपज हैं. उन्होंने कहा कि ये नैसर्गिक है, प्राकृतिक है, दैविक हैं. हमने केवल ढूंढा है.
उन्होंने कहा कि व्यक्ति के लिए समाज चाहिए, समाज को व्यवस्थित रखने के लिए संगठन चाहिए. संगठन के लिए आधार चाहिए और यह आधार सभ्यता और संस्कृति को बढ़ाता है. हमारे यहां आस्था की अभिव्यक्ति में विविधता है. अतः जब आस्था एक है तो हम सबको एक होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि दुनिया के बहुत से विकसित देश, जहां साक्षरता प्रतिशत ज्यादा रही, वहां महिलाओं को वोट का अधिकार भारत के आजाद होने के बाद मिला. वहां यह इसलिए था, क्योंकि वे मानते हैं कि महिला और काले लोगों में आत्मा नहीं होती, अतः वे मतदान के अधिकारी नहीं हैं. भारत का सबसे बड़ा आदर्श है – एकात्मता, जो इंसान को इस लायक बनाती है, जो अपने साथ समाज और परम सत्य के साथ शांति स्थापित कर सके.
आज जीवन का उद्देश्य सुख समझा जाता है, उसमें भी भौतिक सुख. लेकिन विवेकानंद से पूछा गया कि जीवन का उद्देश्य क्या है? उन्होंने कहा कि ज्ञान. फिर उनसे पूछा गया कि ज्ञान का उद्देश्य क्या है? उन्होंने कहा कि ज्ञान का उद्देश्य है कि व्यक्ति में वह क्षमता विकसित कर सके कि सामने नजर आने वाली विविधता के पीछे एकात्मता को देख सके.
आद्य शंकराचार्य ने जिन चार मठों को स्थापित किया है, वे इस विचार को स्थापित करते हैं कि आत्मा के रूप में परमात्मा हर देह में निवास करती है. एकात्मता का इससे बड़ा आदर्श और उदाहरण कोई नहीं हो सकता. हमारी ज्ञान की संस्कृति है.
पश्चिम देशों में समानता आज तक नहीं आई, लेकिन भारतीय संस्कृति ने समानता का अधिकार दिया, हम उनसे पहले से बेहतर थे. विश्व के कई देशों में भेदभाव है, लेकिन भारतीय संस्कृति में ऐसा नहीं है. हमारी गौरवशाली परंपरा होने के बाद भी हम उसे स्वीकार नहीं करते क्योंकि उसकी हमें पूरी तरह से जानकारी ही नहीं है, यही हमारी मूल समस्या है.
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. राजीव कुमार ने कहा कि दत्तोपंत जी बहुआयामी व्यक्तित्व थे. उन्होंने विविध संगठनों की स्थापना के साथ समाज को एक नई दिशा भी दी. उन्होंने कहा भारतीय सनातन विचार में ही विकास के सारे रास्ते हैं, जिन पर समाज को आगे जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि साम्यवाद और पूंजीवाद की समाप्ति के बाद विकल्पों को खोजना भी हमारी ही जिम्मेदारी है. विकास का रास्ता प्रकृति को नष्ट करके प्राप्त नहीं किया जा सकता है. भारतीय संस्कृति प्रकृति के साथ रहने और उसे पूजने वाली है, इसके संरक्षण के माध्यम से ही विकास को प्राप्त कर सकते है. यह विचार भी ठेगडी जी का ही है. भारतीय संस्कृति में ही सब खूबियां हैं, जिसे हम अद्वैत कहते हैं. परमात्मा से जुड़ाव का जो विचार है, वही हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान है.
डॉ राजीव कुमार ने कहा कि स्वदेशी के विचार से ही विकसित भारत का स्वप्न पूरा हो सकता है. प्राचीन समय में हम ग्लोबल ट्रेड में सर्वोपरि थे, लेकिन गुलामी के कारण हमारी दुर्दशा हुई. इसलिए विकसित भारत के लिए हमें पुनः उस स्वदेशी के भाव को अपनाना होगा, जिसका उल्लेख दत्तोपंत जी की किताबों में मिलता है. विकास को मापने के पैमाने जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय के स्थान पर हमें निचले तबके के 10 प्रतिशत लोगों के जीवन को बदलना होगा. उन्हें रोटी, कपड़ा, मकान, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध कराने की जरूरत है. तब आर्थिक स्थिति को बेहतर ढंग से नापना संभव है. इन सबके लिए भारतीय दृष्टि पर आधारित शोध किए जाने की भी आवश्यकता है.
उन्होंने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर विकसित होने की अपेक्षा स्थानीयता के आधार पर परिवर्तन लाकर सही ढंग से विकास आज की प्रमुख आवश्यकता है. मूलभूत अधिकारों में बेहतर पर्यावरण को भी जोड़ना आवश्यक है. हमें प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देना चाहिए. आयात से अधिक निर्यात आवश्यक है, यही सही आत्मनिर्भरता है.
संस्थान के अध्यक्ष अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि सारी विषमताओं के बाद भी अनेक संगठनों को उन्होंने शून्य से शुरू कर ऊंचाइयां और अलग पहचान दी. पहले चिंतन का केंद्र यूरोपीय था, उसे उन्होंने भारतीय बना दिया. उन्होंने देश हित में कई बड़े संवैधानिक पदों को त्याग दिया. उनकी विचारधारा और चिंतन का अनुसरण समाज में आज की प्रमुख आवश्यकता है. निदेशक डॉ. मुकेश कुमार मिश्रा ने कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डाला.