लोकसभा चुनाव के समय से देखने में आ रहा है कि क्या पक्ष और क्या विपक्ष सर्वत्र संविधान की रक्षा की बहुत बात हो रही है. लेकिन क्या वास्तविकता में संविधान के महत्वपूर्ण शब्द पंथनिरपेक्षता का वास्तव में आदर होता है या केवल वोटबैंक की राजनीति के लिए तुष्टिकरण ही महत्वपूर्ण है? वास्तव में यह सभी सरकारों के लिए एक विचारणीय विषय हो सकता है. किंतु हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार का निर्णय सत्तासीन सभी लोगों को यह सोचने पर जरूर विवश कर रहा है कि क्या भारत के बहुसंख्यक हिन्दू समाज की भावनाओं का ह्दय से सम्मान करते हैं, जिनके वोट बैंक के आधार पर ही वे सत्ता का सुख भोगते हैं.
निश्चित ही इस संदर्भ में मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का निर्णय सर्वत्र चर्चा का विषय बन गया है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि बहुसंख्यक हिन्दू समाज का सम्मान अति आवश्यक है. इसलिए राज्य के मंदिरों में केवल हिन्दुओं को ही काम पर रखा जाएगा, क्योंकि यह देवता के प्रति भक्त के समर्पण का विषय है. निश्चित ही इस पूरी प्रक्रिया में पवित्रता का महत्व है और उस पवित्रता को प्राय: वही पहले अनुभव करेगा जो बचपन से ही उसमें रसा-बसा होगा. इसलिए उनका निर्णय सराहा जा रहा है. साथ ही नई नीति के अंतर्गत, मंदिर के पुजारियों, जिन्हें अर्चक के नाम से भी जाना जाता है, उनका मासिक वेतन 15,000 रुपये किया गया है. वहीं, मंदिरों में काम करने वाले नाई कर्म करने वालों का भी न्यूनतम वेतन 25,000 रुपये मासिक हो गया है.
उनका यह निर्णय भी सराहनीय है रि विश्व की सबसे प्राचीनतम् वेद विद्या की पढ़ाई करने वाले बेरोजगार युवाओं को 3,000 रुपये मासिक भत्ता दिया जाएगा. वेद विद्या दुनिया भर के लिए भारत की धरोहर है. वेद के जितने मंत्र हैं और जितनी उसकी शाखाएं शेष हैं, उन सभी को इस निर्णय से बल मिलेगा. पतंजलि ने ऋग्वेद की 21, यजुर्वेद की 100, सामवेद की 1000 तथा अथर्ववेद की 9 शाखाएँ बताई हैं, किंतु वर्तमान में अधिकांश अप्राप्य हैं. इस संदर्भ में प्राप्त सभी शोध निष्कर्षों से सामने आया है कि प्राचीन समय में वेदों की 1131 शाखाएं थीं, किंतु विधर्मियों के लगातार के आक्रमण के फलस्वरूप अपने अस्तित्व को बचाए रखने की हिन्दू सनातन चुनौती के बीच अब वेदों की केवल 12 शाखाएं ही शेष है, जिसमें ऋग्वेद की 2, यजुर्वेद की 6, सामवेद की 2 और अथर्ववेद की 2 शाखाएं हैं.
राज्य सरकार ने ‘धूप दीप नैवेद्यम योजना’ के माध्यम से छोटे मंदिरों के लिए वित्तीय सहायता भी बढ़ाने का निर्णय लिया है. यह सहायता राशि 5,000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये प्रति माह कर दी गई है. इसके अलावा, 20 करोड़ रुपये से अधिक राजस्व वाले मंदिरों के लिए मंदिर ट्रस्ट बोर्ड में दो अतिरिक्त बोर्ड सदस्य जोड़े जा रहे हैं, सबसे अच्छी बात यह है कि इन नए पदों में एक ब्राह्मण और एक नाई को शामिल किया गया है. इतना ही नहीं नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि हिन्दू मंदिरों में गैर-हिन्दुओं को कोई रोजगार नहीं दिया जाना चाहिए. इसके भी मायने हमें समझने होंगे. कारण, इसकी कोई गारंटी नहीं कि जिसका भाव ही देवता के प्रति समर्पण का नहीं है, वह पूरी पवित्रता का ध्यान रखेगा. अत: हिन्दुओं के मंदिर में सामान बेचने वाले भी हिन्दू ही होना चाहिए.
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री का कहना है कि “आंध्र प्रदेश के हर मंदिर में आध्यात्मिकता प्रस्फुटित होनी चाहिए. आध्यात्मिक कार्यक्रम इस तरह से आयोजित किए जाने चाहिए कि श्रद्धालु मंदिर में वापस आएँ और उन्हें ये ना लगे कि उनसे पैसे ऐंठे जा रहे हैं. यह भी जरूरी है कि मंदिर और उनके आसपास के इलाकों को बेहद साफ-सुथरा रखा जाए”.
उन्होंने पर्यटन विभाग, हिन्दू धर्मार्थ विभाग और वन विभाग के अधिकारियों की एक समिति के गठन की भी घोषणा की. यह समिति मंदिरों, विशेष रूप से वन क्षेत्रों में स्थित मंदिरों के विकास की देखरेख करेगी. समिति इन स्थलों की प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व को संरक्षित रखते हुए इसे अधिक से अधिक पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं के लिए सुलभ बनाएगी.
इसके अतिरिक्त, श्रीवाणी ट्रस्ट के अंतर्गत प्रत्येक मंदिर को 10 लाख रुपये आवंटित किए हैं, जिसमें आवश्यकताओं की समीक्षा के बाद यदि आवश्यक हुआ तो अतिरिक्त धनराशि का प्रावधान भी किया गया है. अधिकारियों से उन मंदिरों के लिए प्रस्ताव भेजने के लिए कहा गया है, जहाँ 10 लाख रुपये से अधिक की आवश्यकता है. सरकार का प्रयास है कि वह पवित्र नदियों कृष्णा और गोदावरी नदी को पुनर्जीवित करने में सफल हो जाए, इसके लिए प्रभावी योजना बनाई गई है.
बहुसंख्यक हिन्दू समाज के आस्था केंद्रों के संरक्षण, वहां विराजित देवता की पूजा-अर्चना करने वाले अर्चकों की चिंता करने की विधिवत ठीक से शुरूआत आंध्रप्रदेश से हो चुकी है. ऐसे में जहां देश के प्राय: सभी राज्यों में मुसलमानों के मदरसों के मौलवियों के लिए भारी भरकम राशि वेतन के रूप में दी जाती हो, ईसाईयत के प्रचार के लिए कई हजार करोड़ के जोशुआ मिशन प्रोजेक्ट संचालित हो रहे हों एवं इसी प्रकार के अन्य मिशन, जिसमें कि भारत से बहुसंख्यक हिन्दू समाज से विविध तरह से अप्रत्यक्ष अर्जित धन के साथ विदेशी फंड बहुतायत में लगाया जा रहा हो, वहां यह जरूरी हो जाता है कि धर्मनिरपेक्षता या पंथनिरपेक्षता का अनुसरण सभी राज्य सरकारें हिन्दू सनातन धर्म के हित में भी करें. वास्तविक पंथ निरपेक्षता या धर्म निरपेक्षता तभी है, जब भारत के बहुसंख्यक समाज, के भी धार्मिक हितों का समग्रता के साथ ध्यान रखा जाए. आंध्र से हुई यह शुरूआत अच्छी है, अब बारी अन्य राज्यों के अनुसरण करने की है.
डॉ. मयंक चतुर्वेदी