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भोपाल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्यभारत प्रान्त, भोपाल की ओर से रविवार को मित्तल कॉलेज परिसर में स्वरनाद संगम कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में 110 वादकों ने वाद्ययंत्रों की मनमोहक प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में अखिल भारतीय शारीरिक शिक्षण प्रमुख जगदीश प्रसाद जी उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध बांसुरी वादक अभय फागरे जी ने की। कार्यक्रम में भोपाल विभाग संघचालक सोमकांत, प्रताप जिला संघचालक दिलीप भूरानी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का आरंभ रचनाओं की सुमधुर प्रस्तुति के साथ हुआ। प्रकट वादकों ने श्रीराम, शिवरंजनी, मां तुझे सलाम, ए मेरे प्यारे वतन… आदि की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम अध्यक्ष अभय फागरे जी ने कहा कि लगभग 45 वर्ष बाद उन्हें इस तरह के कार्यक्रम में आने का अवसर मिला है। मेरी संगीत की शुरुआत भी घोष कार्यक्रम के माध्यम से हुई थी। मुझे इस बात का अभिमान है कि मुझे आदरणीय गुरु गोलवलकर जी के समक्ष प्रस्तुति देने का अवसर मिला है। प्रकट वादकों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि इतने कम समय में जिस ढंग से आप सभी ने संगीत को सीखा है, यह प्रशंसनीय है।
जगदीश प्रसाद जी ने कहा कि संघ की स्थापना वर्ष 1925 में हुई और वर्ष 1926 से पथ संचलन आरंभ हुआ। यही नहीं संघ ने वर्ष 1927 में पहली बार शंख खरीदा और वर्ष 1940 तक संघ का पूरे देश में विस्तार हुआ। जब स्वयंसेवकों ने वाद्ययंत्रों की प्रस्तुति देना आरंभ किया तो उन्होंने भारतीय राग, रचना का स्वदेशीकरण का क्रम शुरू किया। हमारे लिए यह गर्व की बात है कि संघ द्वारा तैयार की 42 रचनाओं को भारतीय नौसेना दल में सम्मिलित किया और इसकी प्रस्तुति आरंभ की।
जगदीश प्रसाद जी ने कहा कि पिछले दिनों केरल में पुलिस की पासिंग आऊट परेड में जो रचना पेश की गई वह भी स्वयंसेवकों ने तैयार की थी। यही नहीं वर्ष 1982 के एशियाई खेलों के उद्घाटन समारोह में भी संघ की रचना को नौसेना के दल ने प्रस्तुत किया था। नए संसद भवन के शुभारंभ अवसर पर भी रचना सीआरपीएफ के जवानों ने प्रस्तुत की थी। उन्होंने कहा कि पिछले दस वर्षों में गणतंत्र दिवस पर होने वाली बीटिंग रिट्रीट की प्रस्तुति में ब्रिटिश शासनकाल के अत्यधिक भाग को समाप्त किया गया है।
उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत स्वयंसेवक आज के समय में वेणु (बांसुरी का एक प्रकार) बजाते हैं। वेणु बजाने की खास बात यह है कि यह न सिर्फ मन को शांति देती है, बल्कि इससे हमारे फेफड़े भी मजबूत रहते हैं। वर्ष 2025 में संघ अपनी 100 वर्ष की यात्रा पूरी कर लेगा। हमने देखा है कि कई संस्थाएं आईं और चली गईं। लेकिन संघ आज भी चल रहा है और आगे बढ़ रहा है। संघ को आगे बढ़ाने का कार्य शुरू होता है शाखा से। यहां खेल, व्यायाम जैसी गतिविधि और बौद्धिक विषयों पर चर्चा की जाती है।
उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक प्रयागराज महाकुम्भ में भोजन व्यवस्था सहित स्वास्थ्य शिविर का संचालन तो कर ही रहे थे। अब स्वयंसेवकों के समूह ने परिवहन व्यवस्था का जिम्मा संभाला है। स्वयंसेवकों का सेवा का यही भाव उन्हें अलग बनाता है। अपने शताब्दी वर्ष में संघ ने पंच परिवर्तन के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ने का निर्णय लिया है। स्व, समरसता, पर्यावरण, नागरिक कर्तव्य और कुटुंब प्रबोधन के लक्ष्य को लेकर कार्य करेगा और विकसित भारत, विश्व गुरु बनाने का लक्ष्य की ओर बढ़ेगा।