ग्वालियर. ईसाई मिशनरी भारत में मतांतरण के कार्य में निर्लज्जता के साथ लगे हैं. मतांतरित या अपने संपर्क में आने वाले लोगों की बुद्धि भ्रमित कर देते हैं, कि वह अपने सगे संबंधियों को भी मतातंरित करने का प्रयास करते हैं. और कई बार सारी हदें पार कर देते हैं.
मध्यप्रदेश के ग्वालियर से ऐसी ही एक घटना सामने आई है. धीरेंद्र प्रसाद सिंह से डेविड बने व्यक्ति ने ईसाई न बनने पर अपनी मां के साथ क्रूरता की कि वह इस दुनिया से चल बसी. ईसाई बन जाने के बाद डेविड अपने माता-पिता के साथ महीनों बात भी नहीं करता था और कभी करता भी था तो हाल-चाल पूछने के बजाय उन पर ईसाई बनने का दबाव डालता था. इस दबाव के कारण ही डेविड के पिता राजेंद्र प्रसाद सिंह बीमार हुए और 2018 में उनकी मृत्यु हो गई. लेकिन डेविड अपने पिता के अंतिम दर्शन के लिए भी नहीं पुहंचा. यही नहीं, उसने अपनी मां पर ईसाई बनने का दबाव बढ़ा दिया. इस कारण उसकी मां अपनी बड़ी बेटी वीना प्रसाद के पास बोकारो (झारखंड) में रहने लगी.
2 जून को ग्वालियर में सरोज देवी का निधन हो गया. ईसाई बन चुके उनके बेटे डेविड ने अपनी माँ का हिन्दू पद्धति से अंतिम क्रियाकर्म करने से इनकार कर दिया. समझाने के बावजूद वह नहीं माना तो सरोज देवी की नातिन ने 1100 किलोमीटर दूर से आकर अपनी नानी का अंतिम संस्कार किया और सारे क्रियाकर्म संपन्न किए. श्वेता सुमन ने आरोप लगाया है कि उनकी नानी की मौत मामा डेविड की प्रताड़ना से हुई है. श्वेता की मां वीना प्रसाद का भी चार मई को कोरोना के कारण निधन हो गया है. श्वेता कहती हैं, ‘‘एक महीने के अंदर मां और नानी ने हम लोगों को छोड़ दिया. इसके बावजूद मेरे मामा डेविड का दिल नहीं पिघला. उन्होंने हमें सांत्वना तक नहीं दी. आखिर ये ईसाई किस तरह का इंसान बनाना चाहते हैं?’’
नातिन श्वेता सुमन ने नानी की मौत और अपने मामा द्वारा ईसाई मतांतरण किए जाने के सम्बन्ध में जाँच कराने के लिए स्थानीय SP के समक्ष शिकायत दी है. शिकायत में कहा है कि उनके मामा उनकी नानी पर जबरन ईसाई धर्मांतरण के लिए दबाव डालते थे.
बरसों मां से दूर रहने वाला डेविड नवंबर, 2019 में अचानक बोकारो पहुंचा और जिद करके अपनी मां को ग्वालियर ले गया. श्वेता बताती है, ‘‘ग्वालियर ले जाकर मामा ने नानी को एक तरह से घर पर कैद कर दिया. उन्हें किसी से मिलने नहीं दिया जाता था और जब भी मामा और मामी घर से बाहर जाते थे, तो बाहर से ताला बंद कर देते थे. कभी चोरी-छिपे वह फोन कर बताती थीं कि डेविड ईसाई बनने और चर्च जाने की जिद करता है, लेकिन मैं आजीवन हिंदू ही रहना चाहती हूं, मुझे बचा लो. वह मुझे मारता भी है. जब मामा को पता चला कि नानी हम लोगों को फोन करती हैं, तो उन्होंने उन्हें फोन देना ही बंद कर दिया. इस कारण उनसे बहुत दिनों तक बात भी नहीं हो पाती थी.’’
श्वेता ने बताया कि, ‘‘2 जून की दोपहर में नानी को एक मोबाइल मिला तो उन्होंने बताया कि डेविड ने आज भी मुझे मारा है. मुझे यहां से बोकारो ले जाओ, लेकिन हम लोग चाह कर भी उन्हें नहीं ला पाए, क्योंकि आज तक मामा ने ग्वालियर का अपना पता नहीं बताया था. नानी का बाहरी दुनिया से कोई संपर्क ही नहीं होने दिया जाता था, इसलिए उन्हें भी घर का पता मालूम नहीं था. फिर तीन जून को सूचना मिली कि नानी नहीं रहीं.’’
जानकारी के अनुसार जब डेविड को लगा कि अब उसकी मां नहीं बचेगी, तो वह उन्हें अस्पताल ले जाने लगा, लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई. अस्पताल में डेविड ने कभी अपना नाम धीरेंद्र, तो कभी डेविड बताया. इससे शक हुआ और पुलिस को बुलाया गया और शव का पोस्टमार्टम किया गया. तब तक डेविड ने फोन करके श्वेता को मां की मौत की जानकारी दी और कहा कि शव को जल्दी ही दफना दिया जाएगा. इस पर श्वेता ने विरोध किया और उन्होंने ग्वालियर प्रशासन से संपर्क कर शव को सुरक्षित रखने का आग्रह किया. प्रशासन ने डेविड को शव नहीं दिया. चार जून को श्वेता ग्वालियर पहुंचीं और शव का अंतिम संस्कार करने की बात की. इस पर डेविड ने कहा, ‘‘मैं ईसाई बन चुका हूं, इसलिए अपनी मां का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से नहीं करूंगा. सब कुछ ईसाई रीति-रिवाज से होगा.’’ विवाद बढ़ा तो श्वेता ने ग्वालियर के जिलाधिकारी की मदद ली. इसके बाद प्रशासन ने मामले को सुलझाया. फिर डेविड अस्पताल से अपना घर चला गया और श्वेता कुछ समाजसेवियों के सहयोग से नानी के शव को लेकर ग्वालियर स्थित मुक्तिधाम पहुंचीं. वहां उन्होंने शव का अंतिम संस्कार किया. श्वेता ने ही मुखाग्नि दी. श्वेता कहती हैं, ‘‘कन्वर्जन के कारण मेरा पूरा परिवार बिखर गया है या यह भी कह सकते हैं कि नष्ट हो गया है. कन्वर्जन रूपी विषैले सांप ने मेरे परिवार को खत्म कर दिया. इस सांप को कुचलने की जरूरत है.’’
(पाञ्चजन्य से इनपुट के साथ)