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स्वतंत्रता संग्राम में सामूहिक आत्मबलिदान का अनुपम प्रसंग

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नरेंद्र सहगल

इतिहास साक्षी है कि भारत की स्वतंत्रता के लिए भारतवासियों ने गत 1200 वर्षों में तुर्कों, मुगलों, पठानों और अंग्रेजों के विरुद्ध जमकर संघर्ष किया है. एक दिन भी परतंत्रता को स्वीकार न करने वाले भारतीयों ने आत्मबलिदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. मात्र अंग्रेजों के 150 वर्षों के कालखंड में हुए देशव्यापी स्वतंत्रता संग्राम में लाखों बलिदान दिए गए. परन्तु अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए सामूहिक आत्मबलिदान ने लाखों क्रांतिकारियों को जन्म देकर अंग्रेजों के ताबूत में कील ठोकी.

जलियांवाला बाग का वीभत्स हत्याकांड जहां अंग्रेजों द्वारा भारत में किये क्रूर अत्याचारों का जीता जागता सबूत है. वहीं, ये भारतीयों द्वारा दी गयी असंख्य कुर्बानियों और आजादी के लिए तड़पते जज्बे का भी अनुपम उदाहरण है. कुछ एक क्षणों में सैकड़ों भारतीयों के प्राणोत्सर्ग का दृश्य तथाकथित सभ्यता और लोकतंत्र की दुहाई देने वाले अंग्रेजों के माथे पर लगा ऐसा कलंक है जो कभी भी धोया नहीं जा सकता. यद्यपि इंग्लैण्ड के वर्तमान प्रधानमंत्री ने इस घटना के प्रति खेद तो जताया है, लेकिन क्षमायाचना किसी ने नहीं की.

अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने के लिए अखिल भारत में फैल रही क्रांति को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा अनेक काले कानून बनाए जा रहे थे. स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज़ को सदा के लिए खामोश करने के उद्देश्य से अंग्रेज सरकार ने रोलेट एक्ट बनाया. इस कानून का सहारा लेकर राजद्रोह के शक में किसी को भी गिरफ्तार करके जेल में डालना आसान हो गया था. भारत में बढ़ रही राजनीतिक और क्रान्तिकारी गतिविधियों को दबाने के लिए रोलेट एक्ट में कथित राजद्रोही को अदालत में जाकर अपना पक्ष रखने का कोई अधिकार नहीं था. बिना चेतावनी दिए लाठीचार्ज और गोलीबारी का अधिकार पुलिस और सेना को दे दिया गया था. ये रोलेट एक्ट 1919 में ब्रिटेन की सरकार ने वहां की इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में एक प्रस्ताव के माध्यम से पारित किया था.

इस कानून के खिलाफ सारे देश में आक्रोश फैल गया. जलसों-जुलूसों और विरोध सभाओं की झड़ी लग गयी. अनेक नेता और स्वतंत्रता सेनानी गिरफ्तार करके बिना मुकदमा चलाए जेलों में डाल दिए गए. अमृतसर के दो बड़े सामाजिक नेता डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू जब गिरफ्तार कर लिए गये तो अमृतसर सहित पूरे पंजाब में अंग्रेजों के विरुद्ध रोष पनपा. 13 अप्रैल, 1919 को वैशाखी वाले दिन पंजाब भर के किसान अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में वैशाखी स्नान करने के लिए एकत्र हुए थे. इसी दिन जलियांवाला बाग़ में एक विरोध सभा का आयोजन हुआ. जिसमें लगभग 20 हजार लोग उपस्थित थे. ये सभा काले कानून रोलेट एक्ट को तोड़कर हो रही थी. पंजाब के अंग्रेज गवर्नर जनरल माइकल ओ ड्वायर के आदेश से जनरल डायर के नेतृत्व वाली ब्रिटिश इंडियन आर्मी ने जलियांवाला बाग को घेर लिया और बिना चेतावनी के गोली वर्षा शुरू कर दी.

आधुनिक इतिहासकार प्रो. सतीश चन्द्र मित्तल ने अपनी पुस्तक कांग्रेस अंग्रेज भक्ति से राजसत्ता तक के पृष्ठ 56 पर ऐतिहासिक तथ्यों सहित लिखा है “1857 ईस्वी के महासमर के पश्चात भारतीय इतिहास में पहला क्रूर तथा वीभत्स नरसंहार 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में हुआ. रोलेट एक्ट के विरोध की प्रतिक्रिया स्वरुप ब्रिटिश सरकार ने उसका बदला 11 अप्रैल को जनरल डायर को बुलाकर तथा वैशाखी के पर्व पर जलियांवाला बाग में सीधे पंजाब के कृषकों एवं सामान्य जनता पर 1650 राउंड गोलियों की बौछार करके लिया. ये गोलियां सूर्य छिपने से पूर्व 6 मिनट तक चलती रहीं….. सभी नियमों का उल्लंघन करके गोलियां उस ओर चलाई गईं, जिस ओर भीड़ सर्वाधिक थी. हत्याकांड योजनापूर्वक था. जनरल डायर के अनुसार उसे गोली चलाते समय ऐसा लग रहा था, मानों फ्रांस के विरुद्ध किसी मोर्चे पर खड़ा हो. गोलियों के चलने के पूर्व एक हवाई जहाज उस स्थान का चक्कर लगा रहा था.”

सभा में लगभग 20 हजार लोग उपस्थित थे. गोलियां तब तक चलती रहीं, जब तक ख़त्म नहीं हुई. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 379 व्यक्ति मारे गए तथा लगभग 1200 घायल हुए. इम्पीरियल काउंसिल में महामना मदन मोहन मालवीय ने मरने वाले लोगों की संख्या 1000 से अधिक बताई. स्वामी श्रद्धानन्द ने गाँधी जी को लिखे के पत्र में मरने वाले लोगों की संख्या 1500 से 2000 बताई. जलियांवाला बाग़ में एक कुआं था जो आज भी है. इसी कुएं में कूदकर 250 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान दे दी थी. इस हत्याकांड के बाद रात्रि आठ बजे अमृतसर में कर्फ्यू लगा दिया गया था. पूरे पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था.

इतने भयंकर हत्याकांड के बाद भी अंग्रेज शसकों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. अनेकों निरपराध सत्याग्रहियों को जेलों में ठूस दिया गया. अमृतसर में बिजली और पानी की सप्लाई बंद कर दी गयी. लोगों को मार्शल लॉ का निशाना बनाया गया. बाहर से आने वाले समाचार पत्र बंद कर दिए गए. पत्रों के संपादकों पर झूठे मुकदमे बनाकर उन्हें एक-एक, दो-दो वर्षों की सजा दी गई. अमृतसर, लाहौर इत्यादि स्थानों पर मार्शल लॉ के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए. अंग्रेज सरकार ने 852 व्यक्तियों पर झूठे आरोप लगाए. इनमें 581 लोगों को दोषी घोषित किया गया. दोषियों में 108 को मौत की सजा, 265 को जीवन भर के लिए देश निकाला तथा अन्य सजाएं दी गईं. लोगों को बंद रखने के लिए लोहे के पिंजरे भी बनवाए गए. सम्पूर्ण पंजाब कई महीनों तक शेष भारत से कटा रहा.

जलियांवाला बाग़ का नरसंहार भारत में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम में एक परिवर्तनकारी घटना साबित हुई. पूरे देश में सशस्त्र क्रान्तिकारी सक्रिय हो गए. प्रतिक्रियास्वरूप रविन्द्र नाथ ठाकुर ने अपनी नाईटहुड की उपाधि वापस कर दी. बालक सरदार भगत सिंह ने जालियांवाला बाग की रक्तरंजित मिट्टी को उठाकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने का  प्रण किया. इस नरसंहार के लिए जिम्मेदार गवर्नर ओ ड्वायर को 21 साल बाद 1940 में सरदार उधम सिंह ने इंग्लैण्ड में गोलियों से भून दिया. प्रत्येक वर्ष जलियांवाला बाग में शहीदों की शहादत की स्मृति में श्रद्धांजलि कार्यक्रमों का आयोजन होता है.

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