करंट टॉपिक्स

शाहजहांपुर की महिलाओं ने गाय के गोबर से तैयार की कलाकृतियां, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर होगी बिक्री

Spread the love

नई दिल्ली. हमारे यहां गाय को माता मानकर पूजा करने की पद्धति चली आ रही है. प्राचीन काल से गाय के दूध, गोबर और मूत्र का औषधीय उपयोग करते आ रहे हैं. वहीं, आजीविका का साधन भी रहा है. वर्तमान में कोविड-19 से सबक लेते हुए हम अपनी पुरानी परंपरा और स्वदेशी की ओर लौट रहे है. ऐसे ही उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर में गाय के गोबर से कलाकृतियां बनाई जा रही हैं. जो बहुत जल्द ऑनलाइन प्लेटफार्म पर उपलब्ध होंगीं.

शाहजहांपुर में सखी संस्था द्वारा गाय के गोबर से 50 से अधिक प्रकार की कलाकृतियां तैयार की जा रही हैं. कुछ ही दिनों में सखी संस्था द्वारा गाय के गोबर से तैयार कलाकृतियां अमेजॉन पर ऑनलाइन भी दिखनी और बिकनी शुरू हो जाएंगी. घर की सजावट की कलाकृतियां, धार्मिक प्रतीक चिन्ह, दीपक, मूर्तियां, धूपबत्ती और उपलों का निर्माण शामिल है. सखी की अध्यक्ष पूजा गंगवार बेसिक शिक्षा विभाग के तहत तिलहर ब्लॉक के राजनपुर के उच्च प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका हैं. उनके द्वारा तिलहर तहसील के बतलैया फार्म पर महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्रयास किए जा रहे है. लॉकडाउन के कारण प्रवासी महिला मजदूर अपने गांव लौटी थीं, उनके लिए भी स्वरोजगार का मार्ग खुला है.

सर्वोदय किसान प्रोडूसर कंपनी लिमिटेड (एफपीओ) के डायरेक्टर प्रेमशंकर ने बताया कि सखी के सदस्यों द्वारा गाय के गोबर से बनाई कलाकृतियों को ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफार्म पर बिक्री के लिए जल्द लांच किया जाएगा. एफपीओ बनाने के बाद करीब डेढ़ माह पूर्व ही उन्होंने कृलाकृतियों की बिक्री के लिए अप्लाई किया था, जिसका रिस्पांस मिला. ऑनलाइन प्लेटफार्म पर हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया जा रहा है, उसके लिए उनके ब्रांड गौशिल्प को सलेक्ट किया गया है. गौशिल्प ब्रांड की कलाकृतियों को अब विश्व स्तर पर भी पहचान मिल सकेगी.

प्रेमशंकर बताते हैं कि पहले गाय के गोबर को सुखाया जाता है. इसके बाद उसे कूटा जाता है. मिक्सर में डाला जाता है. फिर गोबर काफी महीन हो जाता है. इसके बाद उसमें गोमूत्र मिला कर आटे की तरह उसे माड़ लिया जाता है. उसमें खेती में इस्तेमाल होने वाले जिप्सम को भी मिलाया जाता है. इसके बाद मिट्टी की तरह गोबर तैयार सांचे में ढालने लायक बन जाता है. उसे अलग-अलग सांचों में ढाला जाता है. उससे मूर्ति, दीपक, कीरिंग व अन्य सजावटी सामान तैयार हो जाता है. इसके बाद उसे सूखने के लिए रख दिया जाता है. सूखने के बाद मूर्ति व अन्य सामान को कलर कर दिया जाता है. आयुर्वेद के अनुसार, गौमूत्र विष नाशक, जीवाणु नाशक होता है. इससे वातावरण को कोई नुकसान नहीं होता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published.