काशी. विश्व मांगल्य सभा की अखिल भारतीय संगठन मंत्री वृशाली जोशी ने कहा कि ‘महि’ का अर्थ होता है पृथ्वी, जो पृथ्वी जैसा सहनशील, कल्याणकारी और सृजनकर्ता हो, उसे ही कहते हैं महिला. इसी प्रकार नारी का अर्थ होता है – न+अरि, जिसका कोई शत्रु न हो.
रविवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता भवन में महिला समन्वय काशी विभाग द्वारा आयोजित मातृशक्ति संगम में भारतीय चिंतन में महिला विषय पर उन्होंने मातृ शब्द की उत्पत्ति के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि जब देवी सीता रावण की अशोक वाटिका में थीं, तब वह रावण से घास के तिनके की ओट से बात करती थी. उन्होंने रावण को चेतावनी दी कि मा-तृणवत् अर्थात महिला को घास के तिनके के समान मत समझो. इसी मा-तृणवत से मातृ शब्द की उत्पत्ति हुई है. जो परिवार के मत का निर्माण करने वाली होती है, उसे माता कहते हैं. पति का पतन न होने देने वाली की व्याख्या पत्नी रूप में की जाती है. पश्चिमी चिंतन में महिला-पुरुष में स्पष्ट भेद है, जबकि भारतीय चिंतन किसी प्रकार के भेद को नहीं मानता.
वेदों में मातृ देवो भव सबसे पहले आता है. भारतीय संविधान में प्रारम्भ से ही नारी को समानता का अधिकार प्राप्त है जो प्राचीन भारतीय चिंतन पर ही आधारित है. नारी स्वयं अपने अन्दर की शक्ति को पहचाने तो किसी भी अधिकारों के लिए उसे संघर्ष नहीं करना पडे़गा. यह दायित्व नारी पर ही है कि अपने पुत्रों-पुत्रियों में दैवीय संस्कारों का निर्माण करे. यदि प्रत्येक मां अपनी संतति को यह संकल्प दिलाए कि गलत तरीके से धन उपार्जित नहीं करना है तो भ्रष्टाचार यहीं समाप्त हो जाएगा. शिवाजी का निर्माण तब तक नहीं हो सकता, जब तक जीजाबाई का निर्माण न हो.
भारत के विकास में महिलाओं की भूमिका विषय पर महिला समन्वय की अखिल भारतीय सह संयोजिका डॉ. ममता यादव ने कहा कि यदि गर्भ संस्कार अच्छा होगा तो राष्ट्र को अच्छी संतानें मिलेंगी. जिस प्रकार महारानी लक्ष्मीबाई ने गरज कर कहा था ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’. उसी प्रकार भारतीय नारी का भी संकल्प होना चाहिए कि मैं अपने देश का आत्मसम्मान झुकने नहीं दूंगी. कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका पर कहा कि कृषि में श्रीअन्न की पैदावार को बढ़ाना चाहिए. साथ ही शहरी क्षेत्र में किचन गार्डनिंग को बढ़ावा देना चाहिए. पद्मश्री श्रीमती लहरीबाई का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने श्रीअन्न की 162 प्रजातियों को संरक्षित किया है. परिवार के स्वास्थ्य की चिंता माताएं ही करती हैं. बालकों के खेलकूद एवं आहार-विहार में सुधारकर स्वस्थ समाज को विकसित किया जा सकता है.
कार्यक्रम के प्रारम्भ में वेंकट रमन घनपाठी ने वैदिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया. मंचासीन अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन कर एवं भारत माता के चित्र तथा महामना की प्रतिमा पर पुष्पांजली समर्पित कर कार्यक्रम प्रारम्भ किया. विषय स्थापना मातृ संगम की प्रान्त संयोजिका डॉ. आनन्द प्रभा ने की.
रामचरित मानस की चौपाई पर मनोहारी नृत्य नाटिका
कार्यक्रम में निवेदिता शिक्षा सदन की छात्राओं ने गवान श्रीराम के जीवन प्रसंग पर आधारित नृत्य नाटिका की मनोहारी प्रस्तुती दी. विद्यार्थियों ने श्रीराम जन्म, धनुष यज्ञ, शबरी मिलन, श्रीराम-रावण युद्ध एवं श्रीराम राज्याभिषेक का सुन्दर चित्रण किया.
भिक्षुक बच्चों ने किया वैदिक मंगलाचरण – सांस्कृतिक कार्यक्रम की सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रस्तुति उर्मिला देवी फाउण्डेशन द्वारा पालित भिक्षुक बच्चों द्वारा वैदिक मंगलाचरण रहा. पूनम शर्मा ने देशभक्ति गीतों की प्रस्तुति दी.
प्रतिभा सिंह, किशोर रोटी बैंक की निहारिका, डॉ. कात्यायनी (दन्त चिकित्सक), कोमल गुप्ता, गुलाबी मीनाकारी के लिए शालिनी यादव, कविता सिंह, वीणा गुप्ता (गंगा स्वच्छता अभियान), वीना सिंह, उपशास्त्रीय गायिका सुचारिता गुप्ता, डॉ. सरिता मिश्रा (आयुर्वेद चिकित्सक), शारदा सिंह (उद्यमी) एवं वर्षा सिंह को मातृशक्ति संगम द्वारा समाज में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया. कार्यक्रम का संचालन मातृशक्ति संगम की काशी विभाग की संयोजिका डॉ. भारती मिश्रा ने किया.