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विश्व में धर्म से मुक्त कुछ भी नहीं है – डॉ. मोहन भागवत जी

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वलसाड, गुजरात। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने श्री सद्गुरुधाम, धरमपुर, वलसाड में आयोजित भगवान भावभावेश्वर रजतोत्सव के समापन समारोह में सहभागिता की। तथा इस अवसर पर आयोजित यज्ञ में आहुति दी।

इस अवसर पर सरसंघचालक जी ने कहा कि धर्म एक ऐसा तत्व है जो सभी पर लागू होता है और यह पूरी दुनिया के लिए एक समान है। यह नियम पृथ्वी के निर्माण के साथ ही स्थापित हो गया था और यह सृष्टि उसी नियम से चलती है। इसलिए इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जो धर्म से मुक्त हो। हर किसी की आस्था अलग-अलग हो सकती है, लेकिन वह एक ही है। इसलिए, धर्मांतरण की कोई आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने कहा कि “धर्मांतरण अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए, अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए, अपनी शक्ति का विस्तार करने के लिए किया जाता है, क्योंकि शक्ति और अधिकार से अपनी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है तथा अन्य लोगों का उपयोग किया जा सकता है”। जब यह मानसिकता उभरी तभी से धर्मांतरण शुरू हो गया, अन्यथा, हर पूजा के पीछे आध्यात्मिकता है। यदि हम आध्यात्मिकता को ध्यान में रखें तो धर्मांतरण की कोई आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने कहा कि ऐसी ताकतें हैं जो नया आध्यात्मिक मार्ग नहीं बताती हैं, वे लालच, प्रलोभन, बल और जबरदस्ती, अवसर का फायदा उठाकर परिवर्तन करने की कोशिश करती हैं। यह वास्तव में अत्याचार है और ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन इसे रोकने के लिए हमें क्या करना चाहिए? यह बहुत सरल है। वह जो चाहे करें, लेकिन अगर हम नहीं बदलेंगे तो वह क्या करेंगे?

सरसंघचालक जी ने कहा कि हमारा आचरण शुद्ध हो और हम धर्म के अनुसार कार्य करें, क्योंकि धर्म के अनुसार कार्य करने में ही सबका कल्याण है। हम स्वार्थ और लालच में न फंसें और कोई हमें धर्म से न मोड़ दे, इसके लिए एक ऐसा केंद्र बनाया जाना चाहिए, जहां सब धर्म से लाभ उठा सकें। जिसे हमारी परंपरा में मंदिर कहा जाता है, जहां पूरा समुदाय आता है। मंदिर ने आध्यात्मिकता, धर्म, आस्था, अर्थशास्त्र और सामाजिक जीवन सहित जीवन के हर पहलू के लिए प्रशिक्षण और प्रबंधन प्रदान किया। धर्म एक स्वर्णिम आवश्यकता है और सभी मानते हैं कि यह भारत से प्राप्त होगा, इसलिए भारत को अपने धर्म पर ही खड़ा होना होगा।

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