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प्रभु श्रीराम का भक्त बनने के लिए हमें भी उनके आदर्शों से प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए

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अयोध्या. दिगंबर अखाड़ा में श्रीराम जन्मभूमि न्यास के पूर्व अध्यक्ष ब्रह्मलीन परमहंस रामचंद्र दास जी की 21वीं पुण्यतिथि के अवसर पर उनकी मूर्ति का अनावरण किया गया. मूर्ति का अनावरण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया. उन्होंने यहां पूजन-अर्चन व पौधरोपण भी किया.

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि आज दुनिया की तस्वीर हम सभी देख रहे हैं. भारत का आस-पड़ोस जल रहा है, मंदिर तोड़े जा रहे हैं. हिन्दुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है. तब भी हम इतिहास के तथ्यों को ढूंढने का प्रयास नहीं कर रहे कि वहां ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्यों पैदा हुई है. जो समाज इतिहास की गलतियों से सबक नहीं सीखता है, उसके उज्ज्वल भविष्य पर भी ग्रहण लगता है. सनातन धर्म पर आने वाले संकट से निपटने के लिए एकजुट होकर कार्य करने और लड़ने की आवश्यकता है. राम मंदिर का निर्माण मंजिल नहीं, पड़ाव है. इसे आगे भी निरंतरता देनी है.

रामजन्मभूमि आंदोलन को जीवन का मिशन बनाया

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के परम भक्त पूज्य ब्रह्मलीन परमहंस रामचंद्र दास का पूरा जीवन रामजन्मभूमि के लिए समर्पित रहा. उन्होंने आंदोलन को जीवन का मिशन बनाया. संतों का संकल्प एक साथ एक स्वर में बढ़ा तो अयोध्या में मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ. मेरा सौभाग्य है कि 21वर्ष बाद ही सही, उनकी प्रतिमा के स्थापना का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है.

गोरक्षपीठ गोरखपुर और दिगंबर अखाड़ा अयोध्या 1940 के दशक से एक दूसरे के पूरक बनकर कार्य करते थे. जब रामचंद्र दास महराज बचपन में अयोध्या धाम आए थे, तबसे उनका लगाव गोरक्षपीठ से था. तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ के सानिध्य में रहकर रामजन्मभूमि आंदोलन आगे बढ़ा. 1949 में रामलला के प्रकटीकरण के साथ ही तत्कालीन सरकार द्वारा प्रतिमा को हटाने की चेष्टा के खिलाफ न्यायालय में जाने और वहां से सड़क तक इस लड़ाई को बढ़ाने का कार्य गोरक्षपीठ व पूज्य संत परमहंस रामचंद्र दास जी महराज ने मिलकर किया. इसी का परिणाम है कि पूज्य संतों की साधना फलीभूत हुई और 500 वर्षों का इंतजार समाप्त हुआ. अयोध्या में रामलला विराजमान हुए. संतों का गौरव बढ़ा और अयोध्या को नई पहचान मिली.

मुख्यमंत्री ने कहा कि संतों ने बातचीत से समस्या का हल निकालने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन जब बातचीत के रास्ते समाप्त हो गए और सरकार की हठधर्मिता आड़े आने लगी तो पूज्य संतों ने लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष का रास्ता चुना. इसके उपरांत देश के अंदर मजबूती से आंदोलन आगे बढ़ा. मामला न्यायालय में गया तो भाजपा की डबल इंजन सरकार बनने के उपरांत समस्या के समाधान का मार्ग निकला.

स्मरणीय बन गई पांच अगस्त और 22 जनवरी की तिथि

उन्होंने कहा कि 5 अगस्त, 2020 को अयोध्या में उच्चतम न्यायालय के आदेश के क्रम में भव्य मंदिर निर्माण कार्य का शिलान्यास व भूमि पूजन किया. 22 जनवरी, 2024 को रामलला फिर से अयोध्या धाम में विराजमान हुए. यह तिथियां सनातन धर्मावलंबियों के लिए स्मरणीय बन गई. जब 22 जनवरी, 2024 को रामलला विराजमान हुए तो पूज्य संतों की आत्मा को शांति प्राप्त हुई. उन्हें भी वर्तमान पीढ़ी पर विश्वास हुआ होगा कि यह सही दिशा में कार्य कर रही है.

परमहंस रामचंद्र दास जी महराज मेरे पूज्य गुरु के तुल्य थे. गोरखपुर से अयोध्या, लखनऊ और प्रयागराज जाते समय गुरु जी मुझसे पूछते थे कि अयोध्या के दिगंबर अखाड़ा गए थे, परमहंस जी का हालचाल लिया. मैं यदि भूल गया तो वे मुझे डांटते भी थे. कहते थे वह मेरे लिए गुरु भाई हैं. जब भी इस रास्ते जाता था तो उनके पास पहुंचकर हालचाल लेता था. वह अपने दरवाजे पर बैठकर मस्ती के साथ लोगों से बातचीत करते थे. उनका वात्सल्य भी हमें देखने को मिलता था. उन्होंने अपना जीवन लक्ष्य, मूल्यों, सनातन धर्म की परंपरा के लिए जिया था. वह कहते थे कि अयोध्या में रामलला का मंदिर बने, यही मेरे जीवन का अंतिम संकल्प है.

प्रभु ने सबको जोड़ा था

हमें जातिवाद व छूआछूत से मुक्त ऐसे समाज की स्थापना करनी है, जिसके लिए प्रभु श्रीराम ने अपना जीवन समर्पित किया था. निषाद राज के नाम पर अयोध्या के यात्री विश्रामालय बन रहे हैं. श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या धाम में महर्षि वाल्मीकि के नाम पर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बना है. यात्रियों के लिए लगने वाले भंडारे की रसोई का नाम माता शबरी के नाम पर है. प्रभु श्रीराम ने सबको जोड़ा था और हमें भी प्रभु राम के मूल्यों-आदर्शों के जरिए उन मार्गों का अनुसरण करना होगा. प्रभु श्री राम का भक्त बनने के लिए हमें भी उनके आदर्शों से प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए.

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