पुणे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने भारत रत्न स्वर साम्राज्ञी स्व. लता मंगेशकर जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि लता दीदी के लिए मन के अंदर जितनी भी भावनाएँ हैं, उनको शब्दों में कहना मुश्किल हो जाता है. पूरे भारत वर्ष में सबको तनावमुक्त करने वाला वो प्यारा सा स्वर गुम हो गया है…कहीं खो गया है…लता दीदी की अपनी निजी जिंदगी की शुचिता, अनुशासन, कड़ी तपस्या और करुणा जैसे गुण हमें अपने जीवन में अपनाने चाहिए. यही संगीत के उस हिमालय को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
स्वर साम्राज्ञी स्व. लता मंगेशकर जी की स्मृति में दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल द्वारा श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया था. सभा में सरसंघचालक जी ने भी श्रद्धा सुमन समर्पित किये.
गणेश कला क्रीड़ा मंच पर आयोजित सभा में देश-विदेश से अनेक चाहने वाले उपस्थित थे. पंडित हृदयनाथ मंगेशकर, सुप्रसिद्ध गायिका आशा भोसले, उषा मंगेशकर, मीना खडीकर, आदिनाथ मंगेशकर, मंगेशकर परिवार के ये सदस्य उपस्थित थे. विद्या वाचस्पती शंकर अभ्यंकर, विश्वशांति विद्यापीठ के संचालक डॉ. विश्वनाथ कराड, संगीत दिग्दर्शक रूपकुमार राठौड़ आदि भी विशेष रूप से उपस्थित रहे.
मोहन भागवत जी ने कहा कि दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल की स्थापना, दीदी का ये महान कार्य हम सब जानते हैं. परंतु, इसके अतिरिक्त दादरा नगर हवेली की मुक्ति में अपने साथियों सहित योगदान, गरीब की सहायता, किसी जरूरतमंद के लिए हमेशा खड़ी हो जाती थी. दीदी ने देश के लिए कई सारे कार्यों में अपना सहयोग चुपके से दिया है, वो सब तो हम नहीं जानते. जीवन के अलौकिक तत्त्व बहुत से रूपों में हमें मिल जाते हैं. अपनी साधना पूर्ण करके वो इस दुनिया से चले जाते हैं. लता दीदी उनमें से एक अलौकिक तत्व थीं. उनका स्वर चिरंतन है. उन्हें जब भी मिला हूँ, उस मुलाकात में हमेशा असीम शांति का अनुभव किया है. जीवन की जो भी सत्यता है, उस स्थिति को उन्होंने स्वीकार कर लिया था. पिता को अंत समय में ठीक से उपचार नहीं मिला, ये बात स्मरण रखते हुए समाज में किसी अन्य को इस तरह का दुःख न झेलना पड़े, इसलिए अपने पिताजी के नाम पर अस्पताल खोला और इस अस्पताल के माध्यम से अपने सेवाभाव का आदर्श समाज के सामने रखा. मंगेशकर परिवार का दुःख बहुत बड़ा है, उनको सांत्वना देना बड़ा कठिन है. दीदी का स्वर हमारे साथ हमेशा हमेशा के लिए चिर स्वरूप रहेगा.
हृदयनाथ मंगेशकर जी ने कहा – “अब मेरी जिंदगी में अंधेरा छा गया है. लगता है कि ८० साल साथ रहकर भी दीदी को मैं ठीक से समझ नहीं पाया. पूरी दुनिया में मेरे लिए दो ‘माऊली’ माँ स्वरूप, मैं मानता हूँ. एक आलंदी के संत ज्ञानेश्वर और दूसरी मेरी दीदी.
सुप्रसिद्ध गायिका आशा भोसले जी ने कहा, “दीदी के जाने के बाद लगता है जैसे कि फिर से हमारे पिताजी ही हमें छोड़कर चले गए हैं..हम सब सही मायनों में अनाथ हो गए है..” लता दीदी के स्मरण से उनकी आँखें नम हो गई थीं और गला भर आया था. रुंधे स्वर में आशा जी ने लता दीदी की कई यांदें साँझा की.. उनके भावुक शब्दों से सभागृह भिने शब्दों से सभागृह में उपस्थित लोग भावुक हो गए.
डॉ. विश्वनाथ कराड और विद्या वाचस्पती शंकर अभ्यंकर जी ने भी श्रद्धा सुमन अर्पित किए.