उदयपुर. धर्मान्तरण न सिर्फ जनजाति संस्कृति के लिए, बल्कि देश के लिए भी खतरा है. धर्मान्तरण से जनजाति समाज की पहचान, उसका अस्तित्व ही संकट में आ जाएगा, तब इस बात पर विचार करने के लिए भी समय भी नहीं रहेगा. डी-लिस्टिंग आंदोलन जनजाति समाज के भविष्य के लिए संघर्ष है. इस बात को हम सभी को गहराई से समझना होगा और इस आंदोलन को सफल करने के लिए संकल्पित होना होगा. रविवार को उदयपुर के गांधी ग्राउण्ड में डी-लिस्टिंग महारैली में वक्ताओं ने उपस्थित जनजाति समाज से आह्वान किया.
जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान के आह्वान पर उदयपुर में हल्दीघाटी युद्ध विजय दिवस पर आयोजित हुंकार महारैली में वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामचंद्र खराड़ी ने कहा कि सनातन संस्कृति पर धर्मान्तरण के रूप में यह अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है. उन्होंने हल्दीघाटी युद्ध विजय दिवस के दिन वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप व भील राणा पूंजा को स्मरण करते हुए संस्कृति को बचाने के लिए जनजाति समाज को डी-लिस्टिंग के मुद्दे पर एकजुट होने का आह्वान किया.
बेणेश्वर धाम के महंत अच्युतानंद महाराज ने कहा कि यह जनजाति समाज के बच्चों के भविष्य के लिए आवश्यक है. जनजाति संस्कृति के संरक्षण के हर प्रयास में साथ खड़े हैं. जनजाति समाज के संत गुलाबदास महाराज ने सभा के दौरान हो रही बारिश को रूद्राभिषेक बताते हुए उपस्थित समाज जनों से संस्कृति संरक्षण का संकल्प करवाया. सभा में जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक राजकुमार हांसदा, न्यायाधीश प्रकाश उइके ने भी डी-लिस्टिंग को लेकर विचार रखे. सभी ने संविधान के आर्टिकल 342 में संशोधन की आवश्यकता पर बल दिया. जिस तरह आर्टिकल 341 में एससी के लिए स्पष्ट प्रावधान है कि धर्म परिवर्तन करने पर एससी के रूप में प्रदत्त लाभ उसे नहीं मिलेंगे, ठीक वैसा ही प्रावधान एसटी के लिए आर्टिकल 342 में जोड़ा जाए.
वक्ताओं ने कहा कि जनजाति समाज के धर्मान्तरण के विषय को लेकर जनजाति नेता व तत्कालीन सांसद डॉ. कार्तिक उरांव ने 1968 में ही चिंता शुरू कर दी थी. डॉ. कार्तिक उरांव ने 1968 में किए अपने अध्ययन में पाया कि 5 प्रतिशत धर्मांतरित ईसाई, अखिल भारतीय स्तर पर कुल एसटी की लगभग 70 प्रतिशत नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे हैं, साथ ही प्रति व्यक्ति अनुदान आवंटन का अंतर उल्लेखनीय रूप से गैर-अनुपातिक था. इस प्रकार की मूलभूत विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ, जिसने अनुशंसा की कि अनुच्छेद 342 से धर्मांतरित लोगों को एसटी की सूची से बाहर करने के लिए राष्ट्रपति के 1950 वाले आदेश में संसदीय कानून द्वारा संशोधन किया जाना जरूरी है. इस मसौदे पर तत्कालीन 348 सांसदगण का समर्थन भी प्राप्त हुआ था, इस विचाराधीन मसौदे पर कानून बनने से पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई.
वक्ताओं ने कहा कि भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के सदस्य एंथ्रोपोलोजिस्ट पद्मश्री डॉ. जेके बजाज का 2009 का अध्ययन भी गैर-आनुपातिक और दोहरा लाभ हड़पने की समस्या की विकरालता को उजागर करता है. गांव-गांव में धर्मान्तरण के कारण पारिवारिक समस्याएं भी आ रही हैं. कहीं-कहीं बहन भाई के बीच राखी का त्योहार खत्म हो गया है.
जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश संयोजक लालूराम कटारा ने कहा कि जो व्यक्ति अपने पूर्वजों की आस्था, संस्कृति, परम्परा, भाषा, व्यवहार छोड़कर अन्य धर्म में जा रहा है, तब उसे जनजाति के रूप में प्रदत्त अधिकार भी छोड़ना ही चाहिए क्योंकि उसे जनजाति होने का अधिकार उसके पूर्वजों और उसकी संस्कृति के आधार पर ही मिला है. धर्मान्तरण जनजाति समाज की संस्कृति को खत्म करने का षड्यंत्र है. धर्मान्तरण राष्ट्र के लिए भी खतरा है. धर्म बदलने वाले अपनी चतुराई से दोहरा लाभ उठा रहे हैं, जबकि मूल आदिवासी अपनी ही मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है.
इससे पूर्व, कार्यक्रम का आरंभ जनजाति सुरक्षा मंच के झंडारोहण व शंखनाद से हुआ. मंचासीन अतिथियों का सम्मान जनजाति सुरक्षा मंच की केन्द्रीय टोली के सदस्यों ने किया. कार्यक्रम में सुराता धाम के रतन गिरि महाराज, लसूड़िया धाम के विक्रम गिरि महाराज सहित अन्य संतवृंदों का भी सान्निध्य प्राप्त हुआ. संतों का सम्मान रमेश मूंदड़ा व बसंत चौबीसा ने किया. कार्यक्रम का संचालन जनजाति सुरक्षा मंच प्रदेश सह संयोजक बंशीलाल कटारा और भावना मीणा ने किया.
विभिन्न संगठनों व मातृशक्ति के सहयोग पर जताया आभार
जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से आहुत हुंकार डी-लिस्टिंग महारैली में उदयपुर के विभिन्न सामाजिक, व्यापारिक व स्वयंसेवी संगठनों का सहयोग रहा. कई संगठनों ने शोभायात्राओं के मार्ग में पेयजल, अल्पाहार आदि की व्यवस्थाएं की. सभी सहयोगकर्ताओं के साथ जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से नगर निगम, जिला प्रशासन और विशेष रूप से भोजन पैकेट में सहयोग करने वाली शहर की मातृशक्ति का भी आभार प्रकट किया गया.