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आरक्षण का लाभ जनजातियों को ही मिले, धर्मांतरित हो चुके लोगों को नहीं …!!!

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रांची. लोकप्रिय नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कार्तिक उरांव ने 1968 में धर्मांतरण कर ईसाई बन चुके जनजातीय समुदाय के लोगों को अधिसूचित समुदाय से बाहर करने के लिए संसद में एक बिल प्रस्तुत किया था. हालांकि वे इस बिल को पारित करवाने में सफल नहीं हो पाए, लेकिन लोगों का समर्थन उन्हें मिला. आज उनके द्वारा उठाई आवाज की गूंज फिर सुनाई दे रही है. झारखंड में यह मांग बड़े पैमाने पर उठी है कि मिशनरियों के प्रभाव में आकर ईसाई बन चुके जनजातियों को आरक्षण के लाभ से वंचित करना चाहिए.

धर्मांतरित और गैर धर्मांतरित जनजातियों के बीच का संघर्ष मुद्दे को बार-बार सतह पर लाता रहता है. जनजाति बहुल क्षेत्रों में धर्मांतरित ईसाई और जनजाति समुदाय के बीच विवाद काफी पुराना है. धर्मांतरण के बाद भी धर्मांतरित लोग जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण व अन्य सुविधाओं का लाभ उठाते रहते हैं. इतना ही नहीं, मौका पड़ने पर ईसाइयों को अल्पसंख्यक के तौर पर मिलने वाली सुविधाओं का भी लाभ उठा लेते हैं.

लंबे समय से रहा है टकराव

छोटा नागपुर क्षेत्र में 1845 में पहली ईसाई मिशनरी का आगमन हुआ, जो जर्मन प्रोटेस्टेंट थे. बाद में कैथोलिक मिशनरियों का प्रभाव बढ़ा. ईसाई मिशनरियों और जनजाति समुदाय के बीच धर्मांतरण और सेवा की आड़ में धर्म के प्रचार पर टकराव कई बार हिंसक रूप ले चुका है. मिशनरियों ने यहां बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कराया और उनके निशाने पर मुख्य रूप से जनजाति ही रहे. धर्मांतरण के लिए प्रलोभन देने से लेकर बहलाने-फुसलाने तक के हथकंडे अपनाए जाते रहे हैं.

रांची के हातमा में रहने वाले जगलाल पाहन जनजातियों के प्रधान पाहन यानि प्रमुख पुजारी हैं. सरहुल (संताल जनजातियों का प्रमुख उत्सव) के मौके पर इन्हें उत्साह से जनजातीय समुदाय के लोग कंधे पर बिठाकर सरना पूजा स्थल तक ले जाते हैं, जहां जगलाल घड़े में जल के स्तर को देखते हुए तालाब से केकड़े को पकड़कर यह भविष्यवाणी करते हैं कि इस साल फसल ठीक होगी या नहीं.

वह कहते हैं कि किसी के अन्य धर्म स्वीकार करने का मतलब यह है कि जनजाति परंपरा उसे पसंद नहीं है. वह कहते हैं कि जब सभ्यता और संस्कृति से ही किसी ने नाता तोड़ लिया तो फिर उसके नाम पर अधिकार का दावा क्यों. आरक्षण उसे ही मिलना चाहिए जो जनजाति है. धर्मांतरण कर चुके लोगों को चिन्हित कर उन्हें दोहरे लाभ के अधिकार से वंचित किया जाना चाहिए.

देवव्रत पाहन अरसे से उन क्षेत्रों में सक्रिय हैं, जहां ईसाई मिशनरियों का वर्चस्व है. वे कहते हैं – ज्यादा दिनों तक यह सब नहीं चलेगा. दूसरा धर्म भी अपनाना है और जनजातियों की हकमारी भी करनी है तो ये नहीं चलेगा. धर्मांतरण के बाद भी दिखावे के लिए आदिवासियों के कुछ परंपरागत रीति-रिवाज में सम्मिलित हो जाते हैं ताकि खुद को आदिवासी साबित कर सकें, लेकिन सिर्फ त्यौहार में नाच लेने भर से कोई जनजाति नहीं हो जाएगा.

परंपरा से न हो खिलवाड़

युवा अजय तिर्की कहते हैं – हमारे क्षेत्र में हमने मिशनरियों का प्रवेश रोक रखा है. हम नहीं चाहते कि कोई हमारी आस्था के साथ खिलवाड़ करे. वे (ईसाई) अब जनजाति नहीं रहे. वे सरना स्थल नहीं जाते, चर्च जाते हैं. उन्हें हमारे पर्व-त्यौहार अच्छे नहीं लगते. शादी भी आपस में करते हैं तो फिर आरक्षण का लाभ देकर हम उन्हें अपना हक क्यों दें. सरकार इस ओर ध्यान दे.

अजय तिर्की कहते हैं कि मिशनरियों का सेवा की आड़ में विश्वास बदलने का खेल बहुत पुराना है. धर्मांतरण करने वाले ईसाइयों ने चंगाई सभाओं से लेकर विभिन्न प्रचार माध्यमों और अपने तंत्र से उन्होंने सुदूर इलाकों में यह जाल फैलाया है. चर्च की सीढ़ी को माध्यम बना लोग विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचते रहे. इतना ही नहीं चर्च मतदान के लिए भी फरमान जारी करने लगा. ज्यादातर जनजातीय सीटों पर धर्मांतरित जनजातियों ने जीत भी हासिल की.

मांडर कॉलेज के अध्यापक डॉ. नाथू गाड़ी और एसएस मेमोरियल कॉलेज, रांची के अध्यापक सत्यदेव मुंडा इसके लिए सरकार द्वारा कानून में संशोधन किए जाने की वकालत करते हैं. केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा के अनुसार जब ईसाई बन चुके लोगों ने जनजाति सभ्यता छोड़ ईसाई धर्म अपना लिया तो जनजातियों का हक हड़पने का विचार भी त्याग देना चाहिए. सरना विकास समिति के प्रदीप मुंडा कहते हैं कि हम उनकी चाल को खूब समझते हैं. वे तत्काल आरक्षण छोड़ें.

‘संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण विशेष का कोई प्रावधान नहीं है. संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत जनजातियों को अनुसूचित जाति के नाम पर आरक्षण का लाभ दिया जाता है, न कि धर्म के आधार पर. जैसे ही वे धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनते हैं तो उनका नाम अनुसूचित जाति की सूची से बाहर कर देना चाहिए और आरक्षण का लाभ समाप्त कर देना चाहिए. इस तरह का एक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.’ – अभय मिश्र, अधिवक्ता, झारखंड उच्च न्यायालय

साभार – दैनिक जागरण

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