नई दिल्ली. अयोध्या में विवादित ढांचे से सम्बंधित आपराधिक मुक़दमे का निर्णय आ गया है. सत्य और न्याय की विजय हुई है. हालांकि न्यायालयों को यह निर्णय देने में 28 वर्ष लग गए. हम आशा करते हैं कि इस निर्णय से उन विषयों का पटाक्षेप हो जाएगा जो गत 472 वर्षों से हिन्दू मानस को व्यथित करते रहे हैं.
रामभक्तों ने इन झूठे मुकदमों का 28 वर्ष तक धैर्य और साहस से सामना किया. इसमें 49 एफ़आईआर थीं, अभियोजन ने 351 गवाह पेश किये और लगभग 600 दस्तावेज न्यायालय में दिये गए. मुक़दमे को सुन रहे नयायाधीश का कार्यकाल, उनके सेवानिवृत होने के बाद भी कई बार बढ़ाना पड़ा. तब जाकर यह फैसला आ पाया है.
प्रारंभ में सरकार ने 49 लोगों को अभियुक्त बनाया था. हम कृतज्ञता से उन 17 लोगों का पुण्य स्मरण करते हैं जो इस मुक़दमे के चलते वैकुण्ठ सिधार गए. इनमे अशोक सिंहल, पूज्य महंत अवैद्यनाथ, पूज्य परमहंस रामचन्द्र दास, श्रीमंत राजमाता विजया राजे सिंधिया, आचार्य गिरिराज किशोर, श्री बाल ठाकरे, विष्णुहरी डालमिया और वैकुण्ठ लाल शर्मा (प्रेम जी) जैसे महानुभाव हैं.
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 9 नवम्बर, 2019 के आदेश में यह सदा के लिए घोषित कर दिया है कि अयोध्या की सम्बंधित भूमि श्री रामलला विराजमान की ही है. आज के निर्णय ने षड्यंत्र के आरोपों को ध्वस्त कर दिया है. अब समय है कि हम राजनीति से ऊपर उठें, और बार-बार पीछे देखने की बजाए एक संगठित और प्रगत भारत के निर्माण के लिए आगे बढ़ें.
भारतीय समाज को अब अपना ध्यान आगे आने वाले कार्यों की ओर लगाना है. विश्व हिन्दू परिषद् पुनः अपने आप को श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण, सामाजिक ऊँच-नीच को दूर करके समरस समाज की स्थापना, अनुसूचित जाति-जनजाति और आर्थिक रूप से पिछड़े अन्य वर्गों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक उन्नति के लिए समर्पित करती है. साथ ही हमें ऐसा सशक्त भारत बनाना है जो अपने अन्दर के और सीमाओं पर की चुनौतियों का सफलता से सामना कर सके. विश्व हिन्दू परिषद मंदिर और उनकी सम्पत्तियों की रक्षा और मंदिरों की आय धर्म एवं समाज हित के कार्यों के लिए ही व्यय होने के लिए भी अपना संघर्ष सतत जारी रखेगी.