इंदौर (विसंकें). कोरोना महामारी गरीब-मजदूर वर्ग पर कहर बनकर टूटी. लॉकडाउन के दौरान जब देश में आवागमन के साधन बंद हो गए और मजदूर वर्ग की बचत और संसाधन खत्म हो चले, तब विवशता में उन्हें अपने-अपने प्रदेशों की ओर प्रवास करना पड़ा. इस प्रवास में जिसके हाथ जो साधन लगा उसके सहारे लाखों लोग सड़कों पर चल पड़े. कोई लोडिंग वाहन से, कोई ऑटो से, कोई दो पहिया से, कोई साइकिल से और अधिकांश पैदल ही बच्चों और सामान सहित सड़कों पर थे. इस त्रासदी का सबसे दुःखद पहलू यह था कि जिन व्यावसायिक प्रदेशों में यह मजदूर वर्ग अपनी सेवाएं दे रहा था, वहां के निवासियों ने महामारी के प्रकोप से डरकर इन गरीबों से एकदम ही मुंह मोड़ लिया था. इतना रूखापन धारण कर लिया कि मजदूर परिवारों को भोजन-दवा मिलना तो दूर कहीं पेयजल तक भी नहीं मिल पा रहा था. शिशुओं को दूध मिलना तो असंभव जैसा प्रतीत होता था. रुपया खर्च करने पर भी राहत नहीं मिल रही थी तो गरीब-लाचार की तो कौन कहे?
उस भयावह दौर में जब महाराष्ट्र सहित विभिन्न स्थानों से मजदूरों का रेला मध्यप्रदेश से होकर गुजरा तो उन गरीब परिवारों ने अंतर महसूस किया, उसे बताने में उनका गला रुंध जाता है. यूपी-बिहार की तरफ यात्रा कर रहे परिवारों को मध्यप्रदेश में और विशेषकर इंदौर में राहत मिली. इंदौर नगर के बायपास से गुजर रहे लाखों लोगों के लिए इंदौर में मिला अतिथि सत्कार सारी उम्र नहीं भूलने वाला एक विशेष अनुभव बन गया.
इंदौर के नागरिकों ने अपने मजदूर भाई-बहनों और उनके परिवारों पर प्यार-दुलार लुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. भूखों को भोजन, प्यासों को पेयजल व शरबत, बीमारों को दवा और इलाज, नंगे पैरों के लिए जूते चप्पल, सुस्ताने के लिए टेंट, शिशुओं के लिए दूध – सब कुछ अपनेपन के भाव के साथ उपलब्ध कराया गया. यह मजदूर महाराष्ट्र आदि राज्यों में कार्यरत थे और यूपी-बिहार को लौट रहे थे, ऐसे में कोई सीधा संबंध नहीं होते हुए भी मध्यप्रदेश की भूमि पर मिले प्यार और सेवा से ऐसा बंधन अनुभव किया जो इन्हें सारी उम्र इस राज्य की मिट्टी से जोड़े रखेगा. उस प्रवास के दौरान सहे हुए कष्ट और मध्यप्रदेश वासियों द्वारा पहुंचाई राहत दोनों ही भूलने के विषय नहीं हैं.
अब अनलॉक के दौर में जब कामकाज धीरे-धीरे पटरी पर आने लगा है और मजदूर भाई अपने गृह प्रदेशों से व्यावसायिक राज्यों की ओर पुनः निकल पड़े हैं, तो मध्यप्रदेश और विशेषकर इंदौर से गुजरते हुए उनकी भावनाएं कृतज्ञता ज्ञापित करने को उमड़ पड़ती हैं. इंदौर बायपास पर लोग अपने वाहनों से उतरकर इस प्रदेश की मिट्टी को प्रणाम कर रहे हैं और अपनी स्मृतियों को ताजा कर रहे हैं.
ऐसी ही एक घटना – यूपी के गोरखपुर जिले के पिपराइच निवासी सुभाषचंद्र पांडे परिवार सहित अपने निजी ऑटो रिक्शा से जब मुंबई लौट रहे थे तो इंदौर बायपास पर रुके, सड़क किनारे बैठकर भोजन के पूर्व उनकी धर्मपत्नी ने भोजन का पहला कौर इंदौर की भूमि को अर्पित कर प्रणाम किया और ईश्वर से प्रार्थना की कि इस नगर के नागरिकों को कभी भूख-प्यास नहीं सहनी पड़े क्योंकि जब हम भूखे-प्यासे थे तो इन्होंने ही हमें राहत पहुंचाई थी.
ऐसे ही प्रयागराज जिले के एक ग्राम के निवासी अंजनी कुमार तिवारी ने याद किया कि मुंबई से निकलने पर महाराष्ट्र पार करते-करते ही खाद्य सामग्री खत्म हो गई थी. मध्यप्रदेश में हमने भूखे प्रवेश किया. पर, यहां से भूखे नहीं आगे बढ़े. भरपेट भोजन तो मिला ही रास्ते के लिए भी भोजन बांध कर दिया गया. उन्हें सोनू सूद से कोई मदद नहीं मिल पाई थी. पर, इंदौर नगर में मिली सहायता को उन्होंने कहीं बढ़कर पाया.
ऐसे अनेक मजदूर भाई-बहन हैं, जिनका यह स्पष्ट मानना है कि मदद नहीं मिल पाने की स्थिति में वे लोग जीवित भी रह पाते या नहीं – यह कहा नहीं जा सकता. अपनी कृतज्ञता को अपने-अपने तरीकों से व्यक्त करते हुए लोग अपने कार्यस्थलों की तरफ जा रहे हैं और जीवन का चक्र फिर से गति पकड़ने लगा है.