देहरादून. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में जल संरक्षण को लेकर विभिन्न प्रयासों की प्रेरक कहानियां सुनाईं. उन्होंने 40 साल से पर्यावरण और जल संरक्षण के प्रति समर्पित उत्तराखंड की गरुड़ तहसील के सिरकोट निवासी जगदीश कुनियाल की मेहनत और लगन का जिक्र करते हुए कहा कि उनका काम भी बहुत कुछ सिखाता है. जगदीश का गांव और आसपास का क्षेत्र पानी की जरूरतों के लिए एक प्राकृतिक स्रोत्र पर निर्भर था, लेकिन कई साल पहले यह स्रोत सूख गया. इससे पूरे क्षेत्र में पानी का संकट गहराता चला गया. जगदीश ने इस संकट का हल पौधारोपण से करने की ठानी.
57 वर्षीय कुनियाल ने 18 साल की उम्र में गांव की बंजर जमीन में पौधारोपण का कार्य शुरू किया. उन्होंने अपनी 250 नाली पैतृक जमीन में कई प्रजातियों के पौधे रोपे हैं. वह अब तक 25 हजार से अधिक पौधे रोप चुके हैं. 20 साल पहले उन्होंने जमीन में चाय बागान भी बनाया. आज उनकी चालीस साल की मेहनत के चलते क्षेत्र का सूख चुका जलस्रोत फिर से सदानीरा बन गया है. वर्तमान में इस जलस्रोत से क्षेत्र के 400 ग्रामीणों को शुद्ध पेजयल मिल रहा है. गांव की 500 नाली से अधिक खेती को भी सिंचाई के लिए पानी मिल रहा है. कुनियाल के बसाए जंगल से क्षेत्र में सूख रहे प्राकृतिक जल स्रोतों को नया जीवन मिल रहा है. गांव के करीब आधा दर्जन छोटे-बड़े जलस्रोतों का पानी लगातार कम होता जा रहा था. पौधे बढ़ते गए तो स्रोतों में पानी की मात्रा भी बढ़ने लगी. वर्तमान में गांव के सभी जल स्रोतों में भरपूर पानी है, जिसका उपयोग लोग पीने के अलावा खेती के काम में भी कर रहे हैं. कुनियाल ने बताया कि बंजर जमीन को उपजाऊ बनाना आसान नहीं था. दिन-रात कड़ी मेहनत करनी पड़ी. उनके बसाए जंगल को कई बार नष्ट करने की भी कोशिश की गई. वह पौधे लगाते और कुछ अराजक तत्व उन्हें नष्ट कर देते. जंगली जानवरों का खतरा अलग से था. इसे देखते हुए उन्होंने 20 साल पहले निजी खर्च पर दो स्थानीय युवाओं को जंगल की सुरक्षा के लिए रोजगार पर रखा. युवाओं को रोजगार देने के बाद उनकी आय के संसाधन जुटाने के लिए चाय की खेती भी करनी शुरू की. चाय का उत्पादन शुरू होने के बाद से दोनों कर्मचारियों को भी अच्छी आय हो रही है. विषम परिस्थितियों में किए कार्यों के कारण ही आज वह एक हरे-भरे जंगल के जनक हैं. जगदीश के साथ 1990 से जुड़े अमस्यारी के पर्यावरण प्रेमी बसंत बल्लभ जोशी बताते हैं कि कुनियाल जमीन से जुड़कर कार्य करने पर विश्वास रखते हैं. उनके इसी जुनून और जज्बे ने क्षेत्र के कई प्राकृतिक स्रोतों को नया जीवन दिया है. उनकी मेहनत के कारण चीड़ से भरे जंगलों के बीच बांस, बुरांश, देवदार, उतीस जैसे पौधों की पैदावार हो रही है. उन्होंने अपने जंगल में उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाला अंगु का पौधा भी लगाया है.
पर्यावरण संरक्षण के अलावा पौधों को उन्होंने अपनी आय का साधन भी बनाया है. उन्होंने अपनी 800 नाली जमीन पर चाय का बागान तैयार किया है. जिसके जरिए उनकी आजीविका चलती है. वहीं बाकी बची हुई जमीन पर वह साग-सब्जी सहित अन्य जड़ी-बूटी वाले पौधे उगा रहे हैं.
बसंत बल्लभ जोशी ने कहा कि प्रकृति की रक्षा के लिए सराहनीय कार्य किया है. जिसको देखकर क्षेत्र के लोग भी प्रेरित हो रहे हैं.
कुनियाल के परिवार में उनकी पत्नी दीपा देवी, दो बेटे और दो बेटियां हैं. उनके दोनों पुत्र नौकरी करते हैं, जबकि बेटियां शिक्षा हासिल कर रही हैं. प्रधानमंत्री की ओर से जगदीश का जिक्र किए जाने पर परिवार गौरवान्वित महसूस कर रहा है.