वर्ष 2020 वैश्विक आपदा का रहा, जिससे सम्पूर्ण मानव जीवन गंभीर संकट मंडराता रहा. यह संपूर्ण विश्व के लिए कठिन परीक्षा का समय था. संकट के समय में विश्व शक्ति या संपन्न कहे जाने वाले देशों की जिम्मेवारी सर्वाधिक थी. परंतु, दुर्भाग्यवश संपन्न देश अपना दायित्व नहीं निभा सके. अमेरिका कोरोना संकट में स्वयं को ही बचाने में लगा रहा, यूरोप भी काफी हद तक लाचार दिखा. चीन, जिसे दुनिया ने कोरोना संकट के लिए दोषी माना था, उसे अविश्वासनीय राष्ट्र के रूप में देखने लगी थी. चीन महामारी को अवसर में बदलकर विशुद्ध कारोबारी का हुनर पेश करता दिखा.
ऐसी परिस्थितियों में भारत ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की सनातन परंपरा के साथ विश्व के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया. विश्व का एकमात्र देश है, जिसने संकट काल में कारोबार के स्थान पर न केवल अपने पड़ोसी देशों, बल्कि दुनिया के करीब 74 देशों को वैक्सीन के डोज उपलब्ध करवाकर मानव जीवन को बचाने का कार्य किया. प्रधानमंत्री ने इसे ‘वैक्सीन मैत्री’ नाम दिया, हालांकि कूटनीतिक भाषा में इसे ‘वैक्सीन डिप्लोमेसी’ भी कहा जा रहा है.
क्वॉड का समर्थन
अभी हाल ही में इंडो-पेसिफिक में चार देशों (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के स्वाभाविक गठबंधन ‘क्वॉड’ की वर्चुअल समिट में भारत की वैक्सीन स्ट्रैटेजी की प्रशंसा हुई. समिट में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी भारत के योगदान को सराहा. क्वॉड सदस्यों ने भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी को बूस्ट करने में सहयोग का रुख दिखाया है. इसके तहत भारत की वैक्सीन का निर्माण करने की क्षमता, अमेरिका की टेक्नोलॉजी, साथ ही अमेरिका व जापान के वित्त और आस्ट्रेलिया की लॉजिस्टिक क्षमता के दम पर साल 2022 तक आसियान देशों, प्रशांत महासागर के देशों और अन्य देशों को करीब एक अरब वैक्सीन की डोज उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है. यह चीन के लिए एक बड़ा झटका साबित होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि चीन वैक्सीन के जरिए इन देशों में नए कूटनीतिक उद्देश्य अर्जित करना चाह रहा था. अपने वादे के अनुसार वैक्सीन उपलब्ध कराने में चीन पहले ही असफल हो चुका है, लेकिन चीनी असफलता से उपजे गैप को भरने में यदि भारत सफल हो जाता है तो इससे भारत के लिए कूटनीतिक डिविडेंड की संभावनाएं बढ़ जाएंगी.
चीन के बाज़ारवाद पर भारी भारत की मानवीय संवेदना
वैक्सीन मैत्री में भारत चीन को पीछे छोड़कर काफी आगे निकल गया है. भारतीय वैक्सीन इंडो पेसिफिक रीजन में अधिक से अधिक भेजी जाएंगी. मार्च 2021 तक चीन की ओर से 28 देशों को कोरोना की वैक्सीन भेजी गई है. कई देशों तक चीन की वैक्सीन कहने के बावजूद भी नहीं भेजी गई. वहीं भारतीय वैक्सीन दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ-साथ अफ्रीका और लातिनी अमेरिका के देशों में चीन से पहले पहुंच गई है. संक्षेप में कहें तो भारत के वैक्सीन मैत्री पहल की विशेषता यह है कि जिन देशों में वैक्सीन भेजी गई है, उनमें से 50 प्रतिशत कम विकसित देश हैं. जबकि एक तिहाई छोटे द्वीपीय देश हैं. यह भारत की छोटे देशों को साथ लेकर चलने की नीति को दर्शाता है और यह बताता है कि भारत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व व वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श पर अब भी कायम है.
भारत द्वारा दुनिया के दूसरे देशों को दी जा रही वैक्सीन डोज का एक आधारभूत पक्ष मानवीय है, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए. लेकिन हम एक राष्ट्र हैं और राष्ट्र की समस्त अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों के पीछे कूटनीतिक पक्ष भी होते हैं. यही कारण है कि कुछ जानकार इसे केवल ‘मानवीय’ पक्ष तक सीमित कर विश्लेषण कर रहे हैं और कुछ का दायरा दक्षिण एशिया व दक्षिण पूर्व एशिया में चीनी दबदबे को कम करने तक विस्तृत है. लेकिन सच यह है कि भारत मानवता की रक्षा के साथ-साथ मैत्री धर्म निभा रहा है. चूंकि चीन इन देशों में घुसपैठ कर भारतीय हितों को लगातार नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है और काफी हद तक वह सफल भी हुआ है. लेकिन अब ये देश इस बात पर विचार करने के लिए विवश अवश्य होंगे कि वास्तविक मित्र भारत है, चीन नहीं. यह भारत के लिए कूटनीतिक लाभांशों को हासिल करने वाला पक्ष होगा.
भारत को दुनिया के दूसरे देशों की वैक्सीन से मदद करना जरूरी है ताकि खुद को एक जिम्मेदार ग्लोबल पॉवर के तौर पर स्थापित कर सके. आज भी बांग्लादेश के लोग भारत से खुद का ज्यादा जुड़ा महसूस करते हैं, चीन से नहीं. नेपाल में चीनी घुसपैठ और कम्युनिस्ट शासन के बावजूद भी नेपाली आज भी भारत के बेहद करीब हैं. यही स्थिति श्रीलंका की भी है. ऐसे में इन देशों को भारत द्वारा सक्रिय सहायता देने का मतलब है रिश्तों की बॉंडिंग की और अधिक मजबूती. इन देशों का भारत में भरोसा, भारत से निकटता का एहसास और भारत से अपेक्षा, एक फिर से यह साबित करता है कि भारत वैक्सीन डिप्लोमैसी में विजयी रहा है.
90 प्रतिशत देश वैक्सीन से वंचित, भारत ही सहारा
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार अब तक 95 प्रतिशत कोरोना वैक्सीन केवल 10 देशों में दी गई हैं. यानी करीब 90 प्रतिशत देश अब भी वंचित हैं. यह बेहद चिंता का विषय है. इस दृष्टि से भी भारत की वैक्सीन मैत्री को एक सकारात्मक पहल के रूप में देखा जा रहा है, न कि केवल कूटनीति दृष्टिकोण से.
भारत अब तक 70 से अधिक देशों को लगभग 6 करोड़ वैक्सीन डोज भेज चुका है. इनमें से 80.75 लाख वैक्सीन डोज पड़ोसी देशों को मुफ्त में देकर पड़ोसी देशों के साथ मैत्री धर्म निभाया. 1.65 करोड़ वैक्सीन डोज संयुक्त राष्ट्र को कोवैक्स मैकेनिज्म के तहत भेजी हैं. 3.39 करोड़ डोज कमर्शियल डील के तौर पर अन्य देशों को भेजी गई हैं.