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राष्ट्रीय सेवा संगम – स्वावलंबन के साथ स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देता वैभवश्री

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जयपुर. महिलाओं ने बचत की, स्वावलंबी बनने का विचार आया और एकजुट हुईं. इसी तरह से बना स्वयं सहायता समूह वैभवश्री.

राष्ट्रीय सेवा भारती द्वारा केशव विद्यापीठ परिसर में आयोजित राष्ट्रीय सेवा संगम की प्रदर्शनी में अपने समूह के उत्पाद ले कर आईं वैभवश्री समूह की प्रतिनिधि कविता वाघमरे गर्व से बताती हैं कि कभी तीन हजार रुपये की सामूहिक बचत से शुरू हुई यह यात्रा आज कम से कम 30 हजार रुपये प्रति माह के लाभ पर पहुंच चुकी है.

सेवा भारती, इंदौर नगर प्रमुख कविता ने बताया कि सेवा भारती के सहयोग से स्थानीय बहनों को सिलाई प्रशिक्षण के साथ ही आचार, पापड़, बड़ी, मुरब्बा, गुलदस्ते बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है. कुछ बहनें घर पर ही उत्पाद बना कर वैभवश्री तक भेजती हैं. जहां हम विदेशी छोड़कर स्वदेशी अपनाने की बातें ही करते रह जाते हैं, त्योहारों पर व्हाट्सएप संदेश चलाए जाते हैं कि दीवाली पर चीनी लाइट नहीं लगाएंगे, स्वदेशी अपनाएंगे, वहीं वैभवश्री ने दिवाली पर लगाई जाने वाली लाइट की लड़ियां बनाकर, इस नारे को सार्थक बनाया है. आज समूह घरों में बैठी महिलाओं से 50 हजार से अधिक लाइटिंग वाली लड़ियां बनवा रहा है. कविता की आंखों में चमक आ जाती है, जब वे बताती हैं कि इंदौर में चीनी लाइट लड़ियां लगाना बंद ही हो गया है.

वैभवश्री में कुर्ता पायजामा, कपड़ों के थैले, लंगोट, झंडे सब सामान सालभर बिकता है. इसके अतिरिक्त राखी के त्योहार पर राखियां, दीवाली की लड़ियों की भी वर्षभर बिक्री होती है. कहा जाना चाहिए महिलाओं ने साथी हाथ बढ़ाना की भावना को सार्थक करते हुए एक दूसरे को सम्बल दिया. समूह की महिलाएं न केवल स्वावलंबी बनी हैं, बल्कि अपने से कमजोर की आर्थिक सहायता भी करती हैं. हाल ही एक बहन को घर परिवार चलाने में परेशानी आई तो उसके पति को समूह की सभी महिलाओं ने मिलकर रिक्शा भेंट किया ताकि उसका घर परिवार चल सके.

कविता का कहना है – हमें सेवा भारती से हर समस्या का हल तुरंत मिलता है. बहनों को सेवा भारती प्रकल्प में प्रशिक्षण मिल जाता है. संघ के वस्त्र भंडार से कच्चा माल मिल जाता है, जिसे लाकर बहनें घर पर ही सिलाई कर झंडे, बैग, कुर्ते, पायजामा आदि सिलकर तैयार करती हैं. कोरोना काल में बहनों ने मास्क बनाकर बेचे.

वैभवश्री नामक यह समूह 3 साल से चल रहा है, जिसमें 10 महिलाएं है. तीन साल पहले ये 10 महिलाएं 100 रुपये की सामूहिक बचत के साथ जुटी थीं और अब इनकी यह बचत 5000 रुपये महीना पहुंच गई है. आज ये इतनी आत्मनिर्भर हैं कि आपस में लोन भी दे देती हैं और बड़े बैंकों के मोटे ब्याज चुकाने से भी बच जाती हैं. आपसी सहयोग और कर्मठता का उदाहरण देख कर इस क्षेत्र की अन्य बहनें भी प्रेरित होती हैं.

कविता याद करती हैं कि संगठन से जुड़ने से पहले जहां हम बहनें कुछ सोच पाने तक में सक्षम नहीं थीं, वहीं अब वे सामाजिक सरोकारों में शामिल हो रही हैं. गरीब को निःशुल्क इलाज जैसी जानकारियां उपलब्ध करवा रही हैं. समूह का सफलता मंत्र है – अनुशासन और ईमानदारी. आज समूह 30 हजार से 50 हजार रुपये वार्षिक लाभ कमा रहा है. सही ही है लगन और निष्ठा के साथ कर्म पथ पर चला जाए तो सफलता अपने आप मिलती है.

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