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नई दिल्ली। आतंकवाद के समर्थक पाकिस्तान को खुलेआम समर्थन तथा आतंकी ठिकानों पर किये भारत के ऑपरेशन सिंदूर की आलोचना करना तुर्की को भारी पड़ रहा है। भारत ने भी स्पष्ट संकेत दिया है – जो भारत के दुश्मनों व आतंक के साथ खड़ा होगा, उसके साथ अब कोई रिश्ता नहीं बचेगा। पाकिस्तान का समर्थन करने पर तुर्किए के खिलाफ भारत का विरोध सिर्फ सरकार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका असर व्यापार, पर्यटन और अब शिक्षा जगत तक पहुंच गया है। जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि भारत की नई नीति ‘न तुष्टीकरण, न समझौता’ पर आधारित है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया (जेएमआई) ने तुर्की संस्थानों के साथ अपने मौजूदा शैक्षणिक समझौता ज्ञापन (एमओयू) को निलंबित कर किया है। दिल्ली विश्वविद्यालय, कानपुर विश्वविद्यालय, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (एमएएनयूयू) भी सूची में शामिल हैं।
मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (MANUU) ने गुरुवार को यूनुस एमरे इंस्टीट्यूट, तुर्की के साथ अपने शैक्षणिक समझौता ज्ञापन को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया। संस्थान की ओर से जारी बयान में कहा गया – “यह निर्णय भारत-पाक तनाव की पृष्ठभूमि में पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों के लिए तुर्की के समर्थन के विरोध में लिया गया है”।
मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी ने तुर्की के यूनुस एमरे इंस्टीट्यूट के साथ पांच साल की अवधि के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत MANUU के स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज, लिंग्विस्टिक्स एंड इंडोलॉजी में तुर्की भाषा में डिप्लोमा शुरू किया गया था।
दिल्ली स्थित जामिया मिलिया विश्वविद्यालय (जेएमआई) ने तुर्की संस्थानों के साथ अपने समझौता ज्ञापन को “तत्काल प्रभाव” से रद्द कर दिया था।
बुधवार, 14 मई को, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए तुर्की के इनोनू विश्वविद्यालय के साथ अपने शैक्षणिक संबंध तोड़ लिये थे।
“राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से, जेएनयू और इनोनू विश्वविद्यालय, तुर्की के बीच समझौता ज्ञापन को अगली सूचना तक निलंबित कर दिया गया है। जेएनयू राष्ट्र के साथ खड़ा है। #राष्ट्रप्रथम”, जेएनयू ने अपने समझौता ज्ञापन को निलंबित करने की घोषणा करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया था।
जामिया मिलिया इस्लामिया की ओर कहा गया कि यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। कहा गया है कि, “हम भारत सरकार के साथ खड़े हैं और किसी भी ऐसे देश से संबंध नहीं रख सकते जो भारत के विरोधियों के साथ खड़ा हो।”
दिल्ली विश्वविद्यालय की समीक्षा प्रक्रिया शुरू
दिल्ली विश्वविद्यालय ने तुर्की के संस्थानों से जुड़े सभी समझौता ज्ञापनों (MoUs) की पुनर्समीक्षा शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार, समीक्षा पूरी होने के बाद जल्द ही DU भी तुर्की से अपने शैक्षणिक संबंधों पर अंतिम निर्णय ले सकता है।
कानपुर विश्वविद्यालय ने भी इस्तांबुल विश्वविद्यालय के साथ अपना समझौता तोड़ दिया है। कुलपति प्रो. विनय पाठक ने लिखा कि, “जो राष्ट्र भारत की अखंडता के विरोधियों के साथ खड़ा है, वह हमारे लिए भरोसेमंद साझेदार नहीं हो सकता।”
भारत का साफ संदेश
जो देश भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और सेना का सम्मान नहीं करते, उनके साथ कोई संबंध नहीं रखे जाएंगे – चाहे वह कूटनीतिक हो, शैक्षणिक हो या कारोबारी। शिक्षण संस्थानों की यह कार्रवाई केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है, जो भारत की वैश्विक नीति के बदले तेवर को दर्शाती है।