संजीव कुमार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों की पहचान किसी भी परिस्थिति में सदा सेवा के लिए तैयार कार्यकर्ताओं के रूप में है. संघ के स्वयंसेवक आपदा प्राकृतिक हो या मानव निर्मित, या कोई दुर्घटना हो, या समाज पर किसी अन्य प्रकार का संकट, स्वयंसेवक सहायता के लिए दौड़ पड़ते हैं. कोरोना महामारी के समय भी संघ के कार्यकर्ता सेवा के हर मोर्चे पर लगातार कार्य कर रहे हैं.
मुम्बई के कोरोना हॉटस्पॉट धारावी में एक दिन में 10 हज़ार से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग का कार्य किया. देश के कई नगर निगम में सफाईकर्मियों के साथ मिलकर सफाई का काम किया. लोगों के बीच कोरोना महामारी से बचाव को लेकर जागरूकता अभियान चलाया. धर्म स्थलों, विद्यालयों, मार्गों, भवनों के सेनेटाइजेशन का कार्य किया.
लेकिन, नासिक, जलगांव, दिल्ली, सहित कुछ अन्य स्थानों पर स्वयंसेवक कोरोना से मृत व्यक्तियों का अंतिम संस्कार भी कर रहे हैं. पीपीई किट पहनकर 4-4 घंटे धूप में आग के सामने रहकर सेवा करना यह कोई संघ के स्वयंसेवक से सीख सकता है. विगत 2 माह में केवल नासिक में ही स्वयंसेवकों ने 40 से अधिक मृतकों का दाह संस्कार किया है.
सेवा कार्य के पहले चरण से जुड़े अजेय बताते हैं कि यह अचानक नहीं हुआ. कोरोना को लेकर पूरे देश में संघ के स्वयंसेवक सेवा कार्य कर रहे थे. नासिक में भी स्वयंसेवक सेवा कार्य में जुटे थे. कोरोना को लेकर जागरूकता, दवा का छिड़काव, लोगों को भोजन पैकेट और राशन किट का वितरण, सफाई कार्य, जरूरत पड़ने पर कोरोना की जांच में सहयोग जैसे कार्य यहां भी स्वयंसेवक कर रहे थे. जिला प्रशासन को जहां आवश्यकता होती, संघ के स्वयंसेवक तुरंत हाज़िर हो जाते. वहां के ACP को लगा कि सारे कार्य तो हो रहे हैं, लेकिन मृत व्यक्तियों की अंतिम क्रिया करने में प्रशासन को दिक्कत आ रही है. उन्होंने जिला कार्यवाह से संपर्क किया. जिला कार्यवाह ने कार्यकर्ताओं से बात की. सबकी सहमति बनी की सेवा कार्य करना चाहिए. व्यक्ति की कोरोना से मृत व्यक्ति की अंतिम क्रिया तुरंत करनी चाहिए नहीं तो संक्रमण फैलने का खतरा रहता है. मृत व्यक्तियों में कई ऐसे थे जो लावारिस थे, कुछ एक के परिजन अंतिम क्रिया करने से इनकार कर रहे थे. कुछ ऐसे भी थे, जिनके परिजन क्वारंटाइन थे. ऐसे लोगों की अंतिम क्रिया करने का संकल्प स्वयंसेवकों ने लिया.
25 से 45 वर्ष के स्वस्थ स्वयंसेवकों को ही यह जिम्मेदारी देना तय किया गया. घर की अनुमति अनिवार्य की गई. अंतिम क्रिया से लौटने के बाद उनके क्वारंटाइन के लिए भोंसला मिलिट्री स्कूल का गेस्ट हाउस निर्धारित किया गया. पहले 12 लोगों को इस कार्य को करने की जिम्मेदारी दी गई. फिर 4-4 स्वयंसेवकों की टोली बनी.
नासिक के सिविल हॉस्पिटल से जब भी सूचना आई तो एक टोली तुरंत पहुंच जाती. अस्पताल प्रबंधन द्वारा PPE किट दिया जाता. उसे पहनकर ही शव को उठाना था. पहले तो काफी दिक्कत आई क्योंकि सेवारत स्वयंसेवक इसके अभ्यासी नहीं थे. किट पहने के बाद पानी तक नहीं पीना होता है. किट कम से कम 4 घण्टे पहनकर रहना पड़ता था. शव को अस्पताल से निकालकर बैकुंठ रथ में रखना फिर उसे बैकुंठ धाम पहुंचाकर अंतिम संस्कार तक करने का कार्य संघ के स्वयंसेवकों को करना पड़ता है. स्वयंसेवकों की सेवा से बैकुंठ रथ के चालक इतने प्रभावित हुए कि वे भी 2 घण्टे ज्यादा सेवा देने लगे हैं.