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वज्रपात जैसे इस आघात से हम सभी स्तब्ध हैं

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श्रीयुत जयंत सहस्रबुद्धे जी के निधन का अतीव वेदनादायी दुःखद समाचार आज तृतीय वर्ष दीक्षांत समापन के बाद प्राप्त हुआ. अचानक वज्रपात जैसे इस आघात से हम सभी स्तब्ध व शून्य हो गए. ठीक नौ महीने पहले हुई सड़क दुर्घटना के हादसे से निकलकर उनके स्वास्थ्य की धीमी परन्तु निश्चित प्रगति के समाचार मन की आशा को बढ़ाकर आनंदित करने वाले ही रहे. एक-दो वर्ष के दीर्घ कालावधि के पश्चात क्यों न हो, वे फिर से धीरे-धीरे कार्यकर्ता मंडली को अपने सान्निध्य का लाभ दे पाएंगे, ऐसा हम सबको लग रहा था. चिकित्सक पूरे प्रयास कर रहे थे. परिवारजनों की आत्मीय सेवा का परिश्रम चल रहा था. स्थानीय स्वयंसेवकों की भागदौड़ बनी रहती थी. परन्तु देशभर के कार्यकर्ताओं की प्रार्थना के बावजूद विपरीत हुआ. सप्ताह भर की स्वास्थ्य में गिरावट के बाद वे आज अचानक निजधाम प्रस्थान कर गए.

हम सबका, विज्ञान भारती के हजारों कार्यकर्ताओं का और विशेषतः उनके परिवारजनों का सांत्वना कैसे हो? नियति की यह क्रूर लीला विधिलिखित है, यह जानकर भी मन समझता नहीं. परन्तु उपाय भी नहीं है. उनकी कार्य कुशलता, नेतृत्व क्षमता, मधुर स्वभाव, स्मितवदन, सुन्दर गायन व समर्पण की स्मृति से प्रेरणा ग्रहण कर आगे प्राप्त कर्तव्य का निर्वहन करना ही हमारे लिए विहित है. दिवंगत जीव की उत्तम गति की प्रार्थना करते हुए उनकी स्मृति में अपनी व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से श्रद्धांजलि अर्पण करता हूँ.

मोहन भागवत

सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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