ग्वालियर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख अनिल ओक जी ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज एक अच्छे मित्र, प्रेरक, प्रशासक और दूरदृष्टा थे. वह भेदभाव नहीं करते थे. इसीलिए जनता शिवाजी महाराज के लिए मर मिटने के लिए हमेशा तैयार रहती थी. अगर वह पांच साल और जीवित रहते तो अंग्रेज यहां पैर नहीं जमा सकते थे. हम शिवाजी को भूले इसलिए गुलाम हुए.
अनिल ओक जी ‘शिवाजी राज्याभिषेक: 350 वर्ष हिन्दवी स्वराज की अवधारणा एवं भारत का अमृतकाल’ विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. स्वदेश प्रकाशन समूह के तत्वाधान में आईआईटीटीएम सभागार में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता सांसद विवेक नारायण ने की. इस अवसर पर स्वदेश समूह के प्रबंध संचालक यशवर्धन जैन एवं समूह संपादक अतुल तारे भी मंचासीन रहे.
अनिल ओक जी ने कहा कि जो लोग इतिहास नहीं पढ़ते हैं, वह इतिहास बनकर रह जाते हैं. उन्होंने कई उद्धरण देते हुए कहा कि शिवाजी महाराज बहुत ही बुद्धिमान, कुशल प्रशासक और उद्यमी थे. वह हारने के लिए युद्ध नहीं लड़ते थे. अगर उन्हें लगता था कि युद्ध में उनकी पराजय सुनिश्चित है तो वह रणनीतिक रूप से कदम पीछे कर लेते थे और पुन: संगठित होकर दोबारा आक्रमण करते थे.
उस दौरान समुद्र पार करना अच्छा नहीं माना जाता था, लेकिन उन्होंने राजकोश बढ़ाने को जहाज के द्वारा विदेशों से आयात और निर्यात भी किया. स्वदेश के समूह संपादक अतुल तारे ने स्वागत भाषण में कहा कि प्रसून वाजपेयी का एक गीत है, मैं रहूं या ना रहूं भारत यह रहना चाहिए. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मनमोहन जी वैद्य इसमें जोड़ते हैं, भारत को भारत रहना चाहिए और आज हम देख रहे हैं कि आज भारत को भारत कहने का आग्रह और स्वर जैसा ही मुखर हुआ, इंडिया के पेट में मरोड़ हो गई. यह भारत के स्व की यात्रा की शुरूआत है. शिवाजी के हिन्दवी स्वराज के पन्ने पलटने का यह सुअवसर है, जो देश को अमृत काल में ले जाएगा.
कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना प्रतीक्षा तांबे एवं साक्षी ने प्रस्तुत की. शिवाजी चरित्र पर गीत पीयूष तांबे ने प्रस्तुत किया. कार्यक्रम का संचालन अजय खेमरिया एवं आभार स्वदेश के स्थानीय संपादक चन्द्रवेश पाण्डे ने व्यक्त किया. कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगीत वंदेमातरम के साथ हुआ.
शिवाकाशी नाई का किस्सा सुनकर भावुक हुए लोग
छत्रपति शिवाजी के हमशक्ल शिवाकाशी नाई का किस्सा सुन सभागार में बैठे लोग भावुक हो गए. जब शिवाजी ने मुस्लिम आक्रांता से युद्ध के दौरान स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए अपने हमशक्ल नाई शिवाकाशी से शिवाजी बनने के लिए कहा तो वह खुशी से उछल पड़ा. यह सुनकर शिवाजी महाराज की आंखें नम हो गईं. उन्होंने रुंधे गले से कहा कि तुम्हारा परिवार भी है, तब उसने कहा कि हमारे मरने पर कुछ लोग ही रोएंगे, लेकिन मेरे मरने से पहले आपके आंसू निकल आए. इससे बड़ा मेरा क्या सौभाग्य होगा. जब रास्ते में दुश्मनों ने शिवानाई को पकड़कर दरबार में पेश किया तो उसे पहचान लिया गया कि वह शिवाजी नहीं है. इसके बाद उन्हें मारने का आदेश दिया गया, तब शिवानाई ने कहा कि मैंने पीठ पर नहीं छाती पर वार खाया है.
वीर सावरकर और उनकी पत्नी का जेल में मार्मिक मिलन का प्रसंग सुनाया तो श्रोताओं की आंखें नम हो गईं. सावरकर ने अपनी पत्नी से कहा कि जिस तरह प्रकृति के संरक्षण के लिए कुछ लोगों को अपना बलिदान देना पड़ता है, उसी तरह देश को स्वतंत्र कराने के लिए हमने यह मार्ग चुना है.
अनिल ओक ने कहा कि कुछ मंदबुद्धि लोग यह भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि सावरकर माफीवीर हैं, जबकि वह देशभक्त और दूरदृष्टा थे. उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि आगामी समय में वैचारिक लड़ाई के लिए हमें एकजुट होना होगा, क्योंकि इस देश में असंख्य सनातन विरोधी सक्रिय हैं.
अध्यक्षीय उद्बोधन में सांसद विवेक नारायण ने कहा कि भगवान श्रीराम एवं छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन अद्भुत था. जब माता सीता का रावण ने हरण कर लिया था तो श्रीराम चाहते तो अयोध्या से सेना बुला सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा न कर जनता के सहयोग से युद्ध कर माता सीता को मुक्त कराया. इसी तरह शिवाजी महाराज ने जनता को स्वराज्य के लिए प्रेरित कर सफलता हासिल की.